देश भर में ८ नवम्बर को प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा ५०० और १००० के नोटों को अचानक बंद कर दिए जाने की घोषणा की गयी . प्रधानमन्त्री जी ने अपनी इस मुहीम के पीछे देश में मौजूद समस्त काले धन को जड़ से समाप्त करने की बात कही है . सरकार द्वारा एक झटके में अचानक इतना बड़ा फैसला लेने के बाद इस पर पुरे देश की जनता का अचम्भे में पड जाना स्वाभाविक है . हालांकि देश में नोट बंदी का ये पहला मामला नही है और इससे पहले भी १९४६ और १९७८ में १००० मूल्य से ज्यादा के नोटों पर तत्कालीन सरकारों ने रोक लगा दी थी . लेकिन बाद में १९८७ में पहले ५०० और फिर २००१ में १००० के नए नोट प्रारम्भ किये गये .नोटों की डिजाइन और उनकी सुरछा प्रणाली में समय -समय पर थोड़े -बहुत परिवर्तन भी होते रहे है .
वर्तमान समय में लागू नोटबंदी का देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा ? क्या इससे देश में मौजूद समस्त कालाधन सरकार को प्राप्त हो जाएगा ? क्या सरकार के इस कदम से राष्ट्रविरोधी ताकतों के हौसले पस्त हो जायेगे ? क्या इससे देश में मौजूद महंगाई में कमी आएगी ? क्या इससे देश में मौजूद भ्रष्टाचार कुछ कम होगा ? क्या इस नोट बंदी से सत्तारूढ़ भाजपा को कुछ कुछ राजनैतिक लाभ या हानि होगी ? आखिरकार देश की जनता को इस नोट बंदी से क्या फायदा या नुक्सान होने वाला है , आइये इस पर एक नजर डालते है :-
तमाम अर्थ शास्त्रियों के अनुसार ५०० और १००० के पुराने नोट समाप्त करने तथा २००० के नए बड़े नोट चालु करने से बाजार में मौजूद केवल ३ प्रतिशत काला धन ही बाहर आ पायेगा . सवाल उठता है कि फिर बाकी का काला धन कहा है ? अर्थशास्त्रियो के अनुसार ये कालाधन सोना -चांदी , हीरे -जवाहरात , जमीन जायदाद आदि के रूप में मौजूद होता है . इसी काले धन से विदेशो में होटल ,जमींन -जायदाद भी खरीदे जाते है . देश का काफी काला धन विदेशी बैंको में जमा रहता है . स्पष्ट है कि ऐसे धन को वापस लाना मुश्किल ही है . अधिकाँश काला धन भ्रष्ट राजनेताओ ,घुसखोर नौकरशाहों , टैक्स चोरी करने वाले व्यापारियों आदि के पास होता है जिसे वे सब नोट के रूप में नही रखते है . इसलिए मात्र ५०० और १००० रुपयों के नोट को बंद कर अगर सरकार ये सोचती है कि बाजार में मौजूद समस्त कालाधन उसके पास आ जाएगा तो ये उसकी नासमझी ही कही जायेगी .
वही इन नोटों को जमा करने के बाद जनता को उसके बदले में समुचित कैश उपलब्ध करवाना भी सरकार के लिए काफी मुश्किल काम होगा . सरकार भले ही अपनी मुहीम को कालाधन पर प्रहार कहती हो लेकिन बड़े कोर्पोरेट घरानों पर जिस तरह से उसकी मेहरबानी हो रही है उससे उसकी नीयत पर भी बड़े सवाल खड़े हो रहे है . मसलन अम्बानी ,अदानी और विजय माल्या समेत देश के अनेक कोर्पोरेट का हजारो करोड़ का कर्ज माफ़ करना सरकार को कटघरे में खड़ा करता है . आज जहा देश में किसान कर्ज से परेशान होकर आत्महत्या को विवश है , उस नाजुक दौर में किसानो के कर्ज न माफ़ करके बड़े कोर्पोरेट घरानों को कर्जमाफी देना किसी लिहाज से सराहनीय कदम नही कहा जा सकता है . वही सरकार अपने वायदे के मुताबिक़ विदेशो में जमा अरबो -खरबों रूपये का काला धन वापस देश में लाने पर बिलकुल खामोश है . ये वही काला धन है जिसे प्रधानमन्त्री मोदी विदेशो से लाकर हर भारतीय के खाते में १५ -१५ लाख रूपये देने की बाते कहते थे . इससे इस विदेशी काले धन के अपार भंडार के बारे में समझा जा सकता है . वही दूसरी तरफ चुनाव आयोग द्वारा सभी राजनैतिक पार्टियों को मिलने वाले चुनावी चंदे या पार्टी फंड की जानकारी देने पर राजनैतिक पार्टिया कितनी जिम्मेदार है , ये किसी से छिपा हुआ भी नही है . अब तो राजनैतिक पार्टियों को २० हजार तक के चुनावी चंदे का कोई हिसाब देंना भी अनिवार्य नही रह गया है . इस तरह से काले धन के स्रोतों और उसके सफेद धन में परिवर्तन होने की राह में समस्त राजनैतिक पार्टियों स्वयम ही लापरवाह नजर आती है .
नोट बंदी के इस एका एक अचानक हुए फैसले से भले ही काले धन को रखने वाले लोग परेशान हुए हो लेकिन इनके साथ -साथ देश की समस्त जनता भी पिसी जा रही है . देश का इनकम टैक्स विभाग और तमाम सरकारी मशीनरी देश में मौजुद काले धन का यदि पता नही लगा सकती है तो इसकी सजा निर्दोष जनता को देना कहा का न्याय कहा जाएगा ? बैंको में लगने वाली भीड़ मेलो से भी बड़ी नजर आती है . अपने पैसो के लिए लोग रात -दिन लाइनों में लग रहे है . किसी का अपना बीमार है तो दवा के लिए पैसो का इंतजाम हेतु लाइन में लगना पड रहा है तो किसी की लड़की की शादी है तो उसे भी बैंक में चक्कर लगाने के बावजूद अपना पैसा नही मिल पा रहा है . लाइनों में खड़े -खड़े न जाने कितने बुजुर्ग काल के गाल में समा गये . महिलाओं के जीवन भर की घरेलू बचत दलालों के हत्थे चढ़ गयी . मासूम बच्चे समय से दवा नही मिलने से मौत के आगोश में समा गये . व्यापारी अपनी बोनी के लिए भी तरस गये . ये अनेक ऐसी घटनाए सरकार के नोट बंदी के फैसले को अदूरदर्शी और नासमझ बताती है . ये तो एकदम साफ़ है कि सरकार ने पर्याप्त मात्रा में नए नोट छापे बगैर पुराने नोट भी जमा करवा लिए . जनता को होने वाली इस भीषण असुविधा के कारण सरकार जनता का कोपभाजन भी बन रही है . सरकार के नोट बंदी के इस फैसले का देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा ये तो आने वाला वक्त ही बतायेगा लेकिन फिलहाल जनता सरकार के इस कदम को लाइनों में लग -लग के कोस रही है . अब तो कुछ चुटकुले भी बन रहे है :-
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वर्तमान समय में लागू नोटबंदी का देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा ? क्या इससे देश में मौजूद समस्त कालाधन सरकार को प्राप्त हो जाएगा ? क्या सरकार के इस कदम से राष्ट्रविरोधी ताकतों के हौसले पस्त हो जायेगे ? क्या इससे देश में मौजूद महंगाई में कमी आएगी ? क्या इससे देश में मौजूद भ्रष्टाचार कुछ कम होगा ? क्या इस नोट बंदी से सत्तारूढ़ भाजपा को कुछ कुछ राजनैतिक लाभ या हानि होगी ? आखिरकार देश की जनता को इस नोट बंदी से क्या फायदा या नुक्सान होने वाला है , आइये इस पर एक नजर डालते है :-
तमाम अर्थ शास्त्रियों के अनुसार ५०० और १००० के पुराने नोट समाप्त करने तथा २००० के नए बड़े नोट चालु करने से बाजार में मौजूद केवल ३ प्रतिशत काला धन ही बाहर आ पायेगा . सवाल उठता है कि फिर बाकी का काला धन कहा है ? अर्थशास्त्रियो के अनुसार ये कालाधन सोना -चांदी , हीरे -जवाहरात , जमीन जायदाद आदि के रूप में मौजूद होता है . इसी काले धन से विदेशो में होटल ,जमींन -जायदाद भी खरीदे जाते है . देश का काफी काला धन विदेशी बैंको में जमा रहता है . स्पष्ट है कि ऐसे धन को वापस लाना मुश्किल ही है . अधिकाँश काला धन भ्रष्ट राजनेताओ ,घुसखोर नौकरशाहों , टैक्स चोरी करने वाले व्यापारियों आदि के पास होता है जिसे वे सब नोट के रूप में नही रखते है . इसलिए मात्र ५०० और १००० रुपयों के नोट को बंद कर अगर सरकार ये सोचती है कि बाजार में मौजूद समस्त कालाधन उसके पास आ जाएगा तो ये उसकी नासमझी ही कही जायेगी .
वही इन नोटों को जमा करने के बाद जनता को उसके बदले में समुचित कैश उपलब्ध करवाना भी सरकार के लिए काफी मुश्किल काम होगा . सरकार भले ही अपनी मुहीम को कालाधन पर प्रहार कहती हो लेकिन बड़े कोर्पोरेट घरानों पर जिस तरह से उसकी मेहरबानी हो रही है उससे उसकी नीयत पर भी बड़े सवाल खड़े हो रहे है . मसलन अम्बानी ,अदानी और विजय माल्या समेत देश के अनेक कोर्पोरेट का हजारो करोड़ का कर्ज माफ़ करना सरकार को कटघरे में खड़ा करता है . आज जहा देश में किसान कर्ज से परेशान होकर आत्महत्या को विवश है , उस नाजुक दौर में किसानो के कर्ज न माफ़ करके बड़े कोर्पोरेट घरानों को कर्जमाफी देना किसी लिहाज से सराहनीय कदम नही कहा जा सकता है . वही सरकार अपने वायदे के मुताबिक़ विदेशो में जमा अरबो -खरबों रूपये का काला धन वापस देश में लाने पर बिलकुल खामोश है . ये वही काला धन है जिसे प्रधानमन्त्री मोदी विदेशो से लाकर हर भारतीय के खाते में १५ -१५ लाख रूपये देने की बाते कहते थे . इससे इस विदेशी काले धन के अपार भंडार के बारे में समझा जा सकता है . वही दूसरी तरफ चुनाव आयोग द्वारा सभी राजनैतिक पार्टियों को मिलने वाले चुनावी चंदे या पार्टी फंड की जानकारी देने पर राजनैतिक पार्टिया कितनी जिम्मेदार है , ये किसी से छिपा हुआ भी नही है . अब तो राजनैतिक पार्टियों को २० हजार तक के चुनावी चंदे का कोई हिसाब देंना भी अनिवार्य नही रह गया है . इस तरह से काले धन के स्रोतों और उसके सफेद धन में परिवर्तन होने की राह में समस्त राजनैतिक पार्टियों स्वयम ही लापरवाह नजर आती है .
नोट बंदी के इस एका एक अचानक हुए फैसले से भले ही काले धन को रखने वाले लोग परेशान हुए हो लेकिन इनके साथ -साथ देश की समस्त जनता भी पिसी जा रही है . देश का इनकम टैक्स विभाग और तमाम सरकारी मशीनरी देश में मौजुद काले धन का यदि पता नही लगा सकती है तो इसकी सजा निर्दोष जनता को देना कहा का न्याय कहा जाएगा ? बैंको में लगने वाली भीड़ मेलो से भी बड़ी नजर आती है . अपने पैसो के लिए लोग रात -दिन लाइनों में लग रहे है . किसी का अपना बीमार है तो दवा के लिए पैसो का इंतजाम हेतु लाइन में लगना पड रहा है तो किसी की लड़की की शादी है तो उसे भी बैंक में चक्कर लगाने के बावजूद अपना पैसा नही मिल पा रहा है . लाइनों में खड़े -खड़े न जाने कितने बुजुर्ग काल के गाल में समा गये . महिलाओं के जीवन भर की घरेलू बचत दलालों के हत्थे चढ़ गयी . मासूम बच्चे समय से दवा नही मिलने से मौत के आगोश में समा गये . व्यापारी अपनी बोनी के लिए भी तरस गये . ये अनेक ऐसी घटनाए सरकार के नोट बंदी के फैसले को अदूरदर्शी और नासमझ बताती है . ये तो एकदम साफ़ है कि सरकार ने पर्याप्त मात्रा में नए नोट छापे बगैर पुराने नोट भी जमा करवा लिए . जनता को होने वाली इस भीषण असुविधा के कारण सरकार जनता का कोपभाजन भी बन रही है . सरकार के नोट बंदी के इस फैसले का देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा ये तो आने वाला वक्त ही बतायेगा लेकिन फिलहाल जनता सरकार के इस कदम को लाइनों में लग -लग के कोस रही है . अब तो कुछ चुटकुले भी बन रहे है :-
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बच्चे क्या कर रहे हैं आजकल ?
बड़ा बेटा SBI में, उसकी पत्नी AXIS में,
बड़ा बेटा SBI में, उसकी पत्नी AXIS में,
छोटा बेटा PNB में,
उसकी पत्नी HDFC में
और बेटी YES बैंक में है .
“अच्छा-अच्छा ! सब सेटल हो गए ?”
नहीं, लाइन में लगे हैं सब ……………
“अच्छा-अच्छा ! सब सेटल हो गए ?”
नहीं, लाइन में लगे हैं सब ……………
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उम्मीद है कि सरकार जल्द ही ५०० और १००० के नए नोटों को जनता तक पहुचायेगी ताकि फौरी तौर पर लगने वाली लाइन से जनता को निजात मिले . वही दूसरी तरफ फर्जी नोटों के स्रोतों पर भी सरकार कड़ी नजर रखे वरना केवल नोट बंदी से ही कालेधन की लड़ाई लड़ना असम्भव होगा . सबसे मुख्य और महत्वपूर्ण बात ये है कि सरकार विदेशो में जमा काले धन के भण्डार को वापस भारत लाने में अपनी अहम् जिम्मेदारी निभाये . अन्यथा ये नोट बंदी 'सोनम गुप्ता बेवफा है ' की पहेली ही बन कर रह जायेगी .
nice
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