पूर्व प्रधानमन्त्री चन्द्रशेखर जी का जन्म 17 अप्रेल 1927 में पूर्वी उत्तरप्रदेश के बलिया जिले के इब्राहीमपट्टी में एक कृषक परिवार में हुआ था और इनकी स्कूली शिक्षा भीमपुरा के राम करन इण्टर कॉलेज में हुई थी . स्नातक की पढाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय से किया. चन्द्रशेखर अपने विद्यार्थी जीवन से ही राजनीति में जुड़ गये थे ,सम्भवतः उनके ऊपर समाजवादी नेता डा राम मनोहर लोहिया की युवा राजनीति का भी कुछ प्रभाव था . जिसके कारण उनकी छवि भी एक "फायरब्रान्ड" यानि 'युवा तुर्क ' की बन गई . अपने विद्यार्थी जीवन के दौरान ही वह समाजवादी राजनीति में भी सक्रिय हो गये जिससे उन्हें प्रख्यात समाजवादी नेता आचार्य नरेंद्र देव के साथ बहुत निकट से जुड़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था . उन्हें बलिया का ज़िला प्रजा समाजवादी दल सचिव चुना गया और इसके 1 वर्ष के बाद ही वह राज्य स्तर पर इसके संयुक्त सचिव भी बन गए. तत्पश्चात 1962 में उन्हें उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुना गया . इस समय उनकी उम्र मात्र 35 वर्ष थी. तब तक वह शोषितों और आम जनता की खातिर उनके हक़ में आवाज उठाने की खातिर काफी लोकप्रिय हो गये थे . चंद्रशेखर को सिद्धांतवादी राजनीति के लिए जाना जाता है और यही कारण है कि विपक्षी नेताओं के साथ उनके सम्बन्ध सदैव मधुर रहे.
श्री चन्द्रशेखर जी वाणी के साथ - साथ अपनी लेखनी में भी सशक्त थे . उन्हें पत्रकारिता का भी शौक था. इसलिए वह 1969 में दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक पत्रिका ‘यंग इंडियन’ के संस्थापक एवं संपादक बन गये . पत्रिका में अपने सम्पादन से उन्होंने एक अमिट छाप छोड़ी . उनके लेख विद्वतापूर्ण होते थे एवं देश और समाज की समकालीन परिस्थितियों पर भी केन्द्रित होते थे .उनके विचार क्रांतिकारी थे जो देश में भाईचारे और उन्नति के लिए भी प्रेरणाप्रद थे . अपने विचारो में श्री चन्द्रशेखर एक नेता से ज़्यादा एक सुलझे हुए चिंतक नज़र आते थे. 1975 में आपातकाल के दौरान वैचारिक आदान -प्रदान पर इंदिरा जी ने प्रतिबन्ध लगा दिया था और उनके ‘यंग इंडियन’ को भी बंद कर दिया गया था. इंदिरा गांधी ने जब आपातकाल लगाने की घोषणा की तब उसी रात अर्थात् 25 जून 1975 को चंद्रशेखर जी, श्री जयप्रकाश नारायण जी से मिलने संसद भवन थाने पहुच गये. वह उनसे मिल कर जब निकल ही रहे थे, तभी किसी पुलिस अधिकारी ने चंद्रशेखर को सूचना दी कि आपको भी गिरफ्तार किया जाता है . तब चन्द्रशेखर को भी जेल जाना पड़ा . लेकिन जेल में रहते हुए भी उन्हें लेखन कर्म से रोका नहीं जा सका. जेल में रहते हुए श्री चंद्रशेखर जी ने अपना लेखन जारी रखा और 'मेरी जेल डायरी' के नाम से उनकी एक पुस्तक प्रकाशित हुई .जिसमे उनके जेल के अनुभवों का सभी लेखा-जोखा है. राजनीतिक बंदी होते हुए भी उस समय ऐसे सभी बंदियों को आवश्यक सुविधाओं से वंचित रखा गया था. चंद्रशेखर जी भाषा के उच्च कोटि के विद्वान भी कहे जाते हैं. हिंदी , अंग्रेजी और संस्क्रत तीनो भाषाओं पर उनकी प्रभावी पकड़ थी. . कुछ समय बाद फरवरी 1989 से यंग इण्डिया का पुनः नियमित रूप से प्रकाशन शुरू हुआ तब चन्द्रशेखर जी इसके संपादकीय सलाहकार बोर्ड के अध्यक्ष चुने गये .
1977 मे जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो उन्होने मंत्री पद न लेकर जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद ग्रहण किया . 24 मार्च, 1977 को केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी. 22 से 24 मार्च के बीच जनता पार्टी के तमाम नेता मंत्री बनने की कोशिश करते दिखे. चंद्रशेखर जी को भी मंत्री बनने का प्रस्ताव था, लेकिन उन्होंने स्वीकार नहीं किया. उस समय जयप्रकाश नारायण जसलोक अस्पताल में भर्ती थे. उन्होंने चंद्रशेखर जी को संदेश दिया कि यदि मोरारजी देसाई आपको मंत्री बनाते हैं, तो आपको मंत्रिमंडल में शामिल होना चाहिए. उन्होंने जेपी की सलाह को ठुकराते हुए कहा कि मोरारजी देसाई ने मंत्री बनने का प्रस्ताव किया है, लेकिन मैं मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होऊंगा और इसका कारण वे मिलने के बाद बतायेंगे. 1979 में जनता पार्टी टूटी और इसके 10 साल बाद 11 अक्तूूबर, 1988 को जनता दल बना. 1979 से 1988 तक वे जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे. इसी दौरान उन्होंने 'पदयात्रा ' के रूप में 'भारत यात्रा' की. श्री चन्द्र शेखर ने 6 जनवरी 1983 से 25 जून 1983 तक दक्षिण के कन्याकुमारी से नई दिल्ली में राजघाट (महात्मा गांधी की समाधि) तक लगभग 4260 किलोमीटर की मैराथन दूरी पैदल (पदयात्रा) तय की थी. उनकी इस पदयात्रा का एकमात्र लक्ष्य था – लोगों से मिलना एवं उनकी महत्वपूर्ण समस्याओं को समझना. उनकी इस पदयात्रा से इंदिरा गाँधी जी को थोड़ी घबराहट भी हुई थी.
चन्द्रशेखर ने सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा सहित देश के विभिन्न भागों में लगभग 15 भारत यात्रा केंद्रों की स्थापना की ताकि वे देश के पिछड़े इलाकों में लोगों को शिक्षित करने एवं जमीनी स्तर पर कार्य भी कर सकें. श्री चन्द्रशेखर जी ने समाजवादी जनता पार्टी (राष्ट्रीय ) का नेत्रत्व किया और भूतपूर्व प्रधानमन्त्री वी पी सिह द्वारा प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद खुद कांग्रेस के समर्थन से सत्तारूढ़ हुए . इन्हें 10 नवम्बर 1990 को देश के नवे प्रधानमन्त्री के रूप में राष्ट्रपति श्री रामास्वामी वेंकटरामण ने पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई.
प्रधानमंत्री बनने के बाद श्री चंद्रशेखर जी ने बेहद संयमित रूप से अपने दायित्वों का निर्वाह किया. वह जानते थे कि कांग्रेस के समर्थन से ही उनकी सरकार टिकी हुई है. यह भी सच है कि विश्वनाथ प्रताप सिंह जिस प्रकार के प्रधानमंत्री साबित हो रहे थे, उसे देखते हुए उन्होंने कांग्रेस की बात पर विश्वास किया कि वह उसके समर्थन से सरकार बना सकते हैं. लेकिन चंद्रशेखर कभी इस भुलावे में नहीं थे कि कांग्रेस लम्बे समय तक उन्हें प्रधानमंत्री बना रहने देगी . देश को मध्यावधि चुनाव से बचाने के लिए भी वह प्रधानमंत्री बने थे. खाड़ी संकट में विदेशी मुद्रा संकट होने पर श्री चंद्रशेखर जी ने स्वर्ण के रिजर्व भण्डारों से यह समस्या सुलझाई. उनके कुशल प्रबन्धन से कुछ ही समय में स्वर्ण के रिजर्व भण्डार भर गए और विदेशी मुद्रा का संतुलन भी बेहतर हो गया था .
कुछ समय बाद कांग्रेस के प्रति उनकी सम्भावना सही साबित हुई और जल्द ही कांग्रेस ने यह आरोप लगा कर कि चंद्रशेखर सरकार के द्वारा राजीव गांधी जी की गुप्तचरी करवाई जा रही है , 5 मार्च 1991 को उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया. ऐसे में चंद्रशेखर जी ने संसद भंग करके नए चुनाव सम्पन्न कराने की अनुशंसा राष्ट्रपति को प्रेषित कर दी. वह लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुसार ही कार्य करना चाहते थे. इस प्रकार चंद्रशेखर लगभग 4 माह भारत के प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हुए. परिस्थितियों के मद्देनज़र तत्कालीन राष्ट्रपति श्री रामास्वामी वेंकटरमण ने चंद्रशेखर जी से नया प्रधानमंत्री चुने जाने तक अपने पद पर कार्य करने को कहा. इस प्रकार उन्होंने 21 जून 1991 तक प्रधानमंत्री का कार्यभार देखा. उनका कार्यकाल किसी भी विवाद में नहीं आया और उन्होंने सदैव निष्ठापूर्वक अपने कर्तव्यों को अंजाम दिया.
अयोध्या में मन्दिर -मस्जिद विवाद पर वह सर्वमान्य हल हेतु निरंतर प्रयासरत थे किन्तु कांग्रेस के समर्थन वापस लेने से उनकी सरकार ही गिर गयी . जिसके बाद इस मुद्दे पर बातचीत के रास्ते ही बंद हो गये और फिर नरसिम्हा राव की सरकार के दौरान बाबरी मस्जिद काण्ड भी हो गया . ऐतिहासिक नजरिये से देखा जाए तो चन्द्रशेखर यदि कुछ समय और प्रधानमन्त्री रह जाते तो सम्भवतः बाबरी मस्जिद काण्ड की नौबत ही नही आती .
चंद्रशेखर जी अपने जीवन के अंतिम दिनों स्वाथ्य से जूझते रहे . उन्हें बॉन मेरो कैंसर था और बाद में प्लाज्मा कैंसर भी हो गया था. इलाज हेतु 3 मई 2007 को नई दिल्ली में भर्ती कराया गया, जहाँ पर 8 जुलाई 2007 को उनका निधन हो गया. श्री चंद्रशेखर जी एक कर्मठ एवं ईमानदार राजनेता थे . वह देश के प्रथम समाजवादी प्रधानमन्त्री भी माने जाते है . चन्द्रशेखर एक प्रखर वक्ता, लोकप्रिय राजनेता, विद्वान लेखक और बेबाक समीक्षक भी थे . देश के प्रधानमंत्री के रूप में कुल 8 महीने से भी कम के कार्यकाल (10 नवंबर, 1990 से 20 जून, 1991) में उन्होंने नेतृत्व क्षमता और दूरदर्शिता की ऐसी छाप छोड़ी, जिसे आज भी याद किया जाता है. उन्होंने अपने जीवन में सदैव राजनैतिक शिष्टाचार और नैतिकता का पालन किया . समाजवादी विचारों में उनकी गहरी आस्था थी . वह आजीवन जनता की सेवा को तत्पर रहे .
जीवन-यात्रा
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1927 : 17 अप्रैल को बलिया जिले (यूपी) के इब्राहिम पट्टी गांव में जन्म.
1951 : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में परास्नातक. बलिया में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के जिला सचिव पद पर निर्वाचित.
1962 : उत्तर प्रदेश से प्रसोपा से राज्यसभा के लिए निर्वाचित.
1964 : प्रसोपा छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हुए.
1967 : कांग्रेस के महासचिव बने.
1969 : ‘यंग इंडिया’ नामक साप्ताहिक पत्रिका की शुरुआत.
1975 : आपातकाल में गिरफ्तार, पत्रिका पर तालाबंदी.
1977 : नवगठित जनता पार्टी में शामिल हुए और इसके अध्यक्ष बने.
1983 : छह जनवरी से 25 जून तक 4,260 किलोमीटर की पद यात्रा की.
1990 : विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार के गिरने और जनता दल में फूट के बाद कांग्रेस के समर्थन से भारत के प्रधानमंत्री बने.
1991 : 5 मार्च को चंद्रशेखर सरकार से कांग्रेस ने समर्थन वापस लिया. अगले दिन पद से इस्तीफा. कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में 20 जून तक कार्यरत.
2007 : 8 जुलाई को 80 वर्ष की आयु में कैंसर की बीमारी से निधन.