नार्मन बोरलॉग का जन्म अमेरिका में आयोवा के एक सामान्य परिवार में हुआ था. अपनी विश्वविद्यालय की पढ़ाई के दौरान उन्होंने दुनिया भर में भुखमरी की वजह से होने वाली मौतों पर दुःख का अनुभव महसूस करना शुरू किया.
उन्होंने गेहूं की उन किस्मों के विकास का काम शुरू किया जो रोग प्रतिरोधी थीं और जिनकी उत्पादकता पहले के मुकाबले कई गुना ज्यादा होती थी. उनकी मेहनत रंग लाई और सन 1963 तक उनकी ईजाद की हुई नई किस्मों का योगदान मैक्सिको के कुल गेहूं उत्पादन में 95 फीसदी तक हो गया था और ये उत्पादन इतना बढ़ा कि बाद में मैक्सिको गेहूं का निर्यातक भी बन गया.
दुनिया भर में अब उनके इस अद्भुत काम की चर्चा होने लगी . सत्तर के दशक की शुरुआत में भारत में भयंकर अकाल पड़ा था. जिससे भुखमरी की समस्या खड़ी होने को आ गयी . उस समय नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को यह जानकारी थी कि एक लैटिन अमेरिकी देश मैक्सिको में बोरलाग चमत्कार कर रहे है. समस्या ग्रस्त भारत में भी बोरलॉग के काम का लाभ लेने हेतु उन्होंने इस महान क्रषि वैज्ञानिक को बुलावा भेजा .
बोरलाग भारत आये और उन्होंने यहाँ आकर फिर चमत्कार किया . इससे अकाल से जूझ रही भुखमरी की समस्या भी खत्म हो गयी . बोरलॉग की ईजाद की गई गेहूं की नई किस्में ऊंची उत्पादकता से युक्त और रोग प्रतिरोधी थी . गेहूं के इन दानों ने कुछ ही सालों में भारत को इस छेत्र में आत्मनिर्भर कर दिया . देश को गेहू अमेरिका से मंगाना पड़ता था लेकिन गेहू की इन नई किस्मो ने जल्द ही भारत को गेहू का निर्यातक भी बना दिया .
इसके बाद नार्मन बोरलाग ने धान की भी कुछ नयी उत्पादक किस्मो का आविष्कार किया . कहा जाता है कि उनका यह मानना था कि अगर पौधे की लंबाई कम कर दी जाए, तो इससे बची हुइ ऊर्जा उसके बीजों यानी दानों में लगेगी, जिससे दाना ज्यादा बढ़ेगा, जिससे कुल फसल उत्पादन बढ़ेगा. बोरलॉग ने छोटा दानव (सेमी ड्वार्फ) कहलाने वाले एक किस्म के बीज (गेहूं) का आविष्कार किया था . हालांकि उनके कीटनाशक व रासायनिक खादों के अत्यधिक इस्तेमाल और जमीन से ज्यादा पानी सोखने वाली फसलों वाले प्रयोग की अनेक पर्यावरणवादियों ने कड़ी आलोचना की. लेकिन वह दुनिया को भुखमरी से निजात दिलाने के लिए जीन संवर्धित फसल के पक्ष में भी रहे. उनका मत था कि भूख से मरने की बजाय जीएम (Gene Modified) अनाज खाकर मर जाना कहीं ज्यादा अच्छा है.
देश के प्रसिद्ध क्रषि वैज्ञानिक स्वामीनाथन ने बोरलॉग के बारे में कहा था, ‘नॉर्मन बोरलॉग भूख से मुक्त दुनिया की इंसानी तलाश का जीवंत प्रतीक थे. उनका जीवन ही उनका संदेश है.’ नॉर्मन बोरलॉग को 1970 में नोबेल पुरस्कार मिला था. 12 सितम्बर 2009 को 95 साल की उम्र में नॉर्मन बोरलॉग का निधन हो गया. दुनिया भर के गरीब लोग जिन्हें बोरलाग ने भुखमरी से बचाया ,वे सभी अनन्तकाल तक उनके आभारी रहेंगे .