विश्व प्रथ्वी दिवस सबसे पहले 1970 में मनाया गया था. पृथ्वी पर रहने वाले समस्त जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों को बचाने और दुनिया भर में पर्यावरण के प्रति जागरुकता बढ़ाने के उद्देश्य से हर साल 22 अप्रैल को विश्व प्रथ्वी दिवस मनाया जाता है. दरअसल वर्ष 2015 में हुए पेरिस समझौते के तहत दुनिया के 195 देश इस पर सहमत हुए थे कि वैश्विक औसत तापमान में बढ़ोतरी को 2 डिग्री सेल्सियस से आगे न बढ़ने दिया जाए. बल्कि कोशिशें होनी हैं कि इस बढ़ोतरी को 1.5 डिग्री तक ही सीमित कर दिया जाए. इसके बावजूद , 2014, 2015, 2016, 2017 और 2018 अब तक के सबसे गर्म 4 साल घोषित हो चुके हैं.
लेकिन सबसे बड़ा बदलाव समुद्र में हो रहा है जहां पानी की मात्रा और इसका दायरा दोनों बढ़ रहे हैं. पानी का तापमान बढ़ने पर वह फैलने और नतीजतन ज्यादा जगह घेरने लगता है. वैज्ञानिक भाषा में इसे थर्मल एक्सपैंशन या तापीय प्रसार कहते हैं. उधर, बढ़ती गर्मी के चलते ध्रुवीय इलाकों की बर्फ तेजी से पिघल रही है. अगर यह प्रक्रिया नहीं रुकी तो इसके परिणाम विनाशकारी होंगे .
बढ़ते वैश्विक तापमान यानी ग्लोबल वार्मिंग के दुष्परिणाम दुनिया के हर हिस्से में देखे जा रहे हैं. यूरोप के कई देशों में लू चलना और दक्षिण एशिया सहित तमाम इलाकों में अचानक भारी बारिश के चलते बाढ़ की घटनाओं में बढ़ोतरी इसका उदाहरण हैं. उधर विकास की अंधी दौड़ ने प्रथ्वी के अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया है . दुनिया भर में औद्योगिक इकाइयों के कचरे से बढ़ रहा प्रदुषण और तापमान यदि थमा नही तो यह जल्द ही प्रथ्वी पर मौजूद समस्त जीवन को तहस -नहस कर देगा . आज महसूस हो रही असाधारण गर्मी और अचानक मौसम का बदलता मिजाज धरती के बढ़ रहे तापमान के कारण ही घटित हो रहा है .
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