आजाद भारत में शायद ये दूसरी बार मीडिया के किसी एक चेनेल पर कोई सरकारी प्रतिबन्ध हुआ है . सम्भवतः मिडिया पर देश में पहला प्रतिबन्ध १९७५ के आपातकाल के दौरान लगा था . इसलिए एक बार फिर से लोगो के मस्तिष्क में आपातकाल आने के विचार आ रहे है . इस विचार मंथन के पीछे 'विचारों की अभिव्यक्ति की आजादी' को सरकार द्वारा रोकने की एक कोशिश माना जा रहा है . ये तो सर्वमान्य तथ्य है कि विचारों के आदान -प्रदान से ही मिडिया आगे बढ़ता है . किन्तु ये भी सच है कि आज देश के मीडिया की छवि भी १९७५ के दौरान की नही रही है . आज मीडिया पर भी बिकाऊ पछ्पाती और झूठी खबरों को दिखाने के आरोप लगते आये है .
लोकतंत्र में मीडिया को रोकना बिलकुल अलोकतांत्रिक कदम माना जाता है . इसलिए सरकार किसी चेनेल को प्रतिबंधित करने के बजाय कोई अन्य कार्यवाही करे तो वह बेहतर होगा . सरकार हो चाहे मिडिया ,ये सभी लोकतंत्र पर ही आश्रित है और लोकतंत्र की सुरछा के लिए जिम्मेदार भी है .
लोकतंत्र में मीडिया को रोकना बिलकुल अलोकतांत्रिक कदम माना जाता है . इसलिए सरकार किसी चेनेल को प्रतिबंधित करने के बजाय कोई अन्य कार्यवाही करे तो वह बेहतर होगा . सरकार हो चाहे मिडिया ,ये सभी लोकतंत्र पर ही आश्रित है और लोकतंत्र की सुरछा के लिए जिम्मेदार भी है .
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