26 सिल्वर जुबली, 9 गोल्डन जुबली और 3 प्लेटिनम जुबली फिल्मों का संगीत रचने वाले मशहूर संगीतकार नौशाद जी का जन्म 25 दिसम्बर 1919 को लखनऊ में हुआ था .
लखनऊ में पैदा हुए नौशाद की बतौर संगीतकार 1952 में एक फिल्म आई थी- बैजू बावरा’. इसके गाने ‘ओ दुनिया के रखवाले सुन दर्द भरे मेरे नाले...’ ने पूरे हिंदुस्तान में धूम मचा दी थी. नौशाद साहब ने बाद में एक इंटरव्यू में कहा था कि इस गाने के बाद रफ़ी साहब ने कई दिनों तक नहीं गाया था , उनके गले से ख़ून आ गया था.
उस दौर में फिल्म इंडस्ट्री में नौशाद साहब का नाम सफलता की एक गारंटी बन गया था. महज 40 रुपये से अपने काम की शुरुआत करने वाले इस संगीतकार को एक फिल्म के लिए एक लाख रुपये तक मिलने लगे थे.
लखनऊ में अल्लन साहब का नाम कौन संगीत प्रेमी नही जानता होगा . असल में यही अल्लन साहब नौशाद के मामू थे और इनकी हारमोनियम, तबले आदि की दुकान थी. ये दूकान काफी मशहूर है . मैंने खुद यहाँ से कई साल पहले एक ढोलक और एक तबला खरीदा हुआ है . नौशाद जी अपने मामू की इसी दूकान पर हारमोनियम वगैरह ठीक करते थे जो कि इनके माँ -बाप को कतई मंजूर नही था . फिर क्या था ...तकरार हुआ ....और 1937 में सिनेमा और संगीत की दीवानगी उन्हें बंबई (मुंबई) ले आई. उस वक़्त उनकी उम्र मात्र 18 साल थी. यहां उन्हें जानने वाला कोई न था. बस एक पता था जेब में- कारदार स्टूडियो. सड़क पार करके स्टूडियो के सामने वे अपना बोरिया-बिस्तरा जमाकर रहने लगे. कुछ दिन धक्के खा लेने के बाद गीतकार डीएन मधोक साहब से जान-पहचान हो गयी और काम दिलाने के सिलसिले में वे उन्हें स्टूडियो दर स्टूडियो घुमाते रहे . इत्तेफ़ाक से एक दिन मधोक साहब उन्हें कारदार स्टूडियो ले गए और उनके लिए बात की. बात बन भी गई. ‘प्रेमनगर’, ‘स्टेशनमास्टर’, ‘माला’ ये कुछ फिल्मों के नाम हैं जो उनके खाते में आईं. अब उन्हें हर फिल्म के लिए 300 रुपए मेहनताना मिलने लगा था.
जैमिनी दीवान उन दिनों बड़े प्रोड्यूसर होते थे. वे एक फिल्म बना रहे थे ‘रतन’. इस फिल्म में नौशाद साहब को बतौर म्यूजिक डायरेक्टर ले लिया गया. उन्होंने इस फिल्म के लिए उत्तर-प्रदेश के लोक गीतों और लोक धुनों को शास्त्रीय रागों के साथ मिलाकर संगीत दिया. नतीजा- संगीत सुपर हिट! हुआ . 1961 में आई गंगा-जमुना ने तो धमाल ही मचा दिया था. यह फिल्म उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल पर ही आधारित थी. लिहाज़ा, उनकी चल निकली. इसमे एक गाना था ‘ नैन लड़ जईं हैं तो मनवा मा कसक होईबे करी...’इसे नौशाद ने किसी कव्वाल को गाते हुए सुना था; ‘भाग में हुई हैं यसरब की सनक होईबे करी’. इस कव्वाली से मुत्तासिर होकर उन्होंने शकील बदायूंनी के साथ बैठकर पूरा गाना लिखा था . इनके द्वारा संगीतबद्ध महबूब खान की फिल्म ‘मदर इंडिया’ को तो हिन्दुस्तान की तरफ से ऑस्कर के लिए भी नामांकित किया गया था .
इसके बाद मुग़ल-ए-आज़म का संगीत भी इस फिल्म जैसा ही भव्य है. नौशाद ने लता मंगेशकर की आवाज़ के साथ संगीत का जो कारनामा किया उसे दुनिया देखती रह गयी. ‘प्यार किया तो डरना क्या’ गाने को शकील साहब से 105 बार दुरुस्त करवाया, खुद भी बैठे और गाने में गूंज (इको) का असर लाने के लिए लता जी से इसे बाथरूम में गवाया. शमशाद बेगम की आवाज़ में होली के गीत ‘होली आई रे कन्हाई रंग बरसे बजा दे ज़रा बांसुरी’ का गीत तो होली के दिन आज भी जरुर सुना जा सकता है .
कहा जाता है कि शर्म के मारे इनके घरवालों ने दुनिया से उनके संगीतकार होने की बात छिपाई थी और जिस लड़की से शादी तय हुई उसे और घरवालों को कहा गया था कि लड़का बॉम्बे में दर्ज़ी है. फिर शबे-बारात के रोज़ बैंड-बाजे वाले ‘रतन’ फिल्म में उनके बनाये गीतों को बजा रहे थे. लड़की के घरवाले इस तरह के संगीत पर गालियां दे रहे थे और नौशाद साहब घोड़ी पर बैठे मुस्कुरा रहे थे .
नौशाद पहले संगीतकार थे जिन्होंने हिन्दुस्तानी सिनेमा में शास्त्रीय और पश्चिमी संगीत का फ्यूज़न किया था. ‘साउंड मिक्सिंग’ शुरू करने वाले भी वे पहले संगीतकार थे. इस तकनीक में गायक की आवाज़ और संगीत को अलग-अलग ट्रैक पर रिकॉर्ड किया जाता है और बाद में दोनों को मिलाया जाता है. नौशाद ने कुल 65 फिल्मों को अपने खुबसुरत संगीत से नवाज़ा था . उन्हें 1981 में दादा साहब फाल्के सम्मान और बाद में पद्मभूषण भी दिया गया. नौशाद साहब लखनऊ के बारे में कहते थे
रंग नया है लेकिन घर ये पुराना है
ये कूचा मेरा जाना पहचाना है
क्या जाने क्यूं उड़ गए पंक्षी पेड़ों से
भरी बहारों में गुलशन वीराना है
5 मई 2006 को नौशाद साहब इस दुनिया से अलविदा हो गये .