Friday, 4 June 2021

अनिरुद्ध जगन्नाथ यादव

 


भारत के बाहर भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी को वैश्विक पहचान दिलाने में यदि किसी शख्स का असाधारण योगदान जुबान पर आता है , तो वह श्री अनिरुद्ध जगन्नाथ यादव जी ही थे . मारीशस के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री प्रविंद जगन्नाथ यादव के पिता और मॉरिशस के पूर्व प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति श्री अनिरुद्ध जगन्नाथ का विगत 3 जून 2021 को91 वर्ष की उम्र में दुखद निधन हो गया . उनके दुखद निधन से मारीशस ही नहीं अपितु भारत की भी अपूर्णनीय सांस्कृतिक व साहित्यिक क्षति हुई है .

श्री अनिरुद्ध जगन्नाथ का जन्म 29 मार्च 1930 को मॉरिशस में हुआ था . मालुम हो कि मॉरीशस के पूर्व राष्ट्रपति श्री अनिरुद्ध जगन्नाथ के पूर्वज उत्तर प्रदेश में बलिया जिले के मूल निवासी थे. बलिया जिले के रसड़ा थाना क्षेत्र का अठिलपुरा गांव उनके पुरखों का निवास स्थान माना जाता है. इस गांव के निवासियों अनुसार उनके पिता श्री विदेशी यादव और चाचा श्री झुलई यादव को अंग्रेजों ने वर्ष 1873 में गिरमिटिया मजदूर के रूप में जहाज से गन्ने की खेती के लिए मारीशस भेजा था. अभिलेखों में दर्ज दस्तावेजों के अनुसार 2 नवंबर, 1834 को भारतीय मजदूरों का पहला जत्था गन्ने की खेती के लिए कलकत्ता से एमवी एटलस जहाज पर सवार होकर मारीशस पहुंचा था. आज भी वहां हर साल 2 नवंबर को 'आप्रवासी दिवस' के रूप में मनाया जाता है. जिस स्थान पर भारतीयों का यह जत्था उतरा था वहां आज भी आप्रवासी घाट की वह सीढ़ियां स्मृति स्थल के तौर पर मौजूद हैं.

श्री अनिरुद्ध जगन्नाथ का विवाह सरोजिनी बल्लाह से 18 दिसम्बर 1957 में हुआ था और उनकी 2 संताने हैं: प्रविंद जगन्नाथ और शालिनी जगन्नाथ . श्री अनिरुद्ध जगनाथ भारत के यदुवंशी अहीर जाति से ताल्लुक रखते थे. उनके बेटे प्रविंद जगन्नाथ समाजवादी आंदोलन के नेता हैं और उनका विवाह कबिता रामदानी से हुआ है . श्री अनिरुद्ध जगन्नाथ की पुत्री शालिनी जगन्नाथ भी विवाहित हैं और उनके नाती-पौत्रों की संख्या 5 है.




भारत में श्री अनिरुद्ध जगन्नाथ को प्रथम प्रवासी भारतीय सम्मान से नवाज़ा गया था . श्री जगन्नाथ मॉरिशस में 'मूवमेंट सोशलिस्ट मिलिटेंट पार्टी' के नेता रहे. वह बतौर पहली बार 1963 में संसद के लिए चुने गए थे . इसके बाद वह 1965 में ऑल मॉरिशस हिंदू कांग्रेस के सदस्य बने. सन् 1965-66 में शिवसागर रामगुलाम की सरकार में उन्हें विकास राज्य मंत्री बनाया गया और नवम्बर 1966 में वे श्रम मंत्री बने. श्री जगन्नाथ 1970 में मूवमेंट मिलिटेंट मॉरिसिएन में शामिल हो गए और उसके पश्चात उसी दल के नेता बने. वह 1976 में हुए चुनाव में जीते और विपक्ष के नेता चुने गए. जिसके बाद वर्ष 1982 में वह भारी जीत के साथ प्रधानमंत्री चुने गए . दरअसल वह एक ऐसे वैश्विक राजनीतिज्ञ रहे जो मॉरिशस के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दोनों पदों पर रहे . वह वर्ष 2003 से 2012 तक देश के राष्ट्रपति थे .



श्री अनिरुद्ध जगन्नाथ का परिवार भारतवंशी था अतः मारीशस में भी उन्होंने भारतीयता का सृजन किया . मारीशस के वास्तुकार के रूप में उन्होंने भारत के साथ सदैव कुटनीतिक सम्बन्धो को वरीयता प्रदान किया . भारत ने भी उन्हें ससम्मान 'पद्म श्री' से विभूषित कर सम्मानित किया . आज मारीशस को 'मिनी इण्डिया' के रूप में भी जाना जाता है जिसका श्रेय भारतीय मूल के यदुवंशी श्री अनिरुद्ध जगन्नाथ को ही जाता है . 



Sunday, 8 November 2020

जानवर और इंसान

जंगल के जानवरो की बैठक चल रही थी , इकलौते वनराज स्वयं अपनी व्यथा समस्त जीव जंतुओं के सम्मुख कह रहे थे , साथियों न मालूम क्या हो रहा है कि हमारे जंगल से एक - एक कर तमाम साथी गायब हो रहे है , जबकि मै स्वयं भूख के कारण बेहद कमजोर हो चुका हूं । मेरे परिवार के युवा सदस्य भी लापता हो चुके है । काफी खोजने के बाद भी कहीं नहीं मिले , संभावना है कि उन्हें भी दुष्ट इंसानों ने धोखे से अपने कब्जे में कैद कर लिया होगा । यह बोलते बोलते वनराज काफी भावुक हो गए । उनकी बात को संभालते हुए काले भालू ने कहा , 

"महाराज बहुत ही चिंता का विषय है । हम जीव जंतुओं की अनेक प्रजातियां विलुप्त हो चुकी है । हमारे रहने के ठिकानों पर इंसानों ने बस्तियां बसा ली है या फिर गनदगी और बदबू फैलाने वाली फैक्ट्रियां स्थापित कर दी है । हमारे साथियों को खाने के लिए शहद या फल - फूल मिलना दूर्भर हो चला है ।" कालू भालू की बात के ख़तम होते ही बीमार हाथी ने भी अपने मन की पीड़ा बताते हुए कहा , 

"महाराज एक वक्त था जब हम पूरी तरह से आजाद थे और इन जंगलों में भयमुक्त होकर विचरते थे । इसके बाद इंसानों ने हमसे दोस्ती की और हम उनके सुख दुख के साथी बन गए । किन्तु इंसानों ने दोस्ती ही नहीं तोड़ी ,वे तो बहुत ही स्वार्थी निकल गए । उन्होंने हम सबके उपकारों को भूल कर हमे अपना गुलाम बना लिया है । बात यही तक सीमित नहीं है महाराज , आगे बदहाली ये है कि हमारे जंगलवासियो को खेतों में जोता गया, उन्हें दुहा गया। हमारे साथियों के रोयें काटकर इंसानों ने ओढ़ लिए, उनकी चमड़ी उतारकर अपने पैरों में पहन लिया। महाराज इन इंसानों को जब अनाज पूरा नहीं पड़ा तो ये हमारे साथियों को काटकर भी खा गए । क्या हम जानवरो का यही जीवन है ?" बीमार हाथी की आंखो में आंसू देखकर काले कौवे ने भी अपनी व्यथा कह डाली , 

"महाराज हम नभचर का तो खुली हवा में उड़ना भी दूभर हो गया है । इंसान अपने हवाई जहाज़ को उड़ाने के लिए हम पक्षियों को गोली से निशाना बना देते है । प्रतिदिन हमारे लाखो साथी उनकी गोली का शिकार हो जाते है । आखिर आसमान मै उड़ने के लिए ही तो पंख मिले है हम पक्षियों को । किन्तु हवाई मशीनों के कारण हमारी जान पे बन आई है । अब हमारे उड़ने ही नहीं भोजन के लिए भी समस्याएं उत्पन्न हो रही है ।" 

कौवे की बात चल ही रही थी कि कुछ हलचल हुई , थोड़ी देर बाद सबने देखा कि उनके पास इंसानी बस्ती से भाग कर आए आवारा पशुओं का एक झुंड खड़ा हो गया जो देखने में काफी कमजोर और भूखा लग रहा था । इस झुंड में सबसे बुजुर्ग नंदी ने कहा , "वनराज को हम सभी आवारा पशुओं की तरफ से सादर अभिवादन है महाराज ।" वनराज ने भी दहाड़ते हुए सबका स्वागत किया और बैठने के लिए इशारा किया । वनराज को धन्यवाद देकर आवारा पशुओं ने जहा तहा आसन ग्रहण किया । इसके पश्चात नंदी ने आगे बोलते हुए कहा, 

"महाराज हमे भी अपने जंगल मै शरण दीजिए । इंसानों के जंगलराज से त्रस्त होकर हम उनकी बस्तियों में नहीं रहना चाहते हैं । अब किसी भी प्रकार यही गुजर - बसर कर लेंगे । इंसानों की बस्तियों और दिलो में हमारे लिए कोई जगह नहीं है , उनके अत्याचार से वह खुद परेशान है , हम पशुओं की कहीं कोई सुनवाई नहीं है । हमारी मांग है कि हमारे बाकी साथियों को भी इंसानी कब्जे वाले जंगलराज से मुक्त किया जाए और जिसने भी हमे जीवन दिया है उसके द्वारा हमारे मूल अधिकार वापस दिए जाए । हमको हमारे जंगल और उसकी हरियाली वापस चाहिए । वहा हम आवारा बन के रहे इससे अच्छा है अपने घर जंगल मै ही खुल कर आजादी से रहे ।" वनराज ने सबको दिलासा दिया और समस्त समस्याओं के निराकरण हेतु एक माह का वक्त मांग लिया । 

किन्तु सभा विसर्जन के बाद वनराज को स्वयं नहीं समझ आ रहा था कि वह इसके लिए आखिर किससे फ़रियाद करे । अंत में उसे महसूस हुआ कि इंसानी स्वार्थ और अत्याचार के आगे जंगल मै अभी भी भाईचारा बचा हुआ है । जंगल के जानवर आज भी काफी मासूम है और स्वार्थी इंसान से दूर रहकर ही जंगल की सुरक्षा की जा सकती है । 

मित्रो वनराज ने एक माह बाद क्या फैसला लिया होगा,

Friday, 31 July 2020

मुंशी प्रेमचन्द


प्रेम चंद



प्रेमचन्द आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं और उन्होंने हिंदी साहित्य में यथार्थवाद की शुरूआत की थी .

चूंकि प्रेमचंद मूल रूप से उर्दू के लेखक थे और उर्दू से हिंदी में आए थे, इसलिए उनके सभी आरंभिक उपन्‍यास मूल रूप से उर्दू में लिखे गए और बाद में उनका हिंदी में अनुवाद किया गया. उन्‍होंने 'सेवासदन' (1918) उपन्यास से हिंदी उपन्यास की दुनिया में प्रवेश किया था . यह मूल रूप से 'बाजारे-हुस्‍न' नाम से पहले उर्दू में लिखा गया था लेकिन इसका हिंदी रूप 'सेवासदन' पहले प्रकाशित कराया गया . 'सेवासदन' एक नारी के वेश्या बनने की कहानी है. 'सेवासदन' में व्यक्त मुख्य समस्या भारतीय नारी की पराधीनता है. इसके बाद किसान जीवन पर भी उनका पहला उपन्यास 'प्रेमाश्रम' (1921) आया. दरअसल प्रेमचंद के उपन्यासों का मूल कथ्‍य भारतीय ग्रामीण जीवन ही था.



प्रेमचन्द को प्रायः "मुंशी प्रेमचंद" के नाम से जाना जाता है. प्रेमचंद के नाम के साथ 'मुंशी' कब और कैसे जुड़ गया? इस विषय में अधिकांश लोग यही मान लेते हैं कि प्रारम्भ में प्रेमचंद अध्यापक रहे होंगे . अध्यापकों को प्राय: उस समय मुंशी जी कहा जाता था. इसके अतिरिक्त कायस्थों के नाम के पहले सम्मान स्वरूप 'मुंशी' शब्द लगाने की परम्परा रही है. संभवत: प्रेमचंद जी के नाम के साथ मुंशी शब्द जुड़कर रूढ़ हो गया. दरअसल प्रेमचंद जी ने अपने नाम के आगे 'मुंशी' शब्द का प्रयोग स्वयं कभी नहीं किया. मुंशी शब्द सम्मान सूचक है, जिसे प्रेमचंद के प्रशंसकों ने कभी लगा दिया होगा. यह तथ्य अनुमान पर आधारित है. लेकिन प्रेमचंद के नाम के साथ मुंशी विशेषण जुड़ने का प्रामाणिक कारण यह है कि 'हंस' नामक पत्र प्रेमचंद एवं 'कन्हैयालाल मुंशी' के सह संपादन में निकलता था. जिसकी कुछ प्रतियों पर कन्हैयालाल मुंशी का पूरा नाम न छपकर मात्र 'मुंशी' छपा रहता था साथ ही प्रेमचंद का नाम इस प्रकार छपा होता था. 'हंस के संपादक प्रेमचंद तथा कन्हैयालाल मुंशी थे परन्तु कालांतर में पाठकों ने 'मुंशी' तथा 'प्रेमचंद' को एक समझ लिया और 'प्रेमचंद'- 'मुंशी प्रेमचंद' बन गए.

साहित्य सम्राट प्रेमचन्द के जन्मदिन पर आज साहित्य जगत में ख़ामोशी है . जो इस देश के सम्रद्ध साहित्य के दम तोड़ने का संकेत भी है .

Friday, 27 March 2020

कोरोना : भ्रान्तिया और अफवाह



कोरोना जैसी महामारी ने लगभग सारी दुनिया भर में ही व्यापक कहर ढा रखा है और भारत में भी अपने पैर पसार चुकी है . वैश्विक संकट के इस समय में संयम , समझदारी और वैज्ञानिक द्र्ष्टिकोंन की अत्यंत आवश्यकता है . किन्तु देश -विदेश में कुछ लोग पर्याप्त जानकारी के अभाव में या कुछ स्वार्थो के कारण ही जनता के बीच भ्रामक और गलत जानकारिया परोस रहे है . 

भारत में अभी हाल फिलहाल तक गाय के मूत्र और गोबर से कोरोना के इलाज की बाते कई मंत्री और नेता स्वयम कह रहे थे . जिसके कारण सोशल मिडिया में ये मामला काफी सुर्खियों में रहा था . ध्यान रखिये इंडियन वायरोलॉजिकल सोसाइटी के डॉ शैलेंद्र सक्सेना के अनुसार "ऐसा कोई मेडिकल सबूत नहीं है, जिससे पता चलता हो कि गोमूत्र में एंटी-वायरल गुण होते हैं. वहीं गाय के गोबर का इस्तेमाल उल्टा भी पड़ सकता है. क्योंकि हो सकता है कि इसमें कोरोना वायरस हो जो इंसानों में भी आ सकता है." 

2018 से काउपैथी गाय के गोबर से बने साबुन के अलावा अल्कोहल-फ्री हैंड सैनिटाइजर ऑनलाइन बेच रही है, जिनमें देसी गायों का गोमूत्र मिलाया जाता है. फिलहाल ये ऑनलाइन आउट ऑफ स्टॉक दिखाया जा  रहा है. प्रोडक्ट के अनुसार "मांग बढ़ जाने की वजह से अब हम प्रति ग्राहक उत्पाद बेचने की सीमा तय कर रहे हैं, ताकि सभी ग्राहकों को यह उत्पाद मिल सके." वहीं दूसरी तरफ योग गुरु बाबा रामदेव ने एक हिंदी न्यूज़ चैनल पर लोगों को घर में ही हर्बल हैंड सैनिटाइजर बनाने की सलाह दे डाली है. उन्होंने कहा है कि आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी गिलोय, हल्दी और तुलसी के पत्तों के सेवन से कोरोना वायरस को रोकने में मदद मिल सकती है. 


लेकिन मित्रो विश्व स्वास्थ्य संगठन और अमरीका के डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक़ अल्कोहल युक्त हैंड सैनिटाइज़र का इस्तेमाल करना बेहद ज़रूरी है और लंदन स्कूल ऑफ हाइजिन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन में प्रोफेसर सैली ब्लोमफिल्ड के मुताबिक भी कोई भी घर में बनाया गया सैनिटाइज़र कारगर नहीं होगा, क्योंकि वोडका तक में सिर्फ़ 40 प्रतिशत अल्कोहल ही होता है. 

यही नहीं कोरोना के नाम पर कुछ कारोबारी तो ये कहकर सामान बेच रहे हैं कि इससे कोरोना वायरस से बचा जा सकता है. उदाहरण के लिए 15 हज़ार रुपए में "एंटी कोरोना वायरस" गद्दे बेचे जा रहे हैं. इसके विज्ञापन अख़बारों में भी दिए गए थे . किन्तु विरोध होने पर निर्माता ने विज्ञापन हटा दिया है . 

इसी प्रकार कहा जा रहा है कि चाय पीकर कोरोना से बचा जा सकता है . दरअसल इसके पीछे चाय में मिथाइलज़ेन्थाइन्स नाम का एक तत्व का होना है जो कॉफी और चॉकलेट में भी मिलता है. चीन में भी फरवरी में इस तरह की कुछ रिपोर्ट आई थीं जिनमें दावा किया गया था कि चाय के इस्तेमाल से कोरोना वायरस को फैलने से रोका जा सकता है, लेकिन ये दावे सही नहीं है. 

कोरोना जैसी खतरनाक महामारी से बचने के लिए अफवाहों से बचना भी आवश्यक है . अत: किसी भी जानकारी पर विश्वास करने से पहले उसके तथ्यों की जांच अवश्य कर ले .

Sunday, 22 March 2020

चन्द्रमा का भाई :2020 सीडी3







































भारत में चन्द्रमा यानी चाँद (Moon) का अपना अलग धार्मिक महत्व है . विज्ञान उसे प्रथ्वी का उपग्रह मानता है लेकिन भारत के लोग चन्द्रमा को किसी देवता से कम नही मानते है . चन्द्रमा के साथ तो यहाँ की महिलाओ की हजारो साल से आस्थाए भी जुडी हुई है .दादा -दादी की बच्चो को चंदा मामा की कहानिया हो या यहाँ के ज्योतिषियों का ज्योतिष , चन्द्रमा का सम्बन्ध जन मानस की मनोभावनाओ से जुड़ चूका है . कही पर चाँद की सुन्दरता का पैमाना लिया जाता है तो कही -कही पर उसका जिक्र स्वभाव में नम्रता के साथ शांत मन के साथ किया जाता है . सदियों तक चन्द्रमा का वजूद कपोल -कल्पनाओ पर आधारित कहानियों और मान्यताओ पर चलता रहा . किन्तु 1969 में अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री नील आर्म स्ट्रोंग और उनके साथी के चन्द्रमा में पहुचते ही चन्द्रमा के तमाम रहस्यों से पर्दा उठ गया . इसके बाद चन्द्रमा के बारे में कई गुप्त जानकारिय उपग्रहों और कुछ अंतरिक्ष यानो द्वारा समय -समय पर उपलब्ध करवाई जाती रही है . 



अमेरिका ,रूस , चीन के साथ भारत भी चन्द्रमा के खोजी अभियान से जुड़ चूका है और इस दिशा में निरंतर आगे बढ़ रहा है . वास्तव में विज्ञान ने प्रथ्वी के सुदूर स्थित इस उपग्रह के अंधेरो की पर्तो को भी हटा दिया है . अब बात केवल एक चन्द्रमा की ही नहीं रही बल्कि उससे जुदा एक और चन्द्रमा की भी होने लगी है . दरअसल हाल में ही अमेरिकी खगोलविदों, थियोडोर प्रूआइन और कैक्पर वीर्ज़कोज ने टास्कुन (एरिज़ोना) की माउंट लेमन ऑब्जरवेटरी में 1.52 मीटर (60 इंच) के टेलिस्कोप की मदद से एक ऐसे छोटे चन्द्रमा की खोज की है जो पिछले 3 साल से प्रथ्वी की परिक्रमा कर रहा है . इन खगोलविदों ने इस नए चन्द्रमा का नाम 2020 सीडी3 दिया है. 





















नारंगी रंग में नए चन्द्रमा 2020 सीडी3 का परिक्रमा पथ व सफेद रंग में मुख्य स्थाई चन्द्रमा का पथ2020 सीडी3, वास्तव में एस्टेरॉयड्स (क्षुद्रग्रहों) के एक ऐसे समूह का बहुत छोटा सा हिस्सा है जो स्थायी तौर पर सूरज और अस्थायी तौर पर धरती का चक्कर काटते हैं. खगोलविदों का कहना है कि नया चन्द्रमा 2020 सीडी3 इतना छोटा है कि यदि यह प्रथ्वी से टकरा भी जाए तो प्रथ्वी को इससे कोई नुकसान नहीं होगा. इस सम्बन्ध में क्षुद्र ग्रहों का अध्ययन करने वाली संस्था माइनर प्लैनेट सेंटर के अनुसार प्रथ्वी के पास एक और चांद है जो करीब 3 सालों से इसके चक्कर लगा रहा है. यह नया चंद्रमा हमारे पुराने चंद्रमा जितना बड़ा नहीं है और उतना चमकीला भी नहीं है. इसकी कुल माप मात्र 1 से 6 मीटर के बीच ही है और सम्भव है यह ज्यादा समय तक हमारे साथ भी नहीं रहेगा.

कहा जाता है कि इस तरह के मिनी-मून्स या छोटे-मोटे चंद्रमा आते-जाते रहते है और हो सकता है कि 2020 सीडी3 भी प्रथ्वी की अपनी आखिरी परिक्रमा ही कर रहा हो. एक अध्ययन बताता है कि हर समय इस तरह का कम से कम एक अस्थायी छोटा चंद्रमा प्रथ्वी का चक्कर लगा रहा होता है. आम तौर पर इनका साइज 1 मीटर से ज्यादा होता है और ये धरती की कम से कम एक परिक्रमा तो करते ही हैं. इनमें से किसी के भी लंबे समय तक न टिक पाने का कारण हमारे अपने चंद्रमा और सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल है. इससे पैदा हुए खिंचाव के चलते ही ये छोटे पिंड कुछ सालों बाद धरती का चक्कर लगाना छोड़कर फिर से सूर्य की परिक्रमा करने लगते हैं.




दरअसल प्रथ्वी के ये सभी कथित चंद्रमा ऐसे एस्टेरॉयड्स है जो सूर्य का एक चक्कर लगाने में 1 साल का वक्त लगाते हैं. ये प्रथ्वी के साथ-साथ सूर्य का भी चक्कर लगा रहे होते हैं. इन्हें प्रथ्वी का क्वासी सैटेलाइट यानी आभासी उपग्रह भी कहा जाता है क्योंकि ये हमसे हमारे मुख्य चंद्रमा के मुकाबले बहुत दूर होते हैं. 2016 एचओ3 इस तरह के उपग्रहों का सबसे अच्छा उदाहरण है. यह सूरज के साथ-साथ प्रथ्वी की परिक्रमा भी करता हुआ प्रतीत होता है.

वर्ष 2006 में इसी तरह के एक और पिंड आरएच120 को भी खोजा गया था. मात्र 2-3 मीटर व्यास वाले आरएच120 ने सितंबर 2006 से जून 2007 के बीच धरती के चार चक्कर लगाए थे. बाद में यह स्वतंत्र होकर, सुदूर सूरज की तरफ निकल गया. यह लगभग हर 20 साल बाद धरती के पास आता है और अगली बार 2028 में फिर से हमारे पास से गुजरेगा.

2020 सीडी3 अपने छोटे आकार के कारण प्रथ्वी के मुख्य चन्द्रमा का छोटा भाई जरुर बन सकता है किन्तु हमें इससे रात में किसी प्रकार की चांदनी की उम्मीद नही करनी चाहिए . सूरज और चाँद के बीच आने -जाने वाले इन छोटे ग्रहों पर अभी काफी खोज किया जाना बाकी है . लेकिन निष्कर्ष यह भी है कि प्रथ्वी के लिए केवल एक ही चन्द्रमा नही है .
(द ओपन यूनिवर्सिटी में प्लानेटरी जियोसाइंस के प्रोफेसर डेविड रोथरी के मूल लेख द कन्वर्सेशन पर आधारित ).