आज से ठीक 125 वर्ष पहले 11 सितम्बर, 1893 को शिकागो (अमेरिका) में ऐतिहासिक विश्व धर्म सम्मेलन हुआ आयोजित हुआ था . इस सम्मेलन में भारत की ओर से स्वामी विवेकानंद जी ने अपने ऐतिहासिक वक्तव्य के माध्यम से भारत के हिन्दू धर्म का एक उदारवादी चेहरा दुनिया के सामने रखा था. इसी सम्मेलन में विवेकानंद के दिए गए उस चर्चित वक्तव्य की याद में 11 सितम्बर 2018 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद ने भी एक सम्मेलन आयोजित किया है . जाहिर है संघ का आयोजन है तो एजेंडा हिंदुत्व से अलग नही हो सकता है
संघ के हिंदुत्व और विवेकानन्द के हिंदुत्व में काफी भिन्नता है . स्वामी विवेकानन्द हिन्दू समाज में व्याप्त बुराइयों और जड़ता पर खुल कर बोलते थे . वह सन्यासी ही नही अपितु एक श्रेष्ठ समाजसुधारक भी थे . उन्होंने अपने समय के हिन्दू कट्टरपंथियों और पाखंडी धर्माचार्यो को ललकारते हुए (कास्ट, कल्चर एंड सोशलिज्म) में कहा है- "शूद्रों ने अपने हक मांगने के लिए जब भी मुंह खोला, उनकी जीभें काट दी गई. उनको जानवरों की तरह चाबुक से पीटा गया. लेकिन अब आप उन्हें उनके अधिकार लौटा दो वरना जब वे जागेंगे और आप (उच्च वर्ग) के द्वारा किए गए शोषण को समझेंगे, तो अपनी फूंक से आप सबको उड़ा देंगे. यही (शूद्र) वे लोग हैं, जिन्होंने आपको सभ्यता सिखाई है, और ये ही आपको नीचे भी गिरा देंगे. सोचिए कि किस तरह शक्तिशाली रोमन सभ्यता गॉलों के हाथों मिट्टी में मिला दी गई. सैकड़ों वर्षो तक अपने सिर पर गहरे अंधविास का बोझ रखकर, केवल इस बात पर र्चचा में अपनी ताकत लगाकर कि किस भोजन को छूना चाहिए और किसको नहीं, और युगों तक सामाजिक अत्याचारों के तले सारी इंसानियत को कुचलकर आपने क्या हासिल किया और आज आप क्या है?..आओ पहले मनुष्य बनो और उन पंडे-पुजारियों को निकाल बाहर करो जो हमेशा आपकी प्रगति के खिलाफ रहे हैं, जो कभी अपने को सुधार नहीं सकते और जिनका ह्रदय कभी भी विशाल नहीं बन सकता. वे सदियों के अंधविास और जुल्मों की उपज है. इसलिए पहले पुजारी-प्रपंच का नाश करो, अपने संकीर्ण संस्कारों की काया तोड़ो, मनुष्य बनो और बाहर की ओर झांको, देखो कि कैसे दूसरे राष्ट्र आगे बढ़ रहे हैं."
स्पष्ट है विवेकानन्द संघ की हिंदुत्व की विचारधारा से बिलकुल मेल नही खाते है किन्तु फिर भी उन्हें संघ के हिंदुत्व के प्रमुख चेहरे के रूप में प्रस्तुत करने के पुरे प्रयास जारी है . यदि, यही विवेकानन्द जी आज कही जीवित होते तो क्या हिंदुत्व की रुढ़िवादी ताकते उन्हें अपना नायक स्वीकार कर पाती ?