Saturday, 18 May 2019

23 मई : लोकसभा चुनाव परिणाम और नया प्रधानमन्त्री






















भारत में सत्रहवी लोकसभा चुनाव कार्यक्रम 7 चरणों के अंतर्गत 11 अप्रैल , 18 अप्रैल, 23 अप्रैल, 29 अप्रैल, 6 मई, 12 मई और 19 मई को लगभग सम्पन्न होने वाले है . यह मतदान प्रक्रिया सम्पन्न होते ही सभी देशवासियों और राजनैतिक दलों को 23 मई 2019 की मतगणना हेतु  चुनाव के परिणाम का बेसब्री से इंतज़ार होना प्रारम्भ हो जाएगा . तमाम राजनैतिक दलों के समर्थको में अपनी -अपनी पार्टी की जीत के प्रति भारी उत्साह भरा हुआ है . दरअसल भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है इसलिए यहाँ की लोकतान्त्रिक चुनावी प्रक्रिया पूरी दुनिया के लिए एक मिशाल सी है . लोकतंत्र का शब्दिक अर्थ - जनता का शासन है . मशहूर अमेरिकी राष्ट्रपति और अमेरिका में भेदभाव के खिलाफ संघर्ष करने वाले अब्राहम लिंकन के अनुसार भी लोकतंत्र , जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन है. इसलिए बड़ी जाहिर सी बात है कि लोकतंत्र में जनता अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए अपनी सरकार स्वयम चुनती है और हकीकत में किसी भी देश की सम्पन्नता और खुशहाली इस बात पर निर्भर करती है कि वहा का लोकतंत्र कितना स्वस्थ है . 



भारत में लोकतांत्रिक चुनाव प्रत्येक 5 साल के अन्तराल में सम्पन्न होते है . अर्थात जनता अपने मताधिकार से किसी दल या समूह को 5 साल देश में शासन करने के लिए ही अवसर देती है . एक कार्यकाल पूर्ण होने के बाद पुनह चुनाव होने पर वह अपने विवेकानुसार उस वक्त मौजूद सबसे बेहतर विकल्प (राजनैतिक दल ) पर विचार कर मतदान करती है . इस प्रक्रिया में बहुमत प्राप्त करने वाले राजनैतिक दल के प्रतिनिधि देश पर संवैधानिक रूप से शासन करते है . सत्ता पर बैठने वाले राजनैतिक दल पूरी कोशिश करते है कि वह अपने बेहतर कार्यक्रमों और जन कल्याण की नीतियों से जनता को सदैव प्रसन्न रखे ताकि उन्हें पुनह 5 साल बाद जनता से विशवास मत प्राप्त हो सके .हालांकि सत्ता मिलने के बाद अक्सर विभिन्न दलों में अहंकार और उनके प्रति जनता में असंतोष व्याप्त होते हुए देखा गया है . वही सत्ता और विपछ में मौजूद राजनैतिक दलों के बीच विरोधाभास होना एक आम बात है . इसे सत्ता के लिए इन दलों के बीच पारस्परिक प्रतिस्पर्धा भी कहा जा सकता है .वास्तव में प्रत्येक 5 साल के कार्यकाल के बाद जनता को दुसरे बेहतर विकल्पों पर गौर करना चाहिए जिससे पूर्व में सत्तासीन सरकारों के संदिग्ध कार्यो की जांच भी की जा सके . क्यों कि सत्ता की निरंकुशता दलों को भ्रष्टाचारी और तानाशाही भी बना देती है इसीलिए प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी , प्रखर समाजवादी चिंतक और देश में मौजूद भ्रष्टाचार के खिलाफ पहली बार आवाज उठाने वाले डा राममनोहर लोहिया जी ने कहा था ,कि सच्चे लोकतंत्र की सबसे बड़ी जीवनशक्ति सरकारों के उलट-पलट में बसती है. उनके अनुसार तवे पर जैसे रोटी को उलट -पलट कर सेंका जाता है और पकाया जाता है ठीक इसी तरह राजनैतिक दलों को भी लोकतंत्र में उलटते -पलटते रहना चाहिए ,तभी सच्चा लोकतंत्र स्थापित हो सकेगा . 



अगर देखा जाए तो आजादी के बाद से अब तक के सफर में देश के लोकतान्त्रिक चुनावों का इतिहास काफी मिला -जुला रहा है . हालांकि देश का चुनाव आयोग निष्पछता से चुनाव सम्पन्न करवाता रहा है किन्तु फिर भी कई स्थानों में स्थानीय स्तर पर जनता को लोभ देकर मतदान करवाने के भी अक्सर प्रयास होते आये है . भारतीय संविधान के भाग 15 में अनुच्छेद 324 से अनुच्छेद 329 तक चुनाव यानी निर्वाचन की व्याख्या की गई है. अनुच्छेद 324 निर्वाचनों का अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण का निर्वाचन आयोग में निहित होना बताता है. संविधान ने अनुच्छेद 324 में ही निर्वाचन आयोग को चुनाव संपन्न कराने की जिम्मेदारी दी है. साल 1989 तक निर्वाचन आयोग केवल 1 सदस्यीय संगठन होता था किन्तु 16 अक्टूबर 1989 को राष्ट्रपति अधिसूचना के द्वारा 2 और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति कर दी गयी है . समय के साथ चलते हुए आज देश में बैलेट पेपर के बजाय EVM से चुनाव हो रहे है , किन्तु यह नयी तकनीक विवादों के केंद्र में भी खूब है . EVM को हैक कर मतदान प्रभावित करने के कई समाचार सुनने में आते रहे है. जबकि निर्वाचन आयोग निरंतर इसका खंडन ही करता रहा है . किन्तु हाल में कई मौको पर किसी दल के प्रत्यासी को वोट डालने पर कमल (भाजपा ) की ही पर्ची निकलने पर चुनाव आयोग की निष्पछता पर संदेह गहरा हो गया है . इसीलिए तमाम विपछी दलों ने EVM के बजाय बैलेट पेपर से चुनाव करवाने की मांग अनेको बार की है . इसके बावजूद भी आयोग ने VVPAT मशीनों की बात कह कर EVM से ही चुनाव करवा दिए है . इधर समस्त चुनावी प्रक्रिया के दौरान EVM भी देश की जनता के मध्य काफी अविश्वसनीय हो गया है . जिससे चुनाव आयोग की निष्पछता पर आंच पडती नजर आ रही है .

देश में 543 लोकसभा सीटो का चुनाव हो रहा है, हालांकि लोकसभा सीटों की कुल संख्या 545 है. दरअसल अगर राष्ट्रपति को लगता है कि एंग्लो-इंडियन समुदाय के लोगों का लोकसभा में प्रतिनिधित्व काफ़ी नहीं है तो वह 2 लोगों को नामांकित कर सकता है. वही कुल लोकसभा सीटों में से 131 लोकसभा सीटें रिज़र्व हैं जिसमे अनुसूचित जाति के लिए 84 और अनुसूचित जनजाति के लिए 47 सीटें रिज़र्व हैं. यानी इन रिजर्व सीटों पर कोई अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार ही चुनाव लड़ सकते हैं. देश में सरकार बनाने हेतु लोकसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत के लिए कम से कम 272 सीटें आवश्यक है . 



अब सत्रहवी लोकसभा के चुनाव परिणाम की बात की जाए तो पहले सभी राज्यों में कितनी -कितनी सीटे उपलब्ध है , इसे समझ लिया जाए . उत्तर प्रदेश -80 . राजस्थान -25 ,मध्य प्रदेश -29 , छत्तीसगढ़ -11 , बिहार -40 ,झारखंड -14 , जम्मू -काश्मीर -6 , महाराष्ट्र -48 ,पश्चिम बंगाल -42 ,तमिलनाडू -39 , केरल - 20 , कर्नाटक -28 , उडीसा -21 ,असम -14, त्रिपुरा -2 , मणिपुर -2 , पंजाब -13 , हरियाणा -10 , हिमाचल -4 , उत्तराखंड -5 , दिल्ली -7 ,गुजरात -26 , तेलंगाना -17, गोवा -2 ,मेघालय -2 ,मणिपुर -2 ,मिजोरम -1 , नागालैंड -1 , अरुणाचल प्रदेश -2 .आंध्र प्रदेश -25 .

पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा 31 % मत पाकर 282 सीटो पर और कांग्रेस 19.3 % मत पाकर 44 सीटो पर विजयी हुई थी . वही TMC (ममता बनर्जी ) को 3.8 % मतों से 34 सीटो पर और ADMK (स्व जयललिता ) को 3.3 % मतों से 37 सीटो पर विजय मिली थी . इस प्रकार विगत चुनाव में भाजपा ने अपने दम पर ही बहुमत प्राप्त कर लिया किन्तु अनेक सहयोगी दलों के साथ मिल कर गठ्बन्धन की सरकार बनाई . इस सरकार के मुखिया गुजरात से अपनी कट्टर हिन्दू की छवि रखने वाले नरेंद्र मोदी जी बने . सरकार बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने सर्वप्रथम विदेश नीति पर ध्यान दिया और स्वयं विदेश भ्रमण पर निकल गये . इधर उनके सिपाहसलार अमित शाह पुरे देश में भाजपा की राज्य सरकार बनाने की मंशा में जुट गये . नरेंद्र मोदी जी की सरकार में मंत्रालयों का कार्य भार तो बंटा लेकिन सर्वेसर्वा नरेंद्र मोदी और अमित शाह ही बने रहे .हालांकि नरेंद्र मोदी विदेश भ्रमण के साथ -साथ स्वच्छ भारत , गंगा की सफाई , शौचालयों के निर्माण आदि पर भी काफी जोर देते रहे . लेकिन उनके समर्थको ने इन योजनाओं को मीडिया में अपनी वाह वाही लुटने तक ही सीमित रखा . जिससे ये तमाम योजनाये भारी धन आवंटन के बावजूद भी अधर में लटक गयी . इसी के साथ -साथ प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी जी नोट बंदी का अदूरदर्शी फैसला ले बैठे . देश की जनता इससे उबरती कि तभी उन्होंने GST का नया चक्र रच दिया . इससे जनता में भारी असंतोष और छोभ पैदा हो गया . जनता की नजर में वह और उनकी सरकार नीचे उतर गयी . आये दिन हो रही रेल दुर्घटनाये , रेल किरायो में व्रद्धी , बढती हुई महंगाई और बेरोजगारी , कालेधन पर अंकुश लगाने में नाकामी , सीमापार का आतंकवाद और धार्मिक कट्टरता ने मोदी सरकार की छवि को विकृत कर दिया . हालांकि सरकार ने अपनी छवि को लोकप्रिय करने हेतु गुजरात माडल के आधार पर देश की मीडिया को काफी हद तक नियंत्रित किया किन्तु फिर भी उनके ख़ास समर्थको के अलावा देश के अधिकाँश जनमानस ने उन्हें नकार दिया . नरेंद्र मोदी अपने कार्यकाल में अपनी उपलब्धियों के बजाय कांग्रेस की खामिया ही गिनाते रहे . आर्थिक मुद्दों पर उनके करीबियों से भी मतभेद उत्पन्न हो गये. वही देश में लाखो -करोड़ो का घोटाला कर विदेश भाग जाने वालो के प्रति काफी उदार बने रहना जनता को चुभ गया .ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी का गुजरात माडल गुजरात में भले ही कारगर रहा हो लेकिन व्यापक रूप से देश भर में यह असफल हो गया है. लेकिन इन सबके बावजूद मोदी सरकार लोकसभा चुनावों में एक बार पुनह जीत कर सरकार बनाने की लालसा पाले हुए है . 



आज देश की राजनीति में लोकतंत्र और तानाशाही का मिला -जुला असर भी दिख रहा है . तमाम संवैधानिक संस्थाए दबाव में है . किसानो और जवानो के रूप में सत्ता से जनता की बड़ी नाराजगी है . अब तक के कई चरणों के मतदान के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि नरेंद्र मोदी के नेत्रत्व में भाजपा अपने दम पर बहुमत बिलकुल नही प्राप्त कर सकेगी और सत्ता विरोधी लहर के कारण उसके गठ्बन्धन के सहयोगी भी मात खायेंगे .

हाल के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहा है . राहुल गाँधी में राजनैतिक परिपक्वता नजर आ रही है . वह मोदी सरकार की कमियों को पकड़ कर आक्रामक है और भाजपा बैकफुट पर रछात्म्क मुद्रा में नजर आती है . 3 राज्यों में सरकार बनाने के बाद राहुल गांधी काफी आत्मविश्वास में है . वही देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में सपा अध्यछ अखिलेश यादव का बसपा के साथ गठ्बन्धन का फार्मूला हिट हो चूका है . गठ्बन्धन के प्रयोग से उपचुनावों में मिली जीत से उत्साहित अखिलेश यादव ने बसपा से लोकसभा चुनावों में भी गठ्बन्धन कर डाला . वास्तव में यह फैसला काफी महत्वपूर्ण और निर्णायक है . सम्भवतः इस फैसले का असर देश को अगला प्रधानमन्त्री देने तक में रह सकता है . इसलिए यह काफी दूरदर्शी और महत्वपूर्ण घटनाक्रम है . अखिलेश यादव को इसका महत्वपूर्ण राजनैतिक लाभ विधान सभा चुनावों में भी मिल सकेगा . बिहार में भी भाजपा और नितीश की हालत राजद + कांग्रेस के आगे कमजोर ही है . पश्चिम बंगाल में भाजपा और TMC (ममता ) के बीच कांटे की लड़ाई है , परिणाम किसके पछ में रहेगा ,कहना मुश्किल है . महाराष्ट्र में अपनी सहयोगी शिवसेना से भाजपा को अवश्य काफी उम्मीदे होंगी .मध्यप्रदेश , राजस्थान ,गुजरात ,छत्तीसगढ़ अदि में कांग्रेस -भाजपा की लड़ाई करीब हो सकती है . दछिन के राज्यों से भाजपा को अधिक उम्मीदे नहीं रखनी चाहिए .हालांकि पूर्वोत्तर में उसे कुछ लाभ जरुर मिल सकता है . इस हिसाब में भाजपा को अकेले बहुमत मिलना असम्भव ही नजर आ रहा है . वही यह भी निश्चित है कि अगली सरकार किसी एक पार्टी की कदापि नहीं होगी , नई सरकार गठ्बन्धन की ही होगी . लेकिन किस गठ्बन्धन की ? यह समझना थोडा मुश्किल है . अनुमानों के अनुसार भाजपा 150 सीट और कांग्रेस 200 सीट तक प्राप्त कर पाएंगी . बाकी लगभग 200 सीटो पर छेत्रिय दलों का कब्जा रहेगा . जिसमे मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश , बिहार , प बंगाल , महाराष्ट्र , तमिलनाडू और कर्नाटक के छेत्रिय दल प्रमुख होंगे . इस आधार पर कांग्रेस और भाजपा के गठ्बन्धन के अलावा तमाम छेत्रीय दलों का एक तीसरा मोर्चा ममता बनर्जी या किसी अन्य नेता के नेत्रत्व में भी बन सकता है . इस लोकसभा चुनाव में जिन नेताओ को प्रधानमन्त्री की कुर्सी नसीब हो सकती है उनमे मायावती , ममता , राहुल गाँधी , राजनाथ सिंह , लालू यादव , शरद यादव आदि मुख्य है . जहा तक नरेंद्र मोदी जी के पुनह प्रधानमन्त्री बनने का सवाल है , यह तभी सम्भव है जब भाजपा अपने दम पर बहुमत प्राप्त कर सकेगी .


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