आरती श्री गणेश जी की
जय
गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ।
माता जा की पार्वती, पिता महादेवा ॥ जय गणेश देवा...
एकदन्त दयावन्त चार भुजाधारी
माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी ।।
अन्धन को आँख देत, कोढ़िन को काया।
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ।। जय गणेश देवा...
पान चढ़े फल चढ़े और चढ़े मेवा
लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा ॥
'सूर' श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ॥
माता जा की पार्वती, पिता महादेवा ॥ जय गणेश देवा...
एकदन्त दयावन्त चार भुजाधारी
माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी ।।
अन्धन को आँख देत, कोढ़िन को काया।
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ।। जय गणेश देवा...
पान चढ़े फल चढ़े और चढ़े मेवा
लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा ॥
'सूर' श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ॥
आरती कुँज बिहारी की
आरती कुँज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
गले में वैजन्ती माला। माला।
बजावे मुरली मधुर बाला। बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला। झलकाला।
नन्द के नन्द। श्री आनन्द कन्द। मोहन बृज चन्द।
राधिका रमण बिहारी की।
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ आरती कुँज…..
बजावे मुरली मधुर बाला। बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला। झलकाला।
नन्द के नन्द। श्री आनन्द कन्द। मोहन बृज चन्द।
राधिका रमण बिहारी की।
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ आरती कुँज…..
गगन सम अंग कान्ति काली। काली।
राधिका चमक रही आली। आली।
लसन में ठाड़े वनमाली। वनमाली।
भ्रमर सी अलक। कस्तूरी तिलक। चन्द्र सी झलक।
ललित छवि श्यामा प्यारी की।
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ आरती कुँज…..
राधिका चमक रही आली। आली।
लसन में ठाड़े वनमाली। वनमाली।
भ्रमर सी अलक। कस्तूरी तिलक। चन्द्र सी झलक।
ललित छवि श्यामा प्यारी की।
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ आरती कुँज…..
जहाँ से प्रगट भयी गंगा। गंगा।
कलुष कलि हारिणी श्री गंगा। गंगा।
स्मरण से होत मोह भंगा। भंगा।
बसी शिव शीश। जटा के बीच। हरे अघ कीच।
चरण छवि श्री बनवारी की।
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ आरती कुँज…..
कलुष कलि हारिणी श्री गंगा। गंगा।
स्मरण से होत मोह भंगा। भंगा।
बसी शिव शीश। जटा के बीच। हरे अघ कीच।
चरण छवि श्री बनवारी की।
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ आरती कुँज…..
कनकमय मोर मुकुट बिलसै। बिलसै।
देवता दरसन को तरसै। तरसै।
गगन सों सुमन राशि बरसै। बरसै।
बजे मुरचन। मधुर मृदंग। मालिनि संग।
अतुल रति गोप कुमारी की।
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ आरती कुँज…..
देवता दरसन को तरसै। तरसै।
गगन सों सुमन राशि बरसै। बरसै।
बजे मुरचन। मधुर मृदंग। मालिनि संग।
अतुल रति गोप कुमारी की।
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ आरती कुँज…..
चमकती उज्ज्वल तट रेणु। रेणु।
बज रही बृन्दावन वेणु। वेणु।
चहुँ दिसि गोपि काल धेनु। धेनु।
कसक मृद मंग। चाँदनी चन्द। खटक भव भन्ज।
टेर सुन दीन भिखारी की।
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ आरती कुँज…..
बज रही बृन्दावन वेणु। वेणु।
चहुँ दिसि गोपि काल धेनु। धेनु।
कसक मृद मंग। चाँदनी चन्द। खटक भव भन्ज।
टेर सुन दीन भिखारी की।
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ आरती कुँज…..
आरती जय अम्बे गौरी
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुम को निस दिन ध्यावत, (मैयाजी को निस दिन ध्यावत)
हरि ब्रह्मा शिवजी। बोलो जय अम्बे गौरी…
तुम को निस दिन ध्यावत, (मैयाजी को निस दिन ध्यावत)
हरि ब्रह्मा शिवजी। बोलो जय अम्बे गौरी…
माँग सिन्दूर विराजत, टीको मृग मद को।
(मैया टीको मृगमद को)
उज्ज्वल से दो नैना, चन्द्रवदन नीको॥
बोलो जय अम्बे गौरी…
(मैया टीको मृगमद को)
उज्ज्वल से दो नैना, चन्द्रवदन नीको॥
बोलो जय अम्बे गौरी…
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर साजे।
(मैया रक्ताम्बर साजे)
रक्त पुष्प गले माला, कण्ठ हार साजे॥
बोलो जय अम्बे गौरी…
(मैया रक्ताम्बर साजे)
रक्त पुष्प गले माला, कण्ठ हार साजे॥
बोलो जय अम्बे गौरी…
केहरि वाहन राजत खड्ग कृपाण धारी।
(मैया खड्ग कृपाण धारी)
सुर नर मुनि जन सेवत, तिनके दुख हारी॥
बोलो जय अम्बे गौरी…
(मैया खड्ग कृपाण धारी)
सुर नर मुनि जन सेवत, तिनके दुख हारी॥
बोलो जय अम्बे गौरी…
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
(मैया नासाग्रे मोती)
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति॥
बोलो जय अम्बे गौरी…
(मैया नासाग्रे मोती)
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति॥
बोलो जय अम्बे गौरी…
शम्भु निशम्भु बिडारे, महिषासुर धाती।
(मैया महिषासुर धाती)
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती॥
बोलो जय अम्बे गौरी…
(मैया महिषासुर धाती)
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती॥
बोलो जय अम्बे गौरी…
चण्ड मुण्ड विनाशिनी, शोणित बीज हरे।
(मैया शोणित बीज हरे)
मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भय दूर करे॥
बोलो जय अम्बे गौरी…
(मैया शोणित बीज हरे)
मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भय दूर करे॥
बोलो जय अम्बे गौरी…
ब्रह्माणी रुद्राणी, तुम कमला रानी।
(मैया तुम कमला रानी)
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी॥
बोलो जय अम्बे गौरी…
(मैया तुम कमला रानी)
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी॥
बोलो जय अम्बे गौरी…
चौंसठ योगिन गावत, नृत्य करत भैरों।
(मैया नृत्य करत भैरों)
बाजत ताल मृदंग, और बाजत डमरू॥
बोलो जय अम्बे गौरी…
(मैया नृत्य करत भैरों)
बाजत ताल मृदंग, और बाजत डमरू॥
बोलो जय अम्बे गौरी…
तुम हो जग की माता, तुम ही हो भर्ता।
(मैया तुम ही हो भर्ता)
भक्तन की दुख हर्ता, सुख सम्पति कर्ता॥
बोलो जय अम्बे गौरी…
(मैया तुम ही हो भर्ता)
भक्तन की दुख हर्ता, सुख सम्पति कर्ता॥
बोलो जय अम्बे गौरी…
भुजा चार अति शोभित, वर मुद्रा धारी।
(मैया वर मुद्रा धारी)
मन वाँछित फल पावत, देवता नर नारी॥
बोलो जय अम्बे गौरी…
(मैया वर मुद्रा धारी)
मन वाँछित फल पावत, देवता नर नारी॥
बोलो जय अम्बे गौरी…
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
(मैया अगर कपूर बाती)
माल केतु में राजत, कोटि रतन ज्योती॥
बोलो जय अम्बे गौरी…
(मैया अगर कपूर बाती)
माल केतु में राजत, कोटि रतन ज्योती॥
बोलो जय अम्बे गौरी…
माँ अम्बे (जी) की आरती, जो कोई नर गावे।
(मैया जो कोई नर गावे)
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पति पावे॥
बोलो जय अम्बे गौरी…
(मैया जो कोई नर गावे)
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पति पावे॥
बोलो जय अम्बे गौरी…
श्री शिवजी की आरती
जय शिव ओंकारा, भज हर शिव
ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव,
अर्द्धाङ्गी धारा॥ जय शिव…..
एकानन, चतुरानन, पञ्चानन
राजॆ।
हंसासन, गरुड़ासन, वृषवाहन
साजॆ॥ जय शिव…..
दो भुज, चार चतुर्भुज, दशभुज
अति सोहॆ।
तीनों रूप निरखते, त्रिभुवन मन
मोहॆ॥ जय शिव…..
अक्षमाला, वनमाला, मुण्डमाला
धारी।
चन्दन, मृगमद, चन्दा
सोहॆ त्रिपुरारी॥ जय शिव…..
श्वेताम्बर, पीताम्बर,
बाघाम्बर अंगे।
सनकादिक, ब्रह्मादिक, भूतादिक
संगे॥ जय शिव…..
कर के मध्ये कमण्डलु, चक्र
त्रिशूलधारी।
सुखकारी, दुःखहारी, जगपालन
कारी॥ जय शिव…..
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव,
जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर में शोभित, ये तीनों एका॥
जय शिव…..
त्रिगुण शिवजी की आरती, जो कोई नर
गावॆ।
कहत शिवानन्द स्वामी, मन वांछित फल
पावॆ॥ जय…
आरती ॐ जय जगदीश हरे
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥ ॐ जय जगदीश…
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥ ॐ जय जगदीश…
जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का।
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय जगदीश…
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय जगदीश…
मात पिता तुम
मेरे, शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी॥ ॐ जय जगदीश…
तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी॥ ॐ जय जगदीश…
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी॥ ॐ जय जगदीश…
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी॥ ॐ जय जगदीश…
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता।
मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय जगदीश…
मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय जगदीश…
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय जगदीश…
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय जगदीश…
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे।
करुणा हाथ बढ़ाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय जगदीश…
करुणा हाथ बढ़ाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय जगदीश…
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय जगदीश…
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय जगदीश…
हनुमान जी की आरती
आरती कीजे हनुमान लला की। दुष्टदलन रघुनाथ कला की॥
जाके बल से गिरिवर काँपे। रोग-दोष जाके निकट न झाँके॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई। संतन के प्रभु सदा सहाई॥
दे बीरा रघुनाथ पठोये। लंका जारि सीय सुधि लाये॥
लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई॥
लंका जारि असुर संहारे। सियारामजी के काज सँवारे॥
लक्ष्मन मूर्छित पड़े सकारे। आनि सजीवन प्रान उबारे॥
पैठि पताल तोरि जम-कारे। अहिरावन की भुजा उखारे॥
बायें भुजा असुर दल मारे। दहिने भुजा संतजन तारे॥
सुर नर मुनि आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे॥
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरति करत अंजना माई॥
जो हनुमान जी की आरति गावे। बसि बैकुंठ परमपद पावे॥
॥ सियावर रामचन्द्र की जय ॥
आरती श्री रामायण जी की
आरती श्री रामायण जी की । कीरति
कलित ललित सिय पी की ।।
गावत ब्रहमादिक मुनि नारद ।
बाल्मीकि बिग्यान बिसारद ।।शुक सनकादिक शेष अरु शारद ।
बरनि पवनसुत कीरति नीकी ।।1आरती श्री रामायण जी
की........।।गावत बेद पुरान अष्टदस । छओं शास्त्र सब ग्रंथन को रस ।।मुनि जन धन संतान को सरबस । सार अंश सम्मत सब ही की ।।2आरती श्री रामायण जी की........।।
गावत संतत शंभु भवानी । अरु घटसंभव मुनि बिग्यानी ।।ब्यास आदि कबिबर्ज बखानी । कागभुशुंडि गरुड़ के ही की ।।3आरती श्री रामायण जी की........।।
कलिमल हरनि बिषय रस फीकी । सुभग सिंगार भगति जुबती की ।।दलनि रोग भव मूरि अमी की । तात मातु सब बिधि तुलसी की ।।4आरती श्री रामायण जी की........।।
आरती शनि देव जी की
जय जय श्री शनिदेव भक्तन
हितकारी।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी॥ जय..
श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी।
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥ जय..
क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥ जय..
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥ जय..
देव दनुज ऋषि मुनि सुमरिन नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥ जय..
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी॥ जय..
श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी।
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥ जय..
क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥ जय..
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥ जय..
देव दनुज ऋषि मुनि सुमरिन नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥ जय..
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