जर्मन दार्शनिक व अर्थशास्त्री कार्ल मार्क्स का नाम किसी पहचान का मोहताज नही है . जो लोग अन्याय, गैर-बराबरी और शोषण को खत्म होते देखना चाहते हैं उनके लिए आज का दिन यानी 5 मई बहुत ही ख़ास है. इस दिन कार्ल मार्क्स का जन्म हुआ था और आज उनका 200वां जन्मदिन है.
मार्क्स के क्रांतिकारी विचारो का ही ये परिणाम था कि सोवियत संघ, साम्यवादी चीन, पूर्वी यूरोप सहित दुनिया भर में समाजवादी क्रांतियों से अनेक समाजवादी सरकारों का गठन हुआ. हालांकि मार्क्स की आदर्श परिकल्पना को ये समाजवादी सरकारे हकीकत में नही बदल सकी जिसके फलस्वरूप धीरे -धीरे दुनियाभर में समाजवाद कमजोर होता गया .इसके बावजूद आज भी कई देशो में समाजवादी सरकारे शासन चला रही है .
मार्क्स ने आम जनता का चिन्तन कर अनेक राजनैतिक और आर्थिक विचारधाराए प्रस्तुत की . उन्होंने वैज्ञानिक समाजवाद के साथ वर्ग संघर्ष की व्याख्या भी प्रस्तुत की . 'दास कैपिटल ' पूंजीवाद पर लिखी उनकी एक सर्वोत्तम पुस्तक है . मार्क्स ने उस सर्वग्राही पूंजीवाद के ख़िलाफ़ दार्शनिक तरीक़े तर्क रखे, जिसने पूरी मानव सभ्यता को ग़ुलाम बना लिया. उन्होंने पूंजीवादी समाज में 'वर्ग संघर्ष' की बात की है और बताया है कि कैसे अंततः संघर्ष में सर्वहारा वर्ग पूरी दुनिया में बुर्जुआ वर्ग को हटाकर सत्ता पर कब्ज़ा कर लेगा. वास्तव में 20वीं शताब्दी में मज़दूरों ने रूस, चीन, क्यूबा और अन्य देशों में शासन करने वालों को उखाड़ फेंका और निज़ी संपत्ति और उत्पादन के साधनों पर कब्जा कर लिया. मजदूरों के हितो की लड़ाई लड़ते हुए सन 1864 में लंदन में 'अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ' की स्थापना में भी मार्क्स ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी .
मार्क्स का मानना था कि बाज़ार को चलाने में किसी अदृश्य शक्ति की भूमिका नहीं होती. बल्कि वो कहते हैं कि मंदी का बार बार आना तय है और इसका कारण पूंजीवाद में ही निहित है.मार्क्स के सिद्धांत का एक अहम पहलू है- 'अतिरिक्त मूल्य.' ये वो मूल्य है जो एक मज़दूर अपनी मज़दूरी के अलावा पैदा करता है. मार्क्स के मुताबिक़, समस्या ये है कि उत्पादन के साधनों के मालिक इस अतिरिक्त मूल्य को ले लेते हैं और सर्वहारा वर्ग की क़ीमत पर अपने मुनाफ़े को अधिक से अधिक बढ़ाने में जुट जाते हैं. इस तरह पूंजी एक जगह और कुछ चंद हाथों में केंद्रित होती जाती है और इसकी वजह से बेरोज़गारी बढ़ती है और मज़दूरी में गिरावट आती जाती है.
साल 1848 में, जब कार्ल मार्क्स कम्युनिस्ट घोषणापत्र लिख रहे थे, तब उन्होंने बाल श्रम का जिक्र किया था. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संघ के साल 2016 में जारी आंकड़ों के मुताबिक आज भी दुनिया में 10 में से 1 बच्चा बाल श्रमिक है. आज यदि बहुत सारे बच्चे कारखाना को छोड़कर स्कूल जा रहे हैं तो यह कार्ल मार्क्स की ही देन है. मार्क्स के अनुसार अधिकांश समय आपको आपकी मेहनत के हिसाब से पैसे नहीं दिए जाते और आपका शोषण किया जाता है .इसलिए मार्क्स चाहते थे कि हमारी ज़िंदगी पर हमारा खुद का अधिकार हो, हमारा जीना सबसे ऊपर हो. वो चाहते थे कि हम आज़ाद हो और हमारे अंदर सृजनात्मक क्षमता का विकास हो.उन्होने अन्याय और भेदभाव से लड़ने के लिए एकजुट होकर संगठित विरोध करने की बात कही . 19वीं शताब्दी में. हालांकि उस समय सोशल मीडिया नहीं था फिर भी वो पहले शख़्स थे जिन्होंने इस तरह के सांठगांठ की व्याख्या की थी.उन्होंने उस समय सरकारों, बैंकों, व्यापारों और उपनिवेशीकरण के प्रमुख एजेंटों के बीच सांठगांठ का अध्ययन किया. कार्ल मार्क्स ने मीडिया की ताक़त महसूस की थी. लोगों की सोच प्रभावित करने के लिए यह एक बेहतर माध्यम था. इन दिनों हम फेक़ न्यूज़ की बात करते हैं, लेकिन कार्ल मार्क्स ने इन सब के बारे में पहले ही बता दिया था.
मार्क्स का कहना था ,दार्शनिकों ने अब तक दुनिया की व्याख्या की है जब कि सवाल उसे बदलने का है. दुनिया भर में मानवता के लिए वैचारिक क्रांति के बीज बोने वाले कार्ल मार्क्स ने 14 मार्च 1883 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया .