Wednesday, 11 September 2019

विनोबा भावे





















यु तो इस देश में जमीन की लड़ाई का इतिहास काफी पुराना है और भारत जैसे शांति प्रिय देश में जमीन की लड़ाई ने महाभारत का युद्ध तक करवा दिया था . किन्तु आज के हिंसाप्रिय और अराजक माहोल में लोग इस बात को एकदम भूल चुके है कि कभी कुछ समाजसेवियों के आह्वाहन पर इसी भारत में लोगों ने अपने ही गांव-समाज की जमीने भूमिहीन लोगों के लिए दान में दे दी थी .

आज़ादी के बाद भारत के सामने एक सबसे बड़ा प्रश्न जमीन के बंटवारे का भी था. जहा एक तरफ राजे-रजवाड़ों से लेकर जमींदारों और बड़े भूमिपतियों के पास बेहिसाब जमीनें थीं, तो दूसरी ओर देश की बहुसंख्यक जनता भूमिहीन थी. जहां एक ओर जमींदारी उन्मूलन और भू-हदबंदी जैसे सरकारी प्रयास चल रहे थे, वहीं दूसरी ओर अनेक स्थानों में बंदूक के जरिए जमीन और संपत्ति छीन लेने का खूनी-संघर्ष भी चल रहा था. ऐसे विकट समय में विनोबा भावे आगे आये और उन्होंने भूदान आन्दोलन का सूत्रपात किया . 

विनोबा को अपने अहिंसा और प्रेमपूर्ण आन्दोलन की बदौलत लगभग 42 लाख एकड़ जमीन भूदान में मिल गयी . उन्होंने इसमें से 15 लाख तो तत्काल ही भूमिहीनों में बांट दी . कहा जाता है कि भूदान आंदोलन में मिली जमीनों में से 10 लाख एकड़ जमीन आज भी बिना बंटे ही सरकारी राजस्व विभाग की फाइलों में धूल फांक रही है. वास्तव में आज यह विश्वास करना भी काफी कठिन है कि जिस जमीन के कारण भाई-भाई का सिर काटता है, गोलियां चलती हैं, जिसके लिए लोग सारा जीवन कोर्ट-कचहरियों के चक्कर काटते बिता देते हैं, वह जमीन लोगों ने विनोबा को प्रेम से दे दी थी और विनोबा ने इसमें से ज्यादातर जमीनें हरिजनों और आदिवासियों के बीच बांट दी थी . 

इस तरह जमीन के असमान और एकतरफा अधिकार को काफी हद तक विनोबा ने समान अधिकार में बदल दिया . विनोबा के भूदान ने लोगो को इतना प्रभावित किया कि लोग ग्राम दान तक करने लगे . ग्राम दान यानी पुरे गाव की जमीन का ही दान . इस मुहीम से प्रभावित होकर लोकनायक जयप्रकाश ने अपना जीवन दान करने की बात कह दी और पूंजीवादियो से उद्योग दान की सिफारिश भी की . 

विनोबा ने कितनी भी मेहनत से गरीबो को जमीने दिलवाई हो , लेकिन आज के दबंग और रसूखदार लोग जमीनों को हडप कर उनका व्यवसाय भी शुरू कर दिया है और भूदान के स्थान पर भू माफिया हो गया है . 










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