Friday, 26 October 2018

गणेश शंकर विद्यार्थी



























‘मैं हिन्दू-मुसलमान झगड़े की मूल वजह चुनाव को समझता हूं. चुने जाने के बाद आदमी देश और जनता के काम का नहीं रहता.

यह महत्वपूर्ण विचार देश के फतेहपुर जिले के ह्थगाव में ही जन्मे और प्रसिद्ध पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी जी के है .किन्तु विडम्बना यह है कि आज के बिकाऊ मिडिया के दौर में श्री गणेश जी अपने गृह जिले फतेहपुर ही नहीं वरन पत्रकारिता की दुनिया में भी अनजान हो चुके है .भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय जिन पत्रकारों ने अपनी लेखनी को हथियार बनाकर आजादी की लड़ाईलड़ी, उनमें गणेश शंकर विद्यार्थी का नाम अग्रणी व उल्लेखनीय है. 

श्री विद्यार्थी जी का जन्म 26 अक्टूबर, 1890 को हुआ था. इनके पिता का नाम श्री जयनारायण था. इनके पिता एक स्कूल में अध्यापक थे और उर्दू व फारसी के अच्छे जानकार थे. विद्यार्थी जी की शिक्षा-दीक्षा मुंगावली (ग्वालियर) में हुई थी.

कलम के धनी विद्यार्थी जी का झुकाव साहित्य की तरफ भी था . उन्होंने हिंदी साहित्य को सम्पन्न बनाने में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया . विद्यार्थी जी ने 'प्रभा ' और 'प्रताप ' नामक साप्ताहिक पत्रों का कुशल सम्पादन भी किया . 'प्रताप ' को उन्होंने अपने क्रांतिकारी विचारों की बदौलत देश के स्वतन्त्रता संग्राम का मुखपत्र ही बना दिया . अपने साहित्य और पत्रकारिता से उन्होंने न सिर्फ अंग्रेजी राज का विरोध किया अपितु समाजिक भाईचारा को भी मजबूत किया . उनकी पत्रकारिता कितनी गम्भीर और पेशेवर थी इसकी झलक उनके ही शब्दों में कुछ इस प्रकार है .....

जो कलम सरीखे टूट गये पर झुके नहीं, 
उनके आगे यह दुनिया शीश झुकाती है 
जो कलम किसी कीमत पर बेची नहीं गई, 
वह तो मशाल की तरह उठाई जाती है”















विद्यार्थी जी अपने क्रन्तिकारी साहित्य और ईमानदार पत्रकारिता के कारण अंग्रेजो की आँखों में सदैव चुभते रहे . वह कई बार जेल गये . अपनी एक कविता 'सौदा ए वतन ' के कारण अंग्रेजो ने उन पर राजद्रोह का मुकदमा भी लगाया . विद्यार्थी जी ने सामंती शोषण और किसानों के दमन उत्पीड़न का भी जोरदार विरोध किया.उन्होने कानपुर के मिल मजदूरों को उनका वाजिब हक दिलाने की लड़ाई भी काफी प्रभावी ढंग से लड़ी तथा वह उसमें सफल भी रहे.

दरअसल विद्यार्थी जी साम्प्रदायिकता के घोर विरोधी थे और उन्होंने जीवनभर एकजुटता, कौमी एकता पर जोर दिया. भगतसिंह और उनके साथियों को फांसी की सजा सुनाये जाने के बाद देश भर में जो साम्प्रदायिक दंगे शुरू हुए, विद्यार्थी जी ने उन्हें रोकने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी लेकिन दंगों को रोकने का प्रयास करते हुए वह कानपुर में राष्ट्रविरोधी ताकतों के शिकार बन गये. जिसके कारण 25 मार्च 1931 को पत्रकारों के इस पुरोधा का दुखद देहान्त हो गया. 

आज जब देश के लोकतंत्र का चौथा खम्भा धराशाई हो चूका है और साम्प्रदायिकता अपने पूरे शबाब पर है ,तब श्री गणेश शंकर विद्यार्थी जी जैसे ईमानदार व देशभक्त पत्रकार की कमी बेहद खल रही है . उनके गृह जनपद फतेहपुर के समस्त निवासियों की तरफ से इस संछिप्त लेख के माध्यम से मै अमर शहीद श्री गणेश शंकर विद्यार्थी जी को शत -शत नमन करता हु .