Tuesday, 30 January 2018

30 जनवरी












बिरला हाउस में नित्य होने वाली प्रार्थना सभा की और बढ़ते हुए महात्मा गांधी ने अपने साथ चल रही आभा और मनुबेन से हंसी -मजाक के एक प्रसंग पर कहा प्रार्थना सभा में एक मिनट की देरी से भी मुझे चिढ़ है. यह बात करते-करते गांधी प्रार्थना स्थल तक पहुँच चुके थे. प्रार्थना स्थल पहुचते ही गांधी ने लोगों के अभिवादन के जवाब में अपने हाथो को जोड़ लिया. इसी वक्त बाईं तरफ से नाथूराम गोडसे गांधी जी की तरफ झुका तब मनु बहन को लगा कि वह(गोडसे ) गांधी जी के पैर छूने की कोशिश कर रहा है. इस पर आभा ने चिढ़कर कहा कि उन्हें पहले ही देर हो चुकी है, उनके रास्ते में व्यवधान न उत्पन्न किया जाए. लेकिन गोडसे ने मनु को भी धक्का दे दिया इससे उनके हाथ से माला और पुस्तक नीचे गिर गई. फिर जैसे ही मनु उन्हें उठाने के लिए नीचे झुकीं तभी गोडसे ने पिस्टल निकाल ली और एक के बाद एक 3 गोलियां गांधीजी के सीने और पेट में उतार दीं. 

अहिंसा और सत्य के पथ पर चलने वाले इस महामानव के मुंह से जो आखरी शब्द निकले , "राम.....रा.....म." और उनका प्राणविहीन शरीर नीचे की तरफ़ गिरने लगा जिसे आभा ने गिरते हुए उनके सिर को अपने हाथों का सहारा दिया. महामानव इस धरती से विदा हो गया . चारो तरफ हर कोई स्तब्ध था . ये क्या हो गया . 

नाथूराम को जैसे ही पकड़ा गया वहाँ मौजूद माली रघुनाथ ने अपने खुरपे से नाथूराम के सिर पर वार किया जिससे उसके सिर से ख़ून निकलने लगा. उधर गांधी जी की हत्या के कुछ मिनटों के भीतर वायसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन वहां पहुंच गए. किसी ने गांधी का स्टील रिम का चश्मा उतार दिया था. मोमबत्ती की रोशनी में गांधी के निष्प्राण शरीर को बिना चश्मे के देख माउंटबेटन उन्हें पहचान ही नहीं पाए. तब किसी ने माउंटबेटन के हाथों में गुलाब की कुछ पंखुड़ियाँ पकड़ा दीं. लगभग शून्य में ताकते हुए माउंटबेटन ने वो पंखुड़ियां गांधी के पार्थिव शरीर पर गिरा दीं. यह भारत के आख़िरी वायसराय की उस व्यक्ति को अंतिम श्रद्धांजलि थी जिसने उनकी परदादी के साम्राज्य का अपने सत्य और अहिंसा के सिद्धांत से पूरी तरह अंत कर दिया था. 

पूरी दुनिया के मानवता प्रेमी हस्तियों के लिए यह बहुत बड़ा सदमा था . बर्नाड शॉ ने महात्मा गांधी जी की इस दुखद म्रत्यु पर कहा, ''यह दिखाता है कि अच्छा होना कितना ख़तरनाक होता है.'' 

इससे पहले 29 जनवरी शाम को बापू ने डॉ राम मनोहर लोहिया को अपने पास बुलाया था और कहा था कि आज रात तुम हमारे साथ रहोगे , ' कुछ आवश्यक बाते करनी है . डॉ लोहिया जब पहुंचे तो बापू लोंगो से मिलने में व्यस्त थे , किन्तु लोहिया को देखते ही बोले - तुम मेरे कमरे में चलो हम आते हैं . 

30 जनवरी की सुबह जब डॉ लोहिया सोकर उठे तो बापू बरामदे में बैठ कर खतों का जवाब लिख रहे थे. डॉ लोहिया ने पूछा - कल आपने बात करने के लिए बुलाया था ? बापू ने कहा - जब हम कमरे में गए तो तुम बिल्कुल शांत भाव से सो गए थे , इसलिए जगाया नही . चलो आज बात करेंगे . ' 

30 जनवरी को जब डॉ लोहिया बिरला भवन पहुंचे तब तक बापू इस दुनिया से सदा के लिए प्रस्थान कर चुके थे . ' नाथू राम गोडसे ने उनकी दुखद हत्या कर दी थी . बापू की हत्या से आहत और द्रवित डा लोहिया ने देश के विभाजन पर एक पुस्तक लिखी , 'विभाजन के गुनाहगार ' . इस पुस्तक में देश के विभाजन से जुड़े कारणों और उसके गुनाहगारो की तरफ इशारा किया गया है . 

साबरमती के संत और देश की आजादी के सबसे बड़े महानायक को उनकी पुण्यतिथि पर शत -शत नमन . 



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