रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के पास लोक सभा में 6 सांसद हैं और वह बिहार से भाजपा के सहयोगी दल के रूप में केंद्र की सत्ता में शामिल रहे है .
रामविलास पासवान ने अपनी राजनीति की शुरुआत साल 1969 में डा राम मनोहर लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से की थी. उस वक्त डा लोहिया पहले इंसान थे जिन्होंने आजादी के बाद गैर कांग्रेसवाद का बीज बोया था . इसी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के दम पर 25 साल के नवयुवक राम विलास पासवान पहली बार बिहार विधानसभा पहुंच गए. इसके बाद जब आपातकाल में इंदिरा गांधी के खिलाफ माहौल बनने लगा तो वह जननायक जयप्रकाश नारायण और लोकबन्धु राजनारायण के भी बेहद करीब आ गए और 1977 में रिकॉर्ड वोटों से चुनाव जीतकर लोकसभा भी पहुंच गये . हालांकि रामविलास पासवान ने अपनी राजनीति की शुरुआत तत्कालीन वरिष्ठ समाजवादी नेताओ के मार्गदर्शन में अवश्य की थी किन्तु उनके लम्बे राजनैतिक जीवन में उन समाजवादी आदर्शो का चरित्र कभीदिखाई नही दिया . यही नही वह सत्ता की चाह में अपने सिद्धांत भी बदलते रहे. उनकी कोशिश रही कि खासतौर पर बिहार में उन्हें एक दलित नेता के रूप में जाना जाए . कुछ हद तक वह इसमें कामयाब भी हुए . जिससे वर्ष 1980, 1989, 1996 1998, 1999, 2004 और 2014 के लोकसभा चुनावो में वह अपना चुनाव जीतते रहे है .
कभी अटल सरकार में सत्ता का सुख लेने वाले रामविलास पासवान ने 2002 में नरेंद्र मोदी और गुजरात दंगों को मुद्दा बनाकर भाजपा का साथ भी छोड़ दिया था , और फिर मनमोहन सरकार में मंत्री भी बन गये. इसके बाद विडम्बना देखिये कि साल 2014 में यही राम विलास पासवान NDA के साथ जाकर उन्ही नरेंद्र मोदी की सरकार भी चलवा रहे है .
राजनीति में अवसर वादिता का इससे बड़ा उदाहरण और कहा मिलेगा . हालाँकि अब राम विलास पासवान को अपने बेटे चिराग पासवान के कैरियर की चिंता भी सता रही है लेकिन बिहार में उनकी छवि अब न तो अतीत के एक समाजवादी नेता की रह गयी है और न ही किसी कर्मठ दलित नेता की . ऐसे में उन्हें सत्ता का सुख भले ही कुछ और समय तक नसीब होता रहे किन्तु वास्तव में भविष्य में उनकी और पार्टी की राजनैतिक जमीन काफी बंजर ही नजर आ रही है .
अपनी बीमारी से लड़ते हुए 8 अक्तूबर 2020 को 74 वर्षीय राम विलास पासवान जी दुनिया से विदा ले चुके है .
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