Monday, 20 August 2018

मुलायम सिह यादव (नेता जी)


“लोग मेरी बात सुनेगे शायद मेरे मरने के बाद लेकिन सुनेगे जरुर . आज नए नेतृत्व और नई खूबियों की जरुरत है . बहुत आराधना हो चुकी ...फल चढाना और यशोगान भी हो चुका . नेता रहेंगे ,अनेक नेता रहेंगे ,एक नेतृत्व रहेगा ....लेकिन नया नेतृत्व व् नए लोग राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर के नहीं ,गाव के स्तर के होंगे .”-------------डा राम मनोहर लोहिया




सन् 1960 में जैन इण्टर कालेज, करहल मैनपुरी में आयोजित एक कवि सम्मेलन में उस समय के विख्यात कवि दामोदर स्वरूप ‘विद्रोही’ ने अपनी चर्चित रचना 'दिल्ली की गद्दी सावधान!' सुनायी तो पुलिस का एक दरोगा मंच पर चढ़ आया और विद्रोही जी से माइक छीन कर बोला-"बन्द करो ऐसी कवितायेँ जो शासन के खिलाफ हैं." उसी समय कसे (गठे) शरीर का एक लड़का बड़ी फुर्ती से वहाँ पहुँचा और उसने उस दरोगा को मंच पर ही उठाकर दे मारा. विद्रोही जी ने मंच पर बैठे कवि उदय प्रताप सिह जी से पूछा ये नौजवान कौन है, तो पता चला कि यह नौजवान और कोई नही ,बल्कि मुलायम सिंह यादव है. उस समय मुलायम सिंह यादव उस कालेज के छात्र थे और उदय प्रताप सिंह वहाँ प्राध्यापक थे. तत्कालीन भ्रष्ट शासन व्यवस्था के खिलाफ नौजवान मुलायम सिह की यह हिम्मत और निर्भीकता शीघ्र ही आने वाली एक क्रांतिकारी सामाजिक परिवर्तन की चेतावनी ही तो थी . 

मुलायम सिह यादव 

मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवंबर 1939 को इटावा जिले के सैफई गांव में हुआ था. इनके पिता स्व. सुघर सिंह, और माता स्व. मूर्ति देवी थी .पिता स्वभाव से साहसी और काफी परिश्रमी थे . उन दिनों ग्रामीण परिवेश काफी पिछड़े होते थे और मूल जरुरतो से भी अभावग्रस्त होते थे . किसानी तथा पशुपालन ही लोगो की आजीविका का एकमात्र साधन होता था . इटावा जिले के सैफई गाव की हालत भी कुछ ऐसी ही थी . पिता किसान थे और बेटे मुलायम सिह जी को एक नामी पहलवान बनाना चाहते थे . किन्तु मुलायम सिह ने शिछा प्राप्त करने के साथ - साथ सामाजिक भेदभाव और अन्याय के खिलाफ सन्घर्ष को भी अपना आदर्श बनाए रखा . उन दिनों जब उत्तर प्रदेश सरकार ने सिचाई शुल्क में असामान्य व्रद्धी कर किसानो के हितो पर हमला किया तो समाजवादी नेता डा लोहिया ने राज्य के 13 जिलो में 'सिविल नाफरमानी आन्दोलन' की शुरुआत की, जिसे बाद में ‘नहर रेट आन्दोलन’ का नाम भी दिया गया था . मात्र 15 साल की हलकी उम्र में ही मुलायम सिह ने तत्कालीन समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया के आह्वान पर ‘नहर रेट आन्दोलन’ में भाग लिया और इस आन्दोलन में वह पहली बार जेल गए. 



जेल से छूटने के बाद मुलायम सिह यादव ने 1960 में जैन इंटर कालेज करहल से इंटर की परीछा पास की और इटावा में के के कालेज में आगे की पढ़ाई के लिए प्रवेश ले लिया .यहा से स्नातक करने के बाद 1963 में ए के कालेज शिकोहाबाद से बैचलर आफ टीचिंग (BTC) की परीछा भी उत्तीर्ण कर ली . इसके पश्चात उन्होंने राजनीति शास्त्र में एम् ए किया और जैन कालेज में ही राजनीति शास्त्र के प्रवक्ता बन गए . शीघ्र ही उन्होंने राजनीति शास्त्र में आगरा विश्व विद्यालय से मास्टर डिग्री भी हासिल कर ली . इस प्रकार एक साधारण घर में जन्म लेकर मुलायम सिह यादव ने अपनी लगन और मेहनत से उच्च शिछा भी प्राप्त कर ली . कहा जाता है शिछा मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्माण करती है . इसलिए इसे उनका पारिवारिक संस्कार कहा जाए या फिर उनकी शिछा का कमाल कि अब उनके चेहरे में गम्भीरता और आचरण में श्रेष्ठता भी नजर आने लगी.





























मुलायम सिह यादव पिछड़े समाज से ताल्लुक रखते थे और उस दौर में जातिवाद चरम पर था . मनुष्य का मनुष्य के साथ कैसा भेदभाव ? जब तक सामाजिक समानता नही होगी , देश आगे कैसे बढेगा . इन्ही विचारों से प्रेरित मुलायम सिह यादव ने पिछडो को जागरूक किया और ग्रामीण जनता में व्याप्त तमाम बंदिशों ,सामाजिक असमानता ,भ्रष्टाचार ,जन विरोधी सरकारी नीतियों आदि का सदैव विरोध किया . वह एक किसान परिवार से थे अत: किसानो को होने वाली समस्त समस्याओं को भली भाति जानते थे .उनका द्रढ़ विशवास था कि जब तक किसानो की हालत में सुधार नहीं होगा तब तक देश का भी कोई विकास होने वाला नहीं है . समाज और देश के विकास के लिए संघर्ष करने की मुलायम सिह की इस भावना से तत्कालीन स्थानीय समाजवादी नेता नत्थू सिह और अर्जुन सिह भदौरिया काफी प्रभावित हुए . उस वक्त देश में काग्रेस की सरकार होती थी और किसी प्रभावशाली विपछ के अभाव के कारण कांग्रेस की निरंकुशता से भ्रष्टाचार भी खूब फल -फूल रहा था . काग्रेस की इस निरंकुशता पर लगाम लगाने की खातिर कुजात गांधीवादी और समाजवादी नेता डा राम मनोहर लोहिया काफी सक्रिय थे . मुलायम सिह भी समाजवादी नेता डा राम मनोहर लोहिया के विचारों से पूरी तरह ओत- प्रोत हुए तथा भ्रष्टाचार से संघर्ष का रास्ता अख्तियार कर लिया . मुलायम सिह ने डा लोहिया की नीतियों और आदर्शो को अपना मूल मन्त्र बनाया . इससे वह डा लोहिया के काफी नजदीक आते गये . यह निर्भीक मुलायम सिह जी का अद्भुत कुशल नेतृत्व था कि उनके नेतृत्व में सैकड़ो युवाओ की भीड़ ‘डा लोहिया जिंदाबाद ‘ व 'समाजवाद जिंदाबाद ‘ के नारों में अन्याय के खिलाफ तुरंत एकजुट हो जाती थी.


मुलायम सिह ने एक शिछक के रूप में समाज में कन्या शिछा पर विशेष बल दिया . उन्होंने सामाजिक जन जागरण पर समुचित ध्यान दिया . वह तत्कालीन रुढ़िवादी समाज में दकियानूसी परम्पराओ को नष्ट कर एक ऐतिहासिक सामाजिक बदलाव देखना चाहते थे . जिसका प्रारम्भ उन्होंने इटावा के आस पास के छेत्र को अपनी कर्म भूमि बना कर किया . उनकी बातो का लोगो पर काफी असर हुआ किन्तु सामाजिक बदलाव की प्रक्रिया काफी मंद गति से होती है और यह आम तौर पर अद्रश्य भी होती है . मुलायम सिह जी काफी मेहनती और कर्मठ थे इसलिए उन्होंने हार मानना सीखा ही नहीं था –वह चाहे शिछा का छेत्र हो ,राजनीति का हो या फिर पहलवानी का अखाड़ा ही क्यों न रहा हो . उन्होंने अशिछा रूपी अभिशाप से पिछडे समाज को मुक्त कराने और उन्हें विकास की मुख्य धारा में लाने का भागीरथ प्रयास किया . इस प्रकार एक योग्य शिछक और क्रांतिकारी समाज सुधारक के रूप में भी वह एकदम खरे साबित हुए . विद्यालय में उन्होंने अपने छात्रो का मार्गदर्शन करने के साथ -साथ उन्हें अनेक सामाजिक कुरीतियों जैसे दहेज प्रथा , बाल विवाह ,छुआ छुत ,जाती प्रथा आदि सभी से कोसो दूर रहने हेतु प्रेरित किया .




मुलायम सिह यादव को कुश्ती लड़ने का काफी शौक था और सौभाग्य से वह जिस दंगल में भी गए वहा सदैव विजयी ही रहे . समय निकाल कर वह डा लोहिया द्वारा सम्पादित समाचार पत्र ‘जन ‘ को भी सदैव पढ़ते रहते थे . जिससे लोहिया जी के विचारों का तेज उनमे और गहरा होता गया तथा पिछड़े वर्ग के अधिकारों के लिए वह खुल कर सन्घर्ष करने लगे . कभी -कभी एकांत में वह डा लोहिया के ओजस्वी और मौलिक विचारों का एकाग्रता से चिंतन भी करते थे . शिछक होने के नाते भाषा और विषय की पकड़ तथा संघर्ष की जुझारू शैली ने उन्हें एक कुशल वक्ता के रूप में भी स्थापित कर दिया था . उनके भाषण आम जन समस्याओं के मुद्दों से युक्त और भ्रष्टाचार के खिलाफ होने के साथ -साथ काफी सरल होते थे जो जनता के दिलो में सीधे रम जाते थे . एक बार डा लोहिया जब इटावा में एक आम जन सभा को सम्बोधित करने आये, तो उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेताओ से मुलायम सिह यादव से मिलने की अपनी इच्छा व्यक्त की. इस मुलाक़ात के बाद उन्होंने श्री नत्थू सिह जी से मुलायम सिह के द्वारा छेत्र में किये गए सामाजिक कार्यो की काफी प्रशंशा की . 


























इस ऐतिहासिक मुलाक़ात के बाद मुलायम सिह ,डा लोहिया , जयप्रकाश के विचारों का अनुसरण करते हुए राजनीति में सयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के संग समाज की सेवा करने के लिए पूरी तरह से सक्रिय हो गये . उस वक्त डा लोहिया की सयुक्त सोशलिस्ट पार्टी गरीबो की पार्टी थी . जिसके पास चुनाव लड़ने की खातिर धन की भी कमी रहती थी . तब नेहरु सरकार के भ्रष्टाचार के विरुद्ध डा लोहिया जी के ‘दाम बांधो ‘ आन्दोलन के कारण देश का पूंजीपति वर्ग काफी नाराज रहता था, इसलिए कही से पार्टी को धन मिलने का जुगाड़ भी नहीं था . ऐसी विषम परिश्थितियो में मुलायम सिह ने एक टूटी हुई साइकिल से ही अपने छेत्र का दौरा प्रारम्भ किया . हालांकि कुछ समय बाद कही से एक पुरानी जीप का जुगाड़ हो गया ,जिसके माध्यम से उन्होंने दूर -दराज की जनता से भी सम्पर्क साधना शुरू कर दिया . अपने जन सम्पर्क में वह लोगो को समाजवाद का वास्तविक अर्थ समझाते , उन्हें बताते कि समाजवाद का मतलब देश में समानता और खुशहाली लाना है . वह लोगो को समझाते कि उन्हें सामाजिक और आर्थिक समानता के लिए संघर्ष करना होगा . मुलायम सिह को उस दौर की यह बात भी काफी नागवार लगी कि जब किसी जाती विशेष के लोग सत्ता पर काबिज हो जाते है तो उनके कृत्य को विवेकपूर्ण और न्यायोचित कहा जाता है किन्तु वही जब हरिजन या पिछड़ी जाती के लोग अपने वाजिब अधिकारों की मांग करते है तो उन्हें जातिवादी कहकर उनका अपमान व तिरस्कार किया जाता है . उन्होंने अपने इन्ही क्रन्तिकारी विचारो को जनता तक पहुचाने के लिए 'क्रांति रथ ' का सहारा भी लिया . जनता के सुख -दुःख में शामिल होने से उनकी छवि गरीबो ,पिछडो के एक मसीहा के रूप में स्थापित होती चली गई . उनकी सभाओं में भारी भीड़ होने लगी . बढती लोकप्रियता से सन 1967 में जसवंत नगर सीट से मुलायम सिह जी भारी अंतर से चुनाव जीत गये और पहली बार विधान सभा में पहुचने में कामयाब हो हए . उस समय सदन में वह सबसे कम उम्र के विधायक होते थे . उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाले बाहुबली नेता कांग्रेस के लाखन सिह यादव की जमानत ही जब्त हो गई थी . विधायक बनने के बाद मुलायम सिह ने पिछडो और गरीबो की सेवा में अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया . चुनाव जीतने के बाद भी उन्होंने जन समस्याओं हेतु अपना आन्दोलन जारी रखा और सितम्बर 1968 से दिसम्बर 1968 तक 3 महीने जेल में भी रहे . इसके पश्चात देश में आपातकाल के दौरान वह 19 महीने फिर से जेल में रहे. 





तत्कालीन वरिष्ठ किसान नेता चौधरी चरण सिह भी मुलायम सिह जी की कर्मठता और संघर्ष से काफी प्रभावित हुए . राजनीति की कर्म भूमि में मुलायम सिह यादव , अपने इष्ट राजनेता डा राम मनोहर लोहिया की लोहियावादी नीतियों को अपना आदर्श मान कर पिछडो ,गरीबो और किसानो के लिए निरंतर लड़ते रहे और पुन: वर्ष 1974, 1977, 1985, 1989, 1991, 1993, 1996, 2004 ,2007 और 2012 में भी उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए . मुलायम सिंह यादव अपनी अदम्य राजनैतिक इच्छाशक्ति व अपार लोकप्रियता के दम पर 1989 से 1991 तक, 1993 से 1995 तक और साल 2003 से 2007 तक 3 बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने . साल 1982 से 1985 तक वह उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य और नेता विरोधी दल भी रहे . वह वर्ष 1985 से 1987 तक उत्तर प्रदेश विधान सभा में नेता, विरोधी दल बने और दुबारा फिर से 14 मई 2007 से 26 मई 2009 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता विरोधी दल चुने गये . अपने लम्बे राजनैतिक जीवन में मुलायम सिह यादव ने स्पष्ट किया ,जिस तरह से सरकार ने किसानो के लिए अधिकतम जोत सीमा निर्धारित कर दी है उसी तरह से अधिक पूंजी -सीमा का भी निर्धारण किया जाए और लघु उद्योगों को मजबूत किया जाए . 18 मार्च 1986 को एक कटौती प्रस्ताव रखते हुए उन्होंने कहा कि आई ए एस सेवा में पी सी एस सेवा का कोटा 50 % कर दिया जाए और समाज के पिछड़े ,हरिजन एवं अल्प संख्यक वर्ग को देश की मुख्य धारा में लाने हेतु इन वर्गो के लोगो को अधिकारी बनाया जाए . उन्होंने सरकारी खर्च का 60 % क्रषि छेत्र को देने की वकालत की एवं गांधीवाद की अवधारणा पर चलते हुए बड़े उद्योगों की जगह छोटे उद्योगों को मजबूत करने की सलाह भी दी . 





मण्डल आयोग की सिफारशो का दौर रहा हो या फिर राम मंदिर आन्दोलन का मुश्किल दौर .....मुलायम सिह यादव ने अपने कर्तव्यो और सवैधानिक मान मर्यादाओं का बखूबी साथ निभाया . उमके मुख्यमंत्री रहते कारसेवको पर गोली चलवाने का आरोप भी लगाया गया . किन्तु जिन्होंने ऐसा आरोप लगाया वे यह नही स्पष्ट कर सके कि मुलायम सिह के स्थान पर यदि कोई अन्य व्यक्ति मुख्यमंत्री होता तो संविधान और देश की एकता को कायम रखने हेतु अपने कर्तव्यो का निर्वाह आखिर और किस प्रकार करता ? हालांकि लोकतंत्र में ऐसी घटनाए दुखद होती है किन्तु इनके लिए किसी व्यक्ति विशेष को दोषी नही ठहराया जा सकता है . संवैधानिक कुर्सी पर बैठा हुआ व्यक्ति देश के सवैधानिक कर्तव्यो और जिम्मेदारियों से बंधा होता है और पद ग्रहण करने से पूर्व वह उनके पालन हेतु शपथ भी लेता है . इस प्रकार नैतिक रूप से व्यक्तिगत दोषारोपण उपयुक्त नही होता है . किन्तु कहा जाता है कि इसी दौर में मंडल आयोग को कमजोर करने के लिए कमंडल का यह खेल खेला गया था . ऐसी स्थितिया राजनीति में किसी के लिए भी कठिन फैसले वाली होती है , किन्तु मुलायम सिह ने इसे बड़े आत्मविश्वास के साथ देश की सवैधानिक मर्यादाओ के तहत ही निपटाया . कठिन परिस्थितियों और संघर्षो में ही एक विशिष्ट व्यक्ति के असाधारण होने की पहचान होती है . इसीलिए इस घटना ने मुलायम सिह यादव को देश में एक बड़े धर्म निरपेछ नेता के रूप में भी स्थापित किया और वह देश की राजनीति में एक और बड़े कद के साथ आगे आये . दछिनपंथियों ने उन्हें 'मुल्ला ' कहा तो उन्होंने इसे सहर्ष स्वीकार कर इसका भी राजनैतिक जवाब दिया . इससे मुस्लिमो में भी उनके प्रति विशवास बढ़ गया . हालांकि बाद में दछिनपंथी अपनी इस राजनैतिक भूल पर पछताते भी रहे . मुलायम सिह यादव किसानो और कार्यकर्ताओ के लिए बिलकुल सहज थे . लोकप्रियता से उनके अनुयायी और कार्यकर्ता उन्हें नेता जी और धरतीपुत्र के उपनामो से भी पुकारने लगे .....ये जनता का उनके प्रति अमिट और अगाध प्रेम ही है ,जो स्पष्ट करता है की उत्तर भारत में वह जनता के बीच कितना अधिक लोकप्रिय है . 


मुलायम सिह जी ने अपना राजनैतिक सफ़र सयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के बाद लोकदल , जनता दल , जनता दल (S) तथा बाद में 4 अक्तूबर को लखनऊ में खुद की समाजवादी पार्टी बना कर जारी रखा . भारत के राजनीतिक इतिहास की यह एक क्रान्तिकारी घटना थी, जब लगभग डेढ़-दो दशकों से मृतप्राय समाजवादी आन्दोलन को उनके द्वारा पुनर्जीवित किया गया. 





‘राम मनोहर लोहिया आचरण की भाषा’- पुस्तक के अनुसार -

“बीसवी सदी के अंतिम दशक में समाजवादी पार्टी की श्री मुलायम सिह यादव की अध्यछ्ता में स्थापना कई दृष्टियों से भारतीय राजनीति की एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना कही जायेगी उस वक्त मुलायम सिह ने बड़े साफ़ शब्दों में कहा था की समाजवादी पार्टी जाति युद्ध और जाती विद्वेष की राजनीति में विश्वास नही करती .हमारा प्रयास होगा की हम समाज के अगड़े वर्ग के लोगो को समझा बुझा कर उनकी सहमति के साथ पिछड़े लोगो को अधिक से अधिक अवसर प्रदान करे .साथ ही जो ऊची जातियों में गरीब और वंचित लोग है उनको भी पूरी तौर पर आरछ्ण और विकास की सुविधा मिले.सत्ता के विकेंदीकरण ,चौखम्भा राज्य की नीति, गावो को आत्म निर्भर बनाने की निति आदि पर गहराई से विचार विमर्श हुआ था.चाहे पिछड़े लोगो की बात हो ,देशी भाषा की बात हो ,साहित्य और संस्कृति को भरपूर समर्थन की बात हो, किसानो के हितो की बात हो, अल्पसंख्यको की रछा का मुद्दा हो,ग्राम पचायातो को अधिक से अधिक अधिकार देने की बात हो,नारी जाती को जीवन के हर छेत्र में सम्मानित करने की बात हो -मुलायम सिह यादव ने बहुत ही साफ़ सुथरी और संकल्पबद्ध दृष्टि का परिचय दिया है. समाजवादी विचारधारा को अधिक से अधिक आचरण की परिधि में ले आना मुलायम सिह जी की एक बड़ी उपलब्धि कही जायेगी.वे सत्ता का समाजवाद के लिए प्रयोग जिस जुझारूपन से करते है वह आश्चर्यजनक है. उनकी शैली की विशेषता है की वह कोई निर्णय बहादुरी और झटके के साथ ले लेते है.”



वर्ष 1996, 1998, 1999, 2004 और 2009 में धरतीपुत्र मुलायम सिह यादव लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए .एच. डी. देवेगौड़ा और इन्द्र कुमार गुजराल की सरकारों में 1996 से 1998 तक वह भारत के रक्षामंत्री के पद पर आसीन हुए . घोटालो और भ्रष्टाचार की आंधी के दौर में मुलायम सिह यादव का रछा मंत्री कार्यकाल बिलकुल बेदाग़ रहा . राष्ट्र प्रेम और आम जनता के प्रति लगाव तो उनमे पहले से ही कूट- कूट कर भरा हुआ था . उनके रछा मंत्री के कार्यकाल में एक ऐसी ही घटना है जिसने देश की सेना और समस्त राष्ट्र का सर गर्व से उंचा कर दिया था . नेता जी देश के रछा मंत्री के रूप में देश की सीमाओं के निरीछन / दौरे पर एक चौकी पर गये हुए थे . उन दिनों सीमा पर पाकिस्तान की ओर से फायरिंग अक्सर होती रहती थी . चौकी पर नेता जी हेलीकाप्टर से उतरने के बाद जैसे ही जवानो से मुखातिब हुए ,पाकिस्तान की तरफ से अकारण ही फायरिंग शुरू हो गयी ,कोई अन्य नेता होता तो ,सम्भवत : ऐसे माहोल में वहा से खिसकना ही उचित समझता ,किन्तु मुलायम सिह यादव ने तुरंत वहा मौजूद सैन्य आधिकारियो से पूछा, यह क्या हो रहा है? वहा मौजूद सैन्य अधिकारियों ने उन्हें बताया कि, नेता जी ये पाकिस्तानी सैनिको की तरफ से जारी अकारण गोलीबारी है . इसे सुन कर मुलायम सिह यादव जी ने तुरंत कहा ,तो आप लोग क्या कर रहे है ? देश के रछा मंत्री की तरफ से आत्मविश्वास और देशभक्ति के ये बोल सुन कर सैनिको की छाती चौड़ी हो गयी और उन्होंने तुरन्त पाकिस्तानी फायरिंग का जवाब देना भी शुरू कर दिया . नेता जी वही डटे रहे और अपने सैनिको का उत्साह वर्धन करते रहे . इस प्रकार एक रछा मंत्री की जिम्मेदारियों को भी उन्होंने बखूबी अंजाम दिया . साहस और निर्भीकता के साथ अपने पद की जिम्मेदारियों का निर्वाहन करने की ऐसी असाधारण प्रतिभा विरला ही देखने को मिलती है .उन्होंने रछा मंत्री रहते हुए सेनाओ में अनेक प्रशासनिक सुधार भी किये . पहले किसी सैनिक के शहीद होने पर उसका अंतिम संस्कार वही कर दिया जाता था, किन्तु मुलायम सिह ने ऐसी व्यवस्था बनायी कि अब शहीद सैनिको का शव पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनके घर तक भेजा जाता है .

राजनीति में मुलायम सिह यादव ने सदैव सिद्धांतो को महत्व दिया . उनकी राजनैतिक दूरदर्शिता और फैसले लेने की कला और संगठन चलाने की छमता काफी अद्भुत है . उन्होंने समाजवादी नीतियों को व्यावहारिकता के धरातल पर उतारा और समाज के शोषित वर्ग को अपनी आवाज उठाने की ताकत दिलाई . वह अपने इष्ट डा लोहिया की तरह ही अंग्रेजी के स्थान पर राष्ट्रभाषा हिंदी को प्राथमिकता दिए जाने के पछधर रहे . उन्होंने उत्तर प्रदेश में उर्दू को हिंदी के बाद दूसरा स्थान प्रदान किया . हिंदी के छेत्र में विकास हेतु 'यश भारती ' सम्मान देने की प्रथा का शुभारम्भ भी किया . मुलायम सिह आज भी उम्र के इस पड़ाव पर सबसे कर्मठ राजनेता है और जनता के साथ अति सवेदनशील भी . उत्तर भारत में गाँधी ,लोहिया ,जयप्रकाश और राजनारायण जी के बाद मुलायम सिह अकेले ऐसे बड़े नेता है जो अपनी कड़ी मेहनत से देश की राजनीति में शून्य से शिखर तक पहुचे में कामयाब हुए . मुलायम सिह ने बचपन में गरीबी को बड़े करीब से देखा था इसलिए वह जब कभी भी सत्ता में आये तो गरीबो के लिए तमाम कल्याणकारी योजनाये भी साथ ले कर आये . कन्याओं की शिछा की अपनी पुरानी मुहीम को उन्होंने कन्या विद्या धन के माध्यम से लागू किया और गरीब परिवार की बेटियों को आर्थिक सहायता देकर शिछित होने का सुनहरा अवसर प्रदान दिया . इसी के साथ उन्होंने बेरोजगारों को भत्ता और किसानो को कर्ज माफ़ी दे कर समाज की आर्थिक असमानता को भी दूर करने का अथक प्रयास किया . 


मुलायम सिह यादव सादगी पसंद व्यक्तित्व के रूप में जाने जाते है . 12 अक्तूबर 1967 में समाजवाद के मूल स्तम्भ डा लोहिया की असमय म्रत्यु के बाद समाजवादी आन्दोलन में एक बिखराव सा आ गया . पहली पंक्ति के समाजवादी नेताओं जयप्रकाश ,मधु लिमये , आचार्य नरेंद्र देव आदि के बाद दूसरी पंक्ति के नेताओं में राजनारायण जी जाने जाते थे . राजनारायण जी ने आपातकाल और जनता पार्टी की सरकार में रह कर अपनी सार्थकता साबित कर दी . इसके बाद तमाम समाजवादी नेता चाहे वह जार्ज फर्नांडीज हो , लालू हो ,या नितीश रहे हो सभी अलग अलग पार्टी बना कर बंट गये . मुलायम सिह ने भी समाजवाद के साथ चलते हुए प्रदेश में ऐतिहासिक समाजवादी पार्टी की स्थापना कर दी . उनके तमाम साथी अवसरवादी होकर राह में उन्हें अकेला छोड़कर जाते रहे किन्तु मुलायम सिह अपने अदम्य साहस और समाजवादी नीतियों के साथ जनता के बीच पूरे आत्म विशवास के साथ डटे रहे . वह अपने अनेक साथियो के चले जाने से तनिक भी विचलित नहीं हुए और नए आत्मविश्वास से अपने विरोधियो को पराजित करते रहे . आम जनता के लिए वह अन्याय और भ्रष्टाचार से सन्घर्ष करते रहे और जनता भी उनका साथ बखूबी निभाती रही .किन्तु लोकतंत्र में सत्ता कभी स्थाई तौर पर किसी के पास नहीं रूकती है , जनता के पास जो बेहतर विकल्प होता है वह उसी पर अपनी मुहर लगाती है . राजनीति में घोर प्रतिस्पर्धा के साथ -साथ अन्य दलों में नैतिकता समाप्त होती गयी . ऐसे समय में नेता जी के सामने डा लोहिया के समाजवाद के साथ राजनैतिक ब्रह्मचारी बने रहने की कठिन चुनौती भी आ गयी . देश की राजनीति दलीय न होकर गठ्बन्धन की हो गयी . इस हालत में नेता जी ने समान विचारधारा वाले दलों के साथ समाजवादी पार्टी का गठबंधन कर राष्ट्रीय राजनीति में अपनी ताकत का एहसास भी कराया . उत्तर प्रदेश में दशको से मौजूद 2 बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों के बीच अपनी मजबूत स्थिति बना लेना मुलायम सिह के श्रेष्ठ राजनैतिक कौशल का ही परिणाम है . मुलायम सिह ने संविधान के अनुसार देश की धर्म निरपेछ विचारधारा का सदैव सम्मान किया . जिसके फलस्वरूप पुरे देश में उनका कद बढ़ता ही गया . 1996 में तो वह केंद्र में प्रधानमंत्री बनते -बनते रह गए . यहाँ भी उनके कुछ पुराने समाजवादी मित्रो के असहयोग के कारण यह अप्रिय स्थिति आई वर्ना वह प्रधानमंत्री तो बन ही जाते .किन्तु मुलायम सिह जी के व्यक्तित्व का ये अद्भुत पहलू है की वह अपने मित्रो की कभी आलोचना नहीं करते ,शायद वह यह भली भाँती जानते है कि राजनीति में कोई स्थाई दोस्ती या दुश्मनी नहीं रहती है . मुलायम सिह जी के व्यक्तित्व का कमाल है कि उनके विरोधी भी उनकी काफी तारीफ़ करते है . उन्होंने एक कुशल राजनेता की भाँती सभी राजनेताओ से मधुर सम्बन्ध स्थापित किये .





जब गठबंधन की राजनीति के दौर में सभी राजनैतिक दलों के द्वारा भीड़ को इकट्ठा करना महत्वपूर्ण होता गया . देश में धर्म और जाती की राजनीति की नई परम्पराए शुरू हो गई . इस राजनैतिक प्रतिस्पर्धा में मुलायम सिह जी को समाजवादी पार्टी के वजूद को कायम रखने के लिए कड़ी चुनौतिया मिलने लगी . इन सबके बीच मुलायम सिह जी ने अपना संतुलन बनाये रखा और जनता के समछ खुद को एक सशक्त विकल्प के रूप में स्थापित किया . जब कभी समाजवादी मूल्यों से उनकी पार्टी का भटकाव हुआ तो जनता ने भी उन्हें समय आने पर सत्ता से बाहर कर दिया . किन्तु मुलायम सिह जी डा लोहिया के विचारों से ओत प्रोत थे अत: सत्ता या विपछ दोनों जगह वह जनता से नजदीक रहते और जन कल्याणकारी मुद्दों के पैरोकार बने रहते . जिसके फलस्वरूप जनता की नजर में वह सदैव अपना और पार्टी का कद ऊंचा करते गए .




मुलायम सिह यादव पर समाजवाद से भटकने और परिवार वाद के आरोप भी विरोधियो के द्वारा समय समय पर लगते रहे है . किन्तु ये आरोप कम, विरोधियो की साजिश ज्यादा साबित हुए .लोकतंत्र में जनता के द्वारा चुनने के बाद इस विवाद की जड़ स्वत: कमजोर हो जाती है .अवसर वादिता की राजनीति से कोई दल अछूता नहीं रहा किन्तु फिर भी मुलायम सिह जी ने कभी भी अपने धर्मनिर्पेछ रुख से कोई समझौता नहीं किया . डा लोहिया की समाजवादी नीतियों और कार्यक्रमों को मुलायम सिह की पार्टी ने उनके मुख्यमंत्रित्व काल के दौरान और अखिलेश यादव की सरकार के दौरान भी विभिन्न योजनाओं के तहत लागू किया . 

काश अगर वैट जैसे मुद्दों पर मुलायम सिह जी की बातो को तत्कालीन केंद्र सरकार ने समझा होता तो महंगाई का आज ये आलम ही नही होता . लगभग 80 साल के नेता जी आज भी किसी अन्य नेता के मुकाबले सबसे अधिक चुनावी रैली करते है और उनकी रैलियों में भीड़ उनके बिलकुल नजदीक आना चाहती है . उनके राजनीति में लम्बे अनुभव और समाज सेवा को द्रष्टिगत करते हुए नेता जी को इंटरनेश्नल जूरी एवार्ड से भी सम्मानित किया जा चूका है . राजनीति के इस धुरंधर समाजवादी नेता ने डा लोहिया के आदर्शो पर चलते हुए देश में समाजवाद को नई ऊँचाइया दी है . आज जहा दोनों राष्ट्रीय पार्टिया पर घोटालो और भ्रष्टाचार के भीषण आरोप है ऐसे में उत्तर प्रदेश में उनकी समाजवादी पार्टी के विकास कार्यो ने जनता के दिलो को जीत लिया है .






























































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2 comments:

  1. विस्तृत जानकारी के लिए धन्यवाद ����

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