Sunday, 18 February 2018

राम क्रष्ण परमहंस



स्वामी राम क्रष्ण परमहंस को संतो की उस श्रेणी में रखा जा सकता है जो असाधारण होते हुए भी समाज के सबसे साधारण व्यक्ति बन कर जिए . ऐसे संतो को उनके प्रतिभाशाली शिष्यों ने देश -दुनिया को बताया अन्यथा उन्हें खुद को प्रसिद्धि दिलाने की कोई चाहत तक नही थी . मसलन सुकरात को प्लेटो , रामानन्द को कबीर और इसी तरह राम क्रष्ण को स्वामी विवेकानन्द जैसे शिष्यों के कारण दुनिया ने बेहतर तरीके से समझा . 


राम क्रष्ण ने धर्म के छेत्र में अनेक प्रयोग किये थे .वह ईश्वर को देखना और महसूस करना चाहते थे . जिसके लिए उन्होंने हिन्दू , मुस्लिम और ईसाई सभी धर्मो के मन्दिर मस्जिद चर्च में जाकर पूजा -अर्चना की . यहाँ तक उन्होंने ईश्वर की एकरूपता को मानकर कभी 5 वक्त की नमाज भी पढ़ी .

ईश्वर को जानने के लिए उनका व्यवहार पागलपन तक पहुच जाता था . जिन्दा रहते ईश्वर प्राप्ति के लिए ही एक बार उन्होंने जन्म से ब्राह्मण होने के अपने अहंकार को नष्ट करने के लिए भी एक प्रयोग किया. वह तत्कालीन समाज में कथित अछूत माने जानेवाले एक परिवार में पहुंचे और उनके घर दासों की तरह सारा काम करने की आज्ञा मांगने लगे. उस परिवार ने भारी पाप लगने के डर से उन्हें ऐसा नहीं करने दिया. लेकिन जब उस परिवार के लोग रात को सो जाते, तो रामकृष्ण उनके घर में घुस जाते और अपने बड़े-बड़े बालों से ही सारा घर झाड़-बुहार डालते थे
.


अपनी साधना और तपस्या से रामकृष्ण को वेदांत के माध्यम से यह समझ में आया कि सारे जीव आत्मतत्व हैं और आत्मा के बीच लिंग का कोई भेद नहीं है. अर्थात स्त्री-पुरुष का भेद तो केवल शरीर के स्तर पर ही है, आत्मा के स्तर पर नहीं. लेकिन यह भी अजीब बात है कि ईश्वर की कल्पना और बाद में उसकी अनुभूति रामकृष्ण ने महिला के रूप में ही की थी . उनके मुंह से जगदम्बा और मां जैसे संबोधन ही निकलते थे. कहते है अपनी पत्नी सारदामणि को भी वे मां ही कहा करते थे. इन दोनों का जब विवाह हुआ था तो रामकृष्ण 22 साल के थे और सारदामणि 5 साल कीं. यानी रामकृष्ण से 17 वर्ष छोटी थी .

रामकृष्ण के सबसे प्रिय शिष्य स्वामी विवेकानंद ने न्यूयॉर्क की एक सभा में अपने गुरु के बारे में एक ओजपूर्ण व्याख्यान दिया था, जो बाद में ‘मेरे गुरुदेव’ के नाम से प्रकाशित भी हुआ था . विवेकानंद ने इसमें कहा था- ‘एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण और आश्चर्यजनक सत्य जो मैंने अपने गुरुदेव से सीखा, वह यह है कि संसार में जितने भी धर्म हैं वे कोई परस्परविरोधी और वैरभावात्मक नहीं हैं- वे केवल एक ही चिरन्तन शाश्वत धर्म के भिन्न-भिन्न भाव मात्र हैं. ...इसलिए हमें सभी धर्मों को मान देना चाहिए और जहां तक हो उनके तत्वों में अपना विश्वास रखना चाहिए.’

इसी सभा में विवेकानंद ने आगे कहा- ‘श्रीरामकृष्ण का संदेश आधुनिक संसार को यही है— मतवादों, आचारों, पंथों तथा गिरजाघरों और मंदिरों की अपेक्षा ही मत करो. प्रत्येक मनुष्य के भीतर जो सार वस्तु अर्थात् ‘धर्म’ विद्यमान है इसकी तुलना में ये सब तुच्छ हैं. पहले इस धर्मधन का उपार्जन करो, किसी में दोष मत ढूंढ़ो, क्योंकि सभी मत, सभी पंथ अच्छे हैं. अपने जीवन के द्वारा यह दिखा दो कि धर्म का अर्थ न तो शब्द होता है, न नाम, न संप्रदाय, बल्कि इसका अर्थ होता है आध्यात्मिक अनुभूति. ...जब तुम दुनिया के सभी धर्मों में सामंजस्य देख पाओगे, तब तुम्हें प्रतीत होगा कि आपस में झगड़े की कोई आवश्यकता नहीं है और तभी तुम समग्र मानवजाति की सेवा के लिए तैयार हो सकोगे. इस बात को स्पष्ट कर देने के लिए कि सब धर्मों में मूल तत्व एक ही है, मेरे गुरुदेव का अवतार हुआ था.’

स्वयं स्वामी रामकृष्ण ने एक बार कहा था- ‘सांप्रदायिक भ्रातृप्रेम के बारे में बातचीत बिल्कुल न करो, बल्कि अपने शब्दों को सिद्ध करके दिखाओ.’ भारत जैसे अनेक धर्मो वालो इस देश को स्वामी रामक्रष्ण परमहंस के दर्शन और व्यवहार की सख्त जरूरत है .


(स्वामी रामक्रष्ण परमहंस अपने प्रमुख शिष्यों विवेकान्द समेत महा समाधि के पश्चात )




इन काउन्टर

गुजरात के सोहराबुद्दीन शेख, इशरत जहां, हाशिमपुरा आदि के बाद मध्यप्रदेश ,हरियाणा समेत राजस्थान में अनेक एनकाउंटर यहाँ की भाजपा सरकारों ने किये है . इसी क्रम में अब उत्तर प्रदेश में भी इनकाउन्टर का भूत चल-फिर रहा है . जाहिर है भाजपा ने गुजरात माडल को इन सभी राज्यों पर लागू किया है . 

इनकाउन्टर के बारे में देश का कानून और सविधान क्या कहता है , ये तो कोई कानून विशेषग्य ही बता पायेगा . फिलहाल समाज शास्त्र के अनुसार कोई अपराधी जन्म से नही पैदा होता है , बल्कि वे हमारे इसी समाज में बनाए जाते है. फूलन देवी इसका प्रत्यछ उदाहरण है . अगर बात रामराज्य की ही की जाए तो महर्षि बाल्मीकि जी को भी यदि सुधरने का अवसर नही मिलता तो 'रामायण ' कौन लिखता ? 

वास्तव में किसी डाक्टर का कर्तव्य मर्ज का इलाज करना होता है न कि रोगी को ही मार देना . इसी प्रकार किसी राज्य की सत्ता को अपराधो को रोकने का सम्भव प्रयास करना चाहिए . हालांकि अपराध मुक्त समाज / राज्य वास्तविकता में होना बिलकुल असम्भव है , ये एक कोरी कल्पना ही हो सकती है . जहा तक अपराधियों को मारने की बात है , देश में कई अपराधो पर कैपिटल पनिशमेंट होने के बावजूद भी वे अपराध कम होने के बजाय बढ़ते ही गये है . इसलिए इन्काउन्टर से अपराध समाप्त हो जायेंगे ये सोचना तर्कसम्मत तो नही है . इन अपराधियों को पकड़ कर उन पर उनके जुर्म की मात्रा के अनुसार अदालत से सजा मिलनी चाहिए और जेल में रह कर उन्हें सुधरने का भी एक अवसर अवश्य मिलना चाहिए . आज का सवाल इसी मुद्दे से जुडा हुआ है . 
क्या इनकाउन्टर करने से समाज अपराध मुक्त हो जाएगा ?

Saturday, 17 February 2018

आँख मारना


सोशल मिडिया से पता चला कि आँख मारना आजकल फिर से काफी वायरल हो गया है . वैसे आँख मारना प्रेम रस के साथ -साथ वीर रस की एक क्रिया मानी जानी चाहिए . आँख मारने के लिए भी हिम्मत तो होनी चाहिए . हालांकि इस कला पर पुरुषो का आधिपत्य रहा है लेकिन कुछ चंचल शोख महिलाये भी इस इस विधा में कुशल होती है . सीधी -साधी सौम्य महिलाये तो पुरुषो से इसी खौफ से नजरे तक नही मिला पाती कि कही उन्हें कोई मनचला आँख न मार दे . मेले और सार्वजनिक समारोहों में इस आँख मारने के विवाद में अक्सर कहा -सुनी देखी जा सकती है . हालांकि एक वक्त वह भी था जब खासतौर पर पुरुष वर्ग इसे लडकियों को छेड़ने या उनसे अपनी प्रेम अभिव्यक्ति को व्यक्त करने के लिए भी इसका सहारा लेते थे . दोनों में अगर सहमती हो गयी तो मुस्कुराहट नही तो सैंडल की मार भी मिल जाती थी . लेकिन यही आँख मारने का काम घर में अगर छोटे बच्चे करते है तो बड़े बुजुर्ग बहुत प्रसन्न होते है . हंसते -हंसते कुछ लोगो के तो आँखों से आंसू तक निकल आते है और पेट में जब तक दर्द नही होता , उनकी हंसी -ठहाका नही रुकती है .

कुछ साल पहले बाबा रामदेव टेलीविजन में योग सिखाते -सिखाते आँख मार जाते थे तब कहा जाता था उनकी आँख में ही कुछ समस्या है . बाबा जी ने भी कभी स्पष्टीकरण नही दिया . लेकिन दर्शक उनके इस कृत्य पर अपनी हंसी आज भी नही रोक पाते है . अनेक हास्य कलाकारों ने तो उनकी नकल उतार कर इस पर कई शो भी कर डाले है . आँख भी बड़ी कमाल की चीज होती है . इसके बगैर कोई शख्स इस फिजा की खूबसूरती का दीदार भी नही कर सकता है . लेकिन कमबख्त चश्मे के कारन इन आखो पर चारदीवारी सी बैठ जाती है . जिनकी नजर कमजोर हो जाती है उन्हें अपनी आँखों की खातिर चश्मे का सहारा लेना ही पड़ता है . 


आँखों से आँखे मिला कर दिल का हाल भी पता चल जाता है . आँख से आंसू न निकलते तो कमबख्त दुःख दर्द भी दिल के अंदर पथरी बन कर बैठ जाते . बात यदि दो आँख तक हो तो फिर भी ठीक है लेकिन सबको पता है तीसरी आँख भी होती है . ये वैसे तो बंद ही रहती है लेकिन जब खुलती है तो सर्वनाश ही होता है . यहाँ आख खुलने और आँख मारने में विरोधाभास है . कही दो आँखों में से एक आँख मारने से कोई घायल होता है तो दूसरी तरफ तीसरी आँख खुलने से खेल ही खत्म हो जाता है . 


मुख्य बात आँख मारने पर वापस आते है , पता नही आँख मारना कोई फूहड़ता है या एक हमारे सामाजिक जीवन की एक अंत : क्रिया , पुरुषो के साथ अब महिलाये भी इस कला में निपुण और निर्भीक हो रही है .