Saturday, 31 December 2016

लोकबन्धु राज नारायण


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राजनारायण का कलेजा शेर जैसा व आचरण महात्मा गांधी सरीखा है----डा राम मनोहर लोहिया 




'राज नारायण ' कितना साधारण सा लगता है ये एक आम भारतीय का नाम . लेकिन इस एक आम आदमी के असाधारण कारनामे सुन कर पैरो के नीचे से जमीन खिसक जाती है .जी हा ये वही लोकबन्धु राजनारायण है जिन्हें आज पूरा देश लगभग भूल चूका है. लोकबन्धु राजनारायण एक ऐसे शख्स थे जिन्होंने अजेय समझी जाने वाली पूर्व प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी को भी रायबरेली के आम चुनाव में होने वाले भ्रष्टाचार पर कोर्ट के द्वारा  मात दी थी . 1971 में वह रायबरेली से लोकसभा का चुनाव सत्ता के इशारे पर इंदिरा गांधी जी से हार गए थे . जब कि राज नारायण जी को इस चुनाव में अपनी जीत का पूरा भरोसा था . कार्यकर्ताओ से जानकारी करने पर पता चला कि प्रधानमन्त्री के इशारे पर इस चुनाव में खूब धांधली हुई है सो उन्होंने इस चुनाव को रद्द करने के लिए इलाहाबाद हाइकोर्ट में चुनाव याचिका दाखिल कर दी , एक अजेय प्रधानमन्त्री के खिलाफ चुनावी हार के बाद अदालत में याचिका ....... लोग उन पर खूब हंसे. लेकिन जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा का ऐतिहासिक फैसला आया, तो एक नया इतिहास बन गया. ये बेईमानी का चुनाव रद्द हो गया . दुबारा मतों की गिनती हुई और राजनारायण जी विजयी घोषित हुए . अपनी इस हार पर खीझ कर आयरन लेडी कही जाने वाली इंदिरा गांधी जी ने पुरे देश में आपातकाल लगा दिया .आगे इसी आपातकाल के फैसले के बाद लोकनायक जय प्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति के आंदोलन में ऐसा जबर्दस्त उबाल आया कि देश में भूचाल आ गया था और लोकतंत्र ने तानाशाही को परास्त किया था .


ऐसे स्वभाव के फक्कड़ लोकबन्धु जी का जन्म २३ नवम्बर १९१७ को वाराणसी की मोतिकोट गाव में एक भूमिहार ब्राह्मण जमीदार परिवार में हुआ था व महाराजा चेत सिंह व बलवंत सिंह उनके वशंज थे जो त्यागी भूमिहार थे. उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से एमए एलएलबी पास किया. परिवार के लोग उन्हें सरकारी अदालत में देखना चाहते थे पर राजनारायण जी को जनता की अदालत पसंद थी .एक जमीदार परिवार में जन्म लेने के बावजूद भी वह जमीदारी सामंतशाही के सख्त खिलाफ थे .शिछा लेने के बाद उन्होंने आजादी के आंदोलन में हिस्सा लिया. भारत छोड़ों आंदोलन में उनकी सक्रियता को देखते हुए अंग्रेज सरकार ने उन पर 5 हजार रुपए का इनाम घोषित किया था. आजादी के बाद वे आचार्य नरेंद्र देव, राममनोहर लोहिया की समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए. 


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कुछ लोगो के अनुसार वह एक कबीरपंथी थे . सही मायने में वह एक समाजवादी नेता थे . क्रांतिकारी होने के साथ साथ वह एक महान समाज सुधारक भी थे . हरिजनों के मंदिरों में प्रवेश करने हेतु उन्होंने मुखर संघर्ष किया . राजनारायण जी के अनुसार भगवान् सबके है ,वह केवल ब्राह्मनो के ही नहीं है .काशी के विश्वनाथ मंदिर में पंडो के घोर विरोध के बावजूद उन्होंने जुलुस निकाल कर हरिजनों को मंदिर में प्रवेश दिलाया .हालांकि इस संघर्ष में काफी मार- पीट हुई थी . राजनारायण जी के दाढ़ी के बालो को भी पंडो द्वारा नोचा गया किन्तु राजनारायण जी जिस उद्देश्य को ठान लेते थे उसे पूरा कर के ही दम लेते थे . वे छुआ छुत जैसी कुप्रथाओं से समाज को मुक्त कराना चाहते थे . सही मायने में वे एक अछुतोद्धारक भी थे . 




१९४२ में अंग्रेजो के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण अंग्रेजी सरकार ने उनके ऊपर ५०००/- रूपये का इनाम घोषित कर दिया था .इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस वक्त वह कितने मुखर और प्रभावशाली क्रांतिकारी रहे होंगे. राजनारायण जी ने डा लोहिया की पार्टी " सोशलिस्ट पार्टी " से अपना नाता जोड़ा और समाजवादी आन्दोलन के प्रचार के लिए अपने साथियों के साथ पुरे देश में भ्रमण किया . वह मुम्बई भी गये . वहा रह रहे उत्तर भारतीयों को उन्होंने समझाया की छः एकड़ से कम के किसानो की लगान कांग्रेस सरकार से अगर माफ़ करवानी है तो इसे वोट न दे और समाजवादी पार्टी को वोट दे. उनका आन्दोलन जबरदस्त था .मुम्बई में समाजवादी पार्टी को जबरदस्त सफलता मिली थी .असल में वह एक समता मूलक समाज की स्थापना चाहते थे . अन्याय से लड़ने को सदैव तत्पर रहते थे .वह समाजवाद के लिए पूर्णतया समर्पित थे और कहते थे कि जिसे अपना घर फुकना हो वो हमारे साथ आये यानी घर के नाम पर कोई बहाना नहीं चलेगा . वह अपने साथ गुड- चना रखते थे और जब भोजन का समय नहीं मिलता तो उसी गुड चने से ही अपना काम चलाते थे .उनके अन्याय के खिलाफ लड़ने का जज्बा देख कर भ्रष्ट सरकारी अफसर भी उनसे कापते थे .


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देश को आजादी मिलने के बाद भी बनारस के बनिया बाग़ में ब्रिटेन की महारानी की मूर्ति स्थापित थी जो की देश की गुलामी की प्रतीक थी . उस मूर्ति को हटाने की बात से राजनारायण जी भी सहमत थे किन्तु सरकारी पुलिस से कौन भिड़ता . राजनारायण जी ने खुद इसे अंजाम देने का संकल्प किया . भारी पुलिस सुरछा के बावजूद वह जुलुस के साथ उस मूर्ति को तोड़ने निकले . पुलिस को चकमा देकर वे मूर्ति के पास पहुच ही गए . पुलिस उनके पीछे उन्हें पकड़ने की कोशिश जब तक करती तब तक लोकबन्धु जी ने धक्का मार कर पराधीनता की प्रतीक बनी उस मूर्ति को मिटटी में मिला दिया . लोकबन्धु जी गिरफ्तार हुए पुलिस ने डंडे भी चलाए पर इस क्रांतिकारी ने तो अपना आन्दोलन पूरा कर ही लिया था . बनारस में इसी स्थान को " लोकबन्धु राजनारायण पार्क " के नाम से जाना जाता है . 


भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव में भ्रष्टाचार और अनियमितता का मुद्दा होने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुकदमा दायर करने वाला वाक्या तो हर कोई जानता ही है . मुख्य न्यायधीश जगमोहन सिन्हा ने चुनावी भ्रष्टाचार में इंदिरा गाँधी को दोषी करार दिया था . इस मुकदमे में इंदिरा जी की हार हुई थी और राजनारायण जी की जीत .इसी हार से खीझ कर इंदिरा जी ने पुरे देश में आपात काल लगा दिया था . १९७५ में आपात काल में जेल से रिहा होने के बाद १९७७ में रायबरेली से ही राजनारायण जी ने भारी मतों से चुनाव जीता .


राजनारायण जी के व्यक्तित्व में हनुमान जी के समान तेज था. डा लोहिया के जीवित रहते उन्होंने कई ऐतिहासिक सत्याग्रह व आंदोलन किए थे. उदाहरण के लिए 956 में काशी विश्वनाथ मंदिर में हरिजन प्रवेश आंदोलन, अंग्रेजी हुकूमत की महारानी विक्टोरिया की काशी में लगी मूर्ति का भंजन आंदोलन, गरीबों को रोटी दिलाने के लिए विधानसभा में सत्याग्रह, जो जमीन को जोते-बोए, उसको जमीन का मालिक बनाने के लिए सत्याग्रह इत्यादि . डा लोहिया की सोशलिस्ट पार्टी में लोकबन्धु जी प्रमुख नेता बन कर उभरे . मधु लिमये और मामा बालेश्वर जी के साथ इनकी अच्छी खासी जमती थी . जनता पार्टी की सरकार में लोकबन्धु को 'स्वास्थ्य मंत्री ' का कार्यभार सौपा गया . जिसे उन्होंने बड़ी ईमानदारी से निभाया . राजनारायण जी काफी सम्पन्न घराने से थे और उनके पास 800 बीघा जमीन थी लेकिन उसे भी उन्होंने दलितों में बांट दिया था .



लोकबन्धु बहुत ही संकल्पवान और गंभीर शक्शियत वाले थे .लखनऊ में एक बार एक सभा जिसमे डा लोहिया के साथ कई वरिष्ठ समाजवादी थे उसका संचालन करते हुए उनके लिए एक शोक संदेश आया , जो की उनके ज्येष्ठ पुत्र गोपाल जी के निधन का था , तार में उनसे अविलम्ब घर आने को लिखा हुआ था . किन्तु वह दुखद सन्देश उन्हें देने की हिम्मत कोई नही कर पा रहा था . ये बात डा लोहिया को बतायी गयी . डा लोहिया ने वह तार उन्हें दिखाया और बनारस तु्रनत जाने को कहा . पर ये क्या ......लोकबन्धु जी ने वह तार अपनी जेब में रख लिया और सभा का संचालन करते रहे . कार्यवाही में कोई बाधा नहीं आने दी और न ही वे तनिक भी विचलित हुए . सभा विसर्जन के बाद उनसे लोगो ने शिकायत की ,आप गए क्यों नहीं ? ये सुन कर लोकबन्धु बोले ,” देश में रोज हजारो बच्चे मर रहे है ...कुछ भूख से ..कुछ बिमारी से मर रहे है ..उनकी म्रत्यु पर आप लोग तनिक भी दुःख नहीं करते ,मेरे लड़के के निधन पर आप लोग क्यों इतना दुखित हो रहे है ? क्या गरीबो के बच्चे ,बच्चे नहीं होते ? ये सुन कर लोग अवाक हो गए . वास्तव में लोकबन्धु एक लोह्पुरुष ही थे और जनमानस के बीच रमे हुए थे .वह डा लोहिया के बहुत ही नजदीक थे . डा लोहिया उन्हें शेर दिल और गाँधी जी की नीतियों पर चलने वाला शख्स कहते थे .वह लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में रहे . १९७७ से १९८० तक मोरार जी की सरकार में वह स्वास्थ्य मंत्री भी रहे .

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लोकबन्धु राजनारायण जी अपने सम्पूर्ण ६९ वर्ष के जीवनकाल में ८० बार जेल गए .उन्होंने कुल १७ वर्ष जेल में बिताए जिसमे से तीन वर्ष अंग्रेजी राज में और १४ वर्ष कांग्रेस राज में . राजनारायण आम जनता के नायक थे . वह समाजवाद को मानने वाले एक महान व्यक्तित्व थे . ३१ दिसम्बर १९८८ को डा राम मनोहर लोहिया अस्पताल ,नई दिल्ली में २३:५५ मिनट पर जब उन्होंने अपना शरीर त्यागा तो ये दुखद समाचार आग की तरह पुरे देश में फ़ैल गया . देश में शोक लहर व्याप्त हो गयी .किसान ,शिछ्क ,मजदुर ,वकील सभी अपना काम धंधा छोड़ कर वाराणसी उनकी शव यात्रा में पहुच गये . लगभग पूरा वाराणसी ही शव यात्रा में शामिल हुआ . जब ‘ मणिकारणिका घाट ‘ पर उनका अंतिम संस्कार हुआ तो चारो और ‘लोकबन्धु राजनारायण अमर रहे ‘ के नारे गूंज उठे .समाजवादी आन्दोलन के इस योधा की कहानी मिडिया बताये या न बताए पर उनकी चर्चा गावो में खेतो के खलिहानों ,चौपालों में ,आम जनमानस में लोक कथाओं की तरह सुनी सुनाई जाती है . राजनारायण जी के पीछे उनके तीन पुत्र श्री राधेमोहन जी , श्री जयप्रकाश जी ,श्री ओमप्रकाश जी है . 


डा राम मनोहर लोहिया उनके आदर्श व प्रेरणा, दोनों ही थे. उनके प्रखर समाजवादी विचारों को साकार करने में लोकबन्धु जीवनर्पयंत लगे रहे.  डा लोहया को अपना सब कुछ मानने वाले राजनीति के इस फक्कड संत लोकबन्धु के पास भी अपनी म्रत्यु के समय बैंक खाते में मात्र 1450 रुपए ही थे. देश में स्वास्थ्य मंत्री बनने के बाद भी राजनारायण धन -दौलत की जगह जनता के सेवक थे . लोकबन्धु का सम्पूर्ण जीवन लोकतंत्र की एक किताब है .लोकबन्धु जी के बारे में डा. लोहिया ने एक बार कहा था- उनका कलेजा शेर जैसा व आचरण महात्मा गांधी सरीखा है. अगर इस देश में 3-4 और राजनारायण मिल जाएं तो यहां कभी तानाशाही लागू ही नहीं हो सकती है.डा लोहिया कहते थे कि जब तक राजनारायण जिन्दा है तब तक इस देश में लोकतंत्र मर नही सकता है .


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राजनारायण बनाम इंदिरा गाँधी 
लोकबन्धु के बारे में मुलायम सिह जी के विचार

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