Tuesday, 14 November 2017

बाल दिवस , 14 नवम्बर



14 नवम्बर आते ही देश के प्रथम प्रधानमन्त्री पंडित जवाहर लाल नेहरु जी की याद आती है . नेहरु जी देश के बच्चो के बीच में चाचा नेहरु के नाम से लोकप्रिय है .

पंडित नेहरु एक अति महात्वाकांछी व्यक्तित्व थे . अंग्रेजो के खिलाफ जारी आजादी की लड़ाई में नेहरु जी का योगदान जितना अधिक था उसके मुकाबले उन्हें प्रधानमन्त्री का शीर्ष पद मिलना भी काफी बडी बात लगती है . ऐसा लगता है कि पंडित नेहरु पर जो अंग्रेजी छाप लगी हुई थी , उसको समझने में महात्मा गांधी जी भी कही न कही चूक गये थे . इस महत्वपूर्ण बात को समझने के लिए पंडित नेहरु के साथ काफी समय तक एक टीम के रूप में अभिन्न रहे जे पी यानि जयप्रकाश जी की उस लेख की मदद ली जा सकती है जिसे उन्होंने 'गाँधी टुडे ' नामक एक पुस्तक की सम्पादकीय में लिखी हुई है . जननायक जयप्रकाश जी ने उक्त लेख में ये स्वीकार किया था कि आजादी के बाद नेहरु जी गांधी जी के सपनों को पूरा करने में पूरी तरह असफल रहे . प्रजातंत्र के स्थान पर राजतन्त्र को बढ़ावा मिला और अनेक राष्ट्रीय समस्याओ की उत्पत्ति हुई .


'गाँधी टुडे' जे डी शेट्टी द्वारा लिखित एक पुस्तक है . तीन दशक से अधिक पुरानी यह पुस्तक तथ्यों के साथ इस बात को बेहद मजबूती से रखती है कि जिस नेहरू को गांधी जी का राजनीतिक उत्तराधिकारी माना गया था उन्होंने न सिर्फ गांधी जी के विकास के माॅडल को तार-तार कर दिया बल्कि अपना खुद का जो विकास माॅडल गढ़ा उस पर चलकर देश दिनोंदिन एक दलदल में फंसता चला गया. किताब की भूमिका में संपूर्ण क्रांति आंदोलन के नायक जयप्रकाश नारायण जी इस ओर इशारा करते हैं कि पंडित नेहरू ने जो मिश्रित उदार और माक्र्सवादी माॅडल देश के सामने रखा उसकी वास्तविकता यह है कि जब यह लगने लगा कि यह सफल हो रहा है उसी समय मुझे इसकी ऐसी खामियां दिखीं जो विनाशकारी थी . यही वजह है कि मैं उनसे (नेहरु ) अलग हो गया. इस माॅडल की शुरुआती सफलता की कुछ वजहें हैं. अर्थव्यवस्था काफी समय से सुस्त पड़ी थी. सार्वजनिक क्षेत्र नई भूमिका में था. वहीं आर्थिक विकास की कई योजनाओं के लिए बाहर से काफी पैसा मिला था. इससे नेहरू माॅडल शुरुआत में सफल दिखने लगा था. लेकिन यह माॅडल शुरुआत से ही अभारतीय और संभ्रांत वर्गीय था इसलिए इसे अंततः नाकाम होना ही था. यह कोई संयोग नहीं है कि नेहरू के विकास माॅडल ने आय और धन के स्तर पर बहुत ज्यादा गैरबराबरी पैदा की. इसने सबसे अधिक लोगों को गरीबी रेखा के नीचे धकेला. इसने सबसे अधिक सनकी संभ्रांत वर्ग पैदा किया. इसका सबसे बड़ा खामियाजा यह भुगतना पड़ा कि इसने हमारे सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार और अनैतिकता को अपनी जड़ें जमा लेने का अवसर मुहैया करा दिया. जयप्रकाश नारायण आगे लिखते हैं, ‘इंदिरा गांधी ने अपने 11 साल के कार्यकाल में त्वरित गति से नेहरू माॅडल को आगे बढ़ाने का काम किया. लेकिन नेहरू जहां यह काम लोकतांत्रिक ढंग से करते थे, विडंबना यह है कि यह सब समाजवाद के नाम पर किया गया. त्रासदी यह है कि यह माॅडल बिगड़ता हुआ अंततः तानाशाही तक पहुंच गया जिसमें सारी शक्ति कांग्रेस नेताओं के हाथ में रही. ’ जेपी की इन बातों से नेहरू माॅडल की नाकामी को स्पष्ट तौर पर समझा जा सकता है.पुस्तक के लेखक शेट्टी कहते है , ‘नेहरू के कार्यकाल में बड़े कारोबारी घरानों के विकास की गति इतनी अधिक थी कि उतनी उस दरम्यान दुनिया के किसी भी देश में किसी समूह की नहीं रही. यह माॅडल कृत्रिम था और इसे ध्वस्त होना ही था.

जयप्रकाश (जे पी ) के अनुसार, ‘आज हमें सबसे अधिक जरूरत जिस चीज की है वह है गांधीवादी विचारों पर आधारित एक स्वदेशी माॅडल.’ वैसे स्वदेशी की बात करने वाले कुछ लोग 2014 से केंद्र की सत्ता में हैं. भाजपा और उससे जुड़े संगठन स्वदेशी की बात तो काफी लंबे समय से करते रहे हैं लेकिन सत्ता में आने पर उनका ये एजेंडा भी एक जुमला मात्र साबित हुआ है . भाजपा की जन विरोधी आर्थिक नीतिया तो नेहरु माडल से भी ज्यादा खतरनाक साबित हुई है और हालत ये बन गयी है कि आज की आर्थिक विभीषिका के सन्दर्भ में पहले वाला नेहरु माडल ही जनता को बेहतर नजर आता है .

स्वाभाविक है कि ऐसे वक्त में पंडित नेहरु की याद तो आएगी ही , फिर ये चाहे उनके 'जन्म दिन' के रूप में हो या फिर 'बाल दिवस' 14 नवम्बर के रूप में ही क्यों न हो .