जंगल के जानवरो की बैठक चल रही थी , इकलौते वनराज स्वयं अपनी व्यथा समस्त जीव जंतुओं के सम्मुख कह रहे थे , साथियों न मालूम क्या हो रहा है कि हमारे जंगल से एक - एक कर तमाम साथी गायब हो रहे है , जबकि मै स्वयं भूख के कारण बेहद कमजोर हो चुका हूं । मेरे परिवार के युवा सदस्य भी लापता हो चुके है । काफी खोजने के बाद भी कहीं नहीं मिले , संभावना है कि उन्हें भी दुष्ट इंसानों ने धोखे से अपने कब्जे में कैद कर लिया होगा । यह बोलते बोलते वनराज काफी भावुक हो गए । उनकी बात को संभालते हुए काले भालू ने कहा ,
"महाराज बहुत ही चिंता का विषय है । हम जीव जंतुओं की अनेक प्रजातियां विलुप्त हो चुकी है । हमारे रहने के ठिकानों पर इंसानों ने बस्तियां बसा ली है या फिर गनदगी और बदबू फैलाने वाली फैक्ट्रियां स्थापित कर दी है । हमारे साथियों को खाने के लिए शहद या फल - फूल मिलना दूर्भर हो चला है ।" कालू भालू की बात के ख़तम होते ही बीमार हाथी ने भी अपने मन की पीड़ा बताते हुए कहा ,
"महाराज एक वक्त था जब हम पूरी तरह से आजाद थे और इन जंगलों में भयमुक्त होकर विचरते थे । इसके बाद इंसानों ने हमसे दोस्ती की और हम उनके सुख दुख के साथी बन गए । किन्तु इंसानों ने दोस्ती ही नहीं तोड़ी ,वे तो बहुत ही स्वार्थी निकल गए । उन्होंने हम सबके उपकारों को भूल कर हमे अपना गुलाम बना लिया है । बात यही तक सीमित नहीं है महाराज , आगे बदहाली ये है कि हमारे जंगलवासियो को खेतों में जोता गया, उन्हें दुहा गया। हमारे साथियों के रोयें काटकर इंसानों ने ओढ़ लिए, उनकी चमड़ी उतारकर अपने पैरों में पहन लिया। महाराज इन इंसानों को जब अनाज पूरा नहीं पड़ा तो ये हमारे साथियों को काटकर भी खा गए । क्या हम जानवरो का यही जीवन है ?" बीमार हाथी की आंखो में आंसू देखकर काले कौवे ने भी अपनी व्यथा कह डाली ,
"महाराज हम नभचर का तो खुली हवा में उड़ना भी दूभर हो गया है । इंसान अपने हवाई जहाज़ को उड़ाने के लिए हम पक्षियों को गोली से निशाना बना देते है । प्रतिदिन हमारे लाखो साथी उनकी गोली का शिकार हो जाते है । आखिर आसमान मै उड़ने के लिए ही तो पंख मिले है हम पक्षियों को । किन्तु हवाई मशीनों के कारण हमारी जान पे बन आई है । अब हमारे उड़ने ही नहीं भोजन के लिए भी समस्याएं उत्पन्न हो रही है ।"
कौवे की बात चल ही रही थी कि कुछ हलचल हुई , थोड़ी देर बाद सबने देखा कि उनके पास इंसानी बस्ती से भाग कर आए आवारा पशुओं का एक झुंड खड़ा हो गया जो देखने में काफी कमजोर और भूखा लग रहा था । इस झुंड में सबसे बुजुर्ग नंदी ने कहा , "वनराज को हम सभी आवारा पशुओं की तरफ से सादर अभिवादन है महाराज ।" वनराज ने भी दहाड़ते हुए सबका स्वागत किया और बैठने के लिए इशारा किया । वनराज को धन्यवाद देकर आवारा पशुओं ने जहा तहा आसन ग्रहण किया । इसके पश्चात नंदी ने आगे बोलते हुए कहा,
"महाराज हमे भी अपने जंगल मै शरण दीजिए । इंसानों के जंगलराज से त्रस्त होकर हम उनकी बस्तियों में नहीं रहना चाहते हैं । अब किसी भी प्रकार यही गुजर - बसर कर लेंगे । इंसानों की बस्तियों और दिलो में हमारे लिए कोई जगह नहीं है , उनके अत्याचार से वह खुद परेशान है , हम पशुओं की कहीं कोई सुनवाई नहीं है । हमारी मांग है कि हमारे बाकी साथियों को भी इंसानी कब्जे वाले जंगलराज से मुक्त किया जाए और जिसने भी हमे जीवन दिया है उसके द्वारा हमारे मूल अधिकार वापस दिए जाए । हमको हमारे जंगल और उसकी हरियाली वापस चाहिए । वहा हम आवारा बन के रहे इससे अच्छा है अपने घर जंगल मै ही खुल कर आजादी से रहे ।" वनराज ने सबको दिलासा दिया और समस्त समस्याओं के निराकरण हेतु एक माह का वक्त मांग लिया ।
किन्तु सभा विसर्जन के बाद वनराज को स्वयं नहीं समझ आ रहा था कि वह इसके लिए आखिर किससे फ़रियाद करे । अंत में उसे महसूस हुआ कि इंसानी स्वार्थ और अत्याचार के आगे जंगल मै अभी भी भाईचारा बचा हुआ है । जंगल के जानवर आज भी काफी मासूम है और स्वार्थी इंसान से दूर रहकर ही जंगल की सुरक्षा की जा सकती है ।
मित्रो वनराज ने एक माह बाद क्या फैसला लिया होगा,
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