Thursday, 21 March 2019

होली में रंगो का प्रारम्भ कब से


























वसंत ऋतु में फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होली मनाने के पीछे कुछ किवदंतिया अवश्य है लेकिन आज यह महापर्व रंगो का महात्यौहार ही माना जाता है . कहा जाता है होली की प्राचीनता का वर्णन जैमिनि के पूर्वमिमांसा सूत्र और कथक ग्रहय सूत्र से लगाया जा सकता है. होलिका दहन के पीछे तो प्रहलाद और होलिका से जुडा एक किस्सा काफी प्रसिद्ध है किन्तु होली में रंगो की शुरुआत क्यों और कैसे हुई , इसके बारे में जानते है .


पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि राछ्सी पूतना ने बालक श्री कृष्ण को मारने का प्रयास किया था , किन्तु उल्टा श्री कृष्ण ने ही पूतना का वध कर दिया .इस पूतना वध के उपलक्ष्य में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की थी . पौराणिक कथाओ के अनुसार इसके बाद गोपियों और ग्वालो ने एक दूसरे के साथ रंग खेला. इस प्रकार रंग खेलने की शुरुआत श्री कृष्ण जी ने ही प्रारम्भ की थी. आज भी व्रन्दावन की होली सबसे विशेष होती है .


हालांकि उस समय होली के रंग पलाश के फूलों से बनते थे जो त्वचा के लिए बहुत अच्छे होते थे क्योंकि उनमें कोई रसायन नहीं होते थे लेकिन आज के समय में रंग के नाम पर हानिकारक रसायन का उपयोग किया जाता है जो स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक होते है . होली में रंगो के साथ अबीर और गुलाल का प्रयोग भी होता है . हर्ष और उल्लास के माहोल में लोग अपने पुराने गिले -शिकवे भूल कर एक -दुसरे से गले मिलते है . गाँव के खेतो में सरसों के पीले -पीले सुंदर खेत होली के रंगो की शोभा में समा बाँध देते है . रंगो की फुहार के बीच लोग ढोलक झांझ और मंजीरे के साथ फाग गाते है . मनोरंजन के साथ -साथ खान -पान का भी अपना अलग मजा होता है . होली में लोग गुझिया ,पापड़ और चिप्स खासतौर पर चखते है . हालाँकि आपको जानकर हैरानी होगी गुझिया तुर्की और अफगानिस्तान जैसे देशों से भारत में आई है अर्थात भारत में गुझिया बनाने का समय मुगल काल के आस -पास का ही होना चाहिए .

मुगल काल में होली को ईद-ए-गुलाबी कहा जाता था. प्रमाण के मुताबिक, कई मुगल बादशाहों ने भी होली खेली थी. भारत अनेक संस्क्रतियो से युक्त देश है . इसलिए यहाँ के आम -जीवन में भी कई रंग -रूप नजर आते है . 






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