देश में आम जेलों की हालत काफी बदहाल है . अधिकांश जेलों में छमता से बहुत अधिक कैदी रह रहे है . जेलों की बदहाल व्यवस्था के कारण अधिकतर जेले आम कैदियों के लिए नरक तो बड़े अपराधियों के लिए आरामगाह का स्थान साबित हो रही है .
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के प्रिजन स्टैटिस्टिक्स इंडिया, 2015 रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की कई जेलें, कैदियों की संख्या के लिहाज से छोटी पड़ रही हैं. इसके अनुसार भारतीय जेलों में क्षमता से 14 फीसदी ज़्यादा कैदी रह रहे हैं. इस मामले में छत्तीसगढ़ और दिल्ली देश में सबसे आगे हैं, जहां की जेलों में क्षमता से दोगेुने से ज़्यादा कैदी हैं. दिलचस्प बात ये भी है कि भारतीय जेलों में बंद 67 फीसदी लोग विचाराधीन कैदी हैं. यानी वे लोग , जिन्हें मुकदमे, जांच या पूछताछ के दौरान हवालात में बंद रखा गया है, न कि कोर्ट द्वारा किसी मुकदमे में दोषी क़रार दिए जाने की वजह से इन जेलों में बंद किया गया है . इस प्रकार अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से भारत की जेलों में ट्रायल या विचाराधीन कैदियों का प्रतिशत काफी ज़्यादा है. उदाहरण के लिए इंग्लैंड में यह 11% है, अमेरिका में 20% और फ्रांस में 29% है. क्या भारत के संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों के अनुसार ऐसे विचाराधीन कैदियों को उनके दोषी सिद्ध होने से पहले तक निर्दोष नही माना जाता है.
वही जेल में कर्मचारियों की अपर्याप्त संख्या जेलों के भीतर बड़े पैमाने पर हिंसा और अन्य आपराधिक गतिविधियों की वजह भी बनती है. जेलों के अंदर वर्ष 2015 में हर रोज औसतन 4 कैदियों की मौत हुई थी और कुल मिलाकर 1,584 कैदियों की जेल में ही मृत्यु हो गई. इनमें 14,69 मौतें स्वाभाविक थीं, जबकि बाकी मौतों के पीछे अस्वाभाविक कारणों का हाथ माना गया. जेलों में बंद महिलाओ की बात करे तो भारत में लगभग 18 हजार महिलाएं जेलों में बंद हैं और इनमें से 9 फीसदी तो अपने बच्चों के साथ ही यहां रहती हैं. आम पुरुषो की तरह ही इन जेलो में बंद महिला कैदियों की स्थिति भी बदहाल है. समय-समय पर इनके यौन शोषण की खबरें भी आती रहती हैं. NCRB के आंकड़ों के अनुसार , वर्ष 2014 में हालातों व यौन उत्पीड़न से आजिज आकर 51 महिला कैदियों ने आत्महत्या ही कर ली थी.
स्पष्ट है कि देश की जेलो में आर्थिक रूप से कमजोर आम नागरिको के लिए सजा काटना कितना दुस्वार है . वही बड़े रसूख वाले लोग जेलों में आने से पहले ही अपने लिए सुविधाओ की व्यवस्था करवा लेते है . क्या यह बात जेलों में बंद कुछ कमजोर अपराधियों के साथ न्यायोचित है ?
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