Sunday, 17 February 2019

पुलवामा अटैक और जेटली जी की बयानबाजी
























अभी कुछ दिन पहले जेटली जी कह रहे थे यदि हमारी सरकार से जनता असंतुष्ट है तो देश भर में कही -कोई जन आन्दोलन क्यों नहीं हुआ .

आदरणीय जेटली जी आपको या तो जन भावनाओ को पढना नहीं आता या आप उसे किसी मजबूरीवश नकारना चाहते होंगे . याद दिला दू ,कुछ ऐसा ही कृत्य आपकी पिछली अटल सरकार ने भी देश की प्याज के आंसू रोने वाली जनता को 'इण्डिया शायनिंग ' के फ्लेवर के साथ पेश किया था . खैर यह इण्डिया शायनिंग किस तरह धडाम हुआ था , वह आप सब जानते है. वापस मूल मुद्दे पर आते है . पुलवामा हमले में देश के लगभग 50 सैनिको के शहीद होने के बाद आज देश भर की सडको में भारी गुस्सा भरा हुआ है , क्या यह गुस्सा भी किसी को नजर नही आ रहा है . जनता में यह नाराजगी मुख्य रूप से पाकिस्तान और वहा बैठे आतंकवादियो पर ही है किन्तु देश की सत्ता पर तो आपकी सरकार काबिज है , अत: नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी भी आपकी ही तो हुई न . अतीत में आपकी सरकार ने सर्जिकल स्ट्राईक का क्रेडिट लिया हुआ है तो फिर इस नुक्सान की जिम्मेदारी कोई और क्यों लेगा ?

गरीब शहीदों के परिवारों में चल रहा यह मातम काफी ह्रदय विदारक है . उनके मासूम बच्चे और घरो की महिलाए सदमे में है . एकाएक इतनी बड़ी आतंकी वारदात ने देश की जनता को झकझोर सा दिया है .सडको पर हो रहे जबर्दस्त विरोध प्रदर्शन इसी आक्रोश की प्रतिक्रिया है . क्या यह एक व्रहद जन -आन्दोलन नही है . आज देश का प्रत्येक नागरिक सरकार से पाकिस्तान से तुरंत बदला लेने की मांग कर रहा है और ऐसा क्यों न करे ? आप की राष्ट्रवादी सरकार ने ही तो 1 के बदले 50 पाकिस्तानी सर लाने का वादा किया था . तो यह अवसर अब आ गया है . अगर अबकी बार आप चूके तो फिर यह आपकी एक और ऐतिहासिक भूल होगी .

Thursday, 14 February 2019

कुम्भ

























भाषा में कलश को ही कुंभ कहा जाता है और कुंभ का अर्थ होता है घड़ा. कहा जाता है कि पवित्र नदियों के किनारे लगने वाले इस कुम्भ का संबंध समुद्र मंथन के दौरान अंत में निकले अमृत कलश से जुड़ा हुआ है. प्रचलित कथाओ के अनुसार जब देवता-असुर अमृत कलश को एक- दूसरे से छीन रह थे तब उसकी कुछ बूंदें धरती की 3 नदियों में गिरी थीं. इसलिए ऐसी मान्यता है कि जहां पर ये बूंदें गिरी थी उन्ही स्थानों पर ही कुंभ का आयोजन होता है.और इन 3 नदियों के नाम है:- गंगा, गोदावरी और क्षिप्रा.

इन्ही धार्मिक कथाओ के अनुसार ही अमृत पर अधिकार को लेकर देवता और दानवों के बीच लगातार 12 दिन तक युद्ध हुआ था. जिसे मनुष्यों के 12 वर्षो के समान बताया जाता हैं. इस गणित को आधार मानकर कुंभ भी 12 माने जाते हैं. जिसमे से 4 कुंभ पृथ्वी पर होते हैं और 8 कुंभ देवलोक में होते हैं. अब देवलोक में तो वही स्नान कर पायेगा जो देवलोक जाने के लायक होगा . इसलिए बाकी के 8 कुम्भ हर किसी के बस में तो नहीं ही होंगे .

धर्मिक और आध्यात्मिक मान्यताओ से जुड़े इस कुम्भ ने एक मेले के रूप में अपना स्थान कब बना लिया ,यह कहना मुश्किल है .किन्तु इतिहासकारों के अनुसार इस मेले का प्रथम लिखित प्रमाण महान बौद्ध तीर्थयात्री ह्वेनसांग के लेख से मिलता है जिसमें छठवीं शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के शासन में होने वाले कुंभ का प्रसंगवश वर्णन किया गया है. हालाँकि समुद्र मंथन के काल और सम्राट हर्षवर्धन के काल के मध्य कुम्भ का वर्णन कही और क्यों नही है ,यह प्रश्न इतिहासकारों के शोध का विषय भी अवश्य होना चाहिए था .