Tuesday, 26 March 2019

नोर्मन बोरलाग


























नार्मन बोरलॉग का जन्म अमेरिका में आयोवा के एक सामान्य परिवार में हुआ था. अपनी विश्वविद्यालय की पढ़ाई के दौरान उन्होंने दुनिया भर में भुखमरी की वजह से होने वाली मौतों पर दुःख का अनुभव महसूस करना शुरू किया. 

उन्होंने गेहूं की उन किस्मों के विकास का काम शुरू किया जो रोग प्रतिरोधी थीं और जिनकी उत्पादकता पहले के मुकाबले कई गुना ज्यादा होती थी. उनकी मेहनत रंग लाई और सन 1963 तक उनकी ईजाद की हुई नई किस्मों का योगदान मैक्सिको के कुल गेहूं उत्पादन में 95 फीसदी तक हो गया था और ये उत्पादन इतना बढ़ा कि बाद में मैक्सिको गेहूं का निर्यातक भी बन गया.

दुनिया भर में अब उनके इस अद्भुत काम की चर्चा होने लगी . सत्तर के दशक की शुरुआत में भारत में भयंकर अकाल पड़ा था. जिससे भुखमरी की समस्या खड़ी होने को आ गयी . उस समय नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को यह जानकारी थी कि एक लैटिन अमेरिकी देश मैक्सिको में बोरलाग चमत्कार कर रहे है. समस्या ग्रस्त भारत में भी बोरलॉग के काम का लाभ लेने हेतु उन्होंने इस महान क्रषि वैज्ञानिक को बुलावा भेजा .

बोरलाग भारत आये और उन्होंने यहाँ आकर फिर चमत्कार किया . इससे अकाल से जूझ रही भुखमरी की समस्या भी खत्म हो गयी . बोरलॉग की ईजाद की गई गेहूं की नई किस्में ऊंची उत्पादकता से युक्त और रोग प्रतिरोधी थी . गेहूं के इन दानों ने कुछ ही सालों में भारत को इस छेत्र में आत्मनिर्भर कर दिया . देश को गेहू अमेरिका से मंगाना पड़ता था लेकिन गेहू की इन नई किस्मो ने जल्द ही भारत को गेहू का निर्यातक भी बना दिया .

इसके बाद नार्मन बोरलाग ने धान की भी कुछ नयी उत्पादक किस्मो का आविष्कार किया . कहा जाता है कि उनका यह मानना था कि अगर पौधे की लंबाई कम कर दी जाए, तो इससे बची हुइ ऊर्जा उसके बीजों यानी दानों में लगेगी, जिससे दाना ज्यादा बढ़ेगा, जिससे कुल फसल उत्पादन बढ़ेगा. बोरलॉग ने छोटा दानव (सेमी ड्वार्फ) कहलाने वाले एक किस्म के बीज (गेहूं) का आविष्कार किया था . हालांकि उनके कीटनाशक व रासायनिक खादों के अत्यधिक इस्तेमाल और जमीन से ज्यादा पानी सोखने वाली फसलों वाले प्रयोग की अनेक पर्यावरणवादियों ने कड़ी आलोचना की. लेकिन वह दुनिया को भुखमरी से निजात दिलाने के लिए जीन संवर्धित फसल के पक्ष में भी रहे. उनका मत था कि भूख से मरने की बजाय जीएम (Gene Modified) अनाज खाकर मर जाना कहीं ज्यादा अच्छा है. 

देश के प्रसिद्ध क्रषि वैज्ञानिक स्वामीनाथन ने बोरलॉग के बारे में कहा था, ‘नॉर्मन बोरलॉग भूख से मुक्त दुनिया की इंसानी तलाश का जीवंत प्रतीक थे. उनका जीवन ही उनका संदेश है.’ नॉर्मन बोरलॉग को 1970 में नोबेल पुरस्कार मिला था. 12 सितम्बर 2009 को 95 साल की उम्र में नॉर्मन बोरलॉग का निधन हो गया. दुनिया भर के गरीब लोग जिन्हें बोरलाग ने भुखमरी से बचाया ,वे सभी अनन्तकाल तक उनके आभारी रहेंगे .

Thursday, 21 March 2019

होली में रंगो का प्रारम्भ कब से


























वसंत ऋतु में फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होली मनाने के पीछे कुछ किवदंतिया अवश्य है लेकिन आज यह महापर्व रंगो का महात्यौहार ही माना जाता है . कहा जाता है होली की प्राचीनता का वर्णन जैमिनि के पूर्वमिमांसा सूत्र और कथक ग्रहय सूत्र से लगाया जा सकता है. होलिका दहन के पीछे तो प्रहलाद और होलिका से जुडा एक किस्सा काफी प्रसिद्ध है किन्तु होली में रंगो की शुरुआत क्यों और कैसे हुई , इसके बारे में जानते है .


पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि राछ्सी पूतना ने बालक श्री कृष्ण को मारने का प्रयास किया था , किन्तु उल्टा श्री कृष्ण ने ही पूतना का वध कर दिया .इस पूतना वध के उपलक्ष्य में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की थी . पौराणिक कथाओ के अनुसार इसके बाद गोपियों और ग्वालो ने एक दूसरे के साथ रंग खेला. इस प्रकार रंग खेलने की शुरुआत श्री कृष्ण जी ने ही प्रारम्भ की थी. आज भी व्रन्दावन की होली सबसे विशेष होती है .


हालांकि उस समय होली के रंग पलाश के फूलों से बनते थे जो त्वचा के लिए बहुत अच्छे होते थे क्योंकि उनमें कोई रसायन नहीं होते थे लेकिन आज के समय में रंग के नाम पर हानिकारक रसायन का उपयोग किया जाता है जो स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक होते है . होली में रंगो के साथ अबीर और गुलाल का प्रयोग भी होता है . हर्ष और उल्लास के माहोल में लोग अपने पुराने गिले -शिकवे भूल कर एक -दुसरे से गले मिलते है . गाँव के खेतो में सरसों के पीले -पीले सुंदर खेत होली के रंगो की शोभा में समा बाँध देते है . रंगो की फुहार के बीच लोग ढोलक झांझ और मंजीरे के साथ फाग गाते है . मनोरंजन के साथ -साथ खान -पान का भी अपना अलग मजा होता है . होली में लोग गुझिया ,पापड़ और चिप्स खासतौर पर चखते है . हालाँकि आपको जानकर हैरानी होगी गुझिया तुर्की और अफगानिस्तान जैसे देशों से भारत में आई है अर्थात भारत में गुझिया बनाने का समय मुगल काल के आस -पास का ही होना चाहिए .

मुगल काल में होली को ईद-ए-गुलाबी कहा जाता था. प्रमाण के मुताबिक, कई मुगल बादशाहों ने भी होली खेली थी. भारत अनेक संस्क्रतियो से युक्त देश है . इसलिए यहाँ के आम -जीवन में भी कई रंग -रूप नजर आते है . 






Wednesday, 20 March 2019

जेल का खौफ



















आज हमारे लोग जेल जाने से बहुत खौफ खाते है . उन्हें बताया भी यही गया है कि जेल अपराधियों के लिए ही बनी होती है . लोगो को जेल की चक्की में आटा पीसना पड़ता है .उन्हें यहाँ तमाम यातनाओ से भी रूबरू होना पड़ता है .लेकिन जेल केवल अपराधियों के लिए ही है ,ये भी एकदम से सत्य बात तो नहीं है.मसलन कई बार कुछ बेगुनाह लोग भी जेल में ठूस दिए जाते है . जेल यानी कारागार का सम्बन्ध देश की आजादी और स्वतन्त्रता सेनानियों के साथ भी जडा हुआ है . बल्कि जेल का सम्बन्ध तो भगवान श्री क्रष्ण जी से भी जुडा हुआ है . हमारे लोग अगर जेल नहीं गये होते तो शायद हमारा देश आजाद नही होता . क्रष्ण का जन्म यदि जेल में नही होता तो शायद कंस के आतंक से लोगो को मुक्ति भी नही मिलती. जेल के बारे में आज के जैसा खौफ पहले कम था या ज्यादा , यह पता नही लेकिन लोग जेल जाने को अपने संघर्ष का पर्याय मानते थे . शायद इसीलिए देश के लोकतंत्र पर खतरे के बादल आये जरुर लेकिन आखिर उन्हें जाना पड़ा. 

आज के नवयुवक में वह धार नही है . उसे या तो पढाई के बोझ ने घायल कर दिया है या फिर वह मनोरंजन के साधनों में लिप्त रह कर जन -जीवन से कोसो दूर हो गया है . बिगड़ी हुई व्यवस्था को सुधारने में किसे रूचि है . पढ़ -लिख कर हर कोई पैसा कमाना चाहता है . क्या करे , अब जीवन चक्र ही ऐसा बन चूका है . बगैर पैसे के जीवन बेजान हो चूका है . लेकिन कितना पैसा कोई कमाएगा , खर्च बेहिसाब हो गया है .महंगाई से बचे तो बीमारिया नही छोड़ेगी . आख़िरकार पैसे की खोज में इंसान के जीवन का मोल 2 पैसे का हो गया है . अपने भविष्य के लिए इंसान नम्बर 2 की कमाई को भी ज्यादा मेहनत की कमाई कहता है . कुछ लोग जो खानदानी रईस या राजा -रजवाड़े है उनकी बात अलग है . उन्हें इस जंजाल से छुट मिली है जिसके लिए उन्हें अपने बाप -दादाओ का ऋणी होना चाहिए . बात जेल की थी ,वही आते है .सत्ता का अहंकार बहुत पुरानी बात है और आज तक जीवंत है . अब सवाल है कि सत्ता के अहंकार से या फिर बिगड़ी हुई व्यवस्था के सुधार के खिलाफ जेल कौन जाएगा . जेल अपराधियों के लिए सुधार गृह है तो क्रान्तिकारियो के लिए उनका घर . मगर साहब जेल का खौफ तो चल ही रहा है , और जेलों से लोहा लेने वाले लोग मुट्ठी भर ही है . इसलिए किसी महा परिवर्तन की उम्मीद भी नही कीजिये .