प्रेमचन्द आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं और उन्होंने हिंदी साहित्य में यथार्थवाद की शुरूआत की थी .
चूंकि प्रेमचंद मूल रूप से उर्दू के लेखक थे और उर्दू से हिंदी में आए थे, इसलिए उनके सभी आरंभिक उपन्यास मूल रूप से उर्दू में लिखे गए और बाद में उनका हिंदी में अनुवाद किया गया. उन्होंने 'सेवासदन' (1918) उपन्यास से हिंदी उपन्यास की दुनिया में प्रवेश किया था . यह मूल रूप से 'बाजारे-हुस्न' नाम से पहले उर्दू में लिखा गया था लेकिन इसका हिंदी रूप 'सेवासदन' पहले प्रकाशित कराया गया . 'सेवासदन' एक नारी के वेश्या बनने की कहानी है. 'सेवासदन' में व्यक्त मुख्य समस्या भारतीय नारी की पराधीनता है. इसके बाद किसान जीवन पर भी उनका पहला उपन्यास 'प्रेमाश्रम' (1921) आया. दरअसल प्रेमचंद के उपन्यासों का मूल कथ्य भारतीय ग्रामीण जीवन ही था.
प्रेमचन्द को प्रायः "मुंशी प्रेमचंद" के नाम से जाना जाता है. प्रेमचंद के नाम के साथ 'मुंशी' कब और कैसे जुड़ गया? इस विषय में अधिकांश लोग यही मान लेते हैं कि प्रारम्भ में प्रेमचंद अध्यापक रहे होंगे . अध्यापकों को प्राय: उस समय मुंशी जी कहा जाता था. इसके अतिरिक्त कायस्थों के नाम के पहले सम्मान स्वरूप 'मुंशी' शब्द लगाने की परम्परा रही है. संभवत: प्रेमचंद जी के नाम के साथ मुंशी शब्द जुड़कर रूढ़ हो गया. दरअसल प्रेमचंद जी ने अपने नाम के आगे 'मुंशी' शब्द का प्रयोग स्वयं कभी नहीं किया. मुंशी शब्द सम्मान सूचक है, जिसे प्रेमचंद के प्रशंसकों ने कभी लगा दिया होगा. यह तथ्य अनुमान पर आधारित है. लेकिन प्रेमचंद के नाम के साथ मुंशी विशेषण जुड़ने का प्रामाणिक कारण यह है कि 'हंस' नामक पत्र प्रेमचंद एवं 'कन्हैयालाल मुंशी' के सह संपादन में निकलता था. जिसकी कुछ प्रतियों पर कन्हैयालाल मुंशी का पूरा नाम न छपकर मात्र 'मुंशी' छपा रहता था साथ ही प्रेमचंद का नाम इस प्रकार छपा होता था. 'हंस के संपादक प्रेमचंद तथा कन्हैयालाल मुंशी थे परन्तु कालांतर में पाठकों ने 'मुंशी' तथा 'प्रेमचंद' को एक समझ लिया और 'प्रेमचंद'- 'मुंशी प्रेमचंद' बन गए.
साहित्य सम्राट प्रेमचन्द के जन्मदिन पर आज साहित्य जगत में ख़ामोशी है . जो इस देश के सम्रद्ध साहित्य के दम तोड़ने का संकेत भी है .
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