राजनीति में वृहद और व्यापक रूप से राजनैतिक दलों के मुद्दे तो अक्सर बदलते ही रहते है लेकिन एक बात है जो अपरिवर्तित रहती है , वह है उन दलों की विचारधारा . मुख्य रूप से राजनीति में 2 विचारधाराए है जिनसे विचारों की अनेक शाखाओ का विस्तार होता रहा है . इन 2 विचारधाराओ को हम द्छिणपंथी और वामपंथी के नामो से अक्सर सुनते रहते है . आखिर क्या है ये दक्षिणपंथी और वामपंथी . आइये एक नजर इन दोनों की विषय -वस्तु पर डालते है .
दक्षिणपंथी
ये राजनीतिक दल मूलतः नवउदारवादी आर्थिक नीतियों के समर्थक होते है, जो बाज़ार को राज्य के नियंत्रण से मुक्त रखने की बात करते हैं, ये निजीकरण के हिमायती बनते हैं किन्तु सामाजिक मुद्दों व धर्म में अनुदारवादी रवैया अपनाते हैं और सदियों से चली आ रही रुढ़िवादी सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखना चाहते है. धार्मिक मसलो में इनके विचार कट्टर होते है . ये संस्कृति के नाम पर राष्ट्रवाद को आगे बढाते हैं. ऐसे दलों का सामाजिक आधार मुख्यतः उच्च व मध्य वर्ग (व्यापारी वर्ग) का एक बड़ा हिस्सा होता है.
वामपंथी
ये राजनीतिक दल समानता , विकास और समाजवाद पर बल देते है . ये गरीबों, मजदूरों, कृषकों व आम जनता के हितैषी तथा निजीकरण, बड़े उद्योगपतियों के बिलकुल विरोधी होने के साथ नवउदारवादी नीतियों के घोर विरोधी भी होते हैं. ये सामाजिक बदलाव / सुधार तथा आर्थिक लोकतंत्र के प्रति अपनी कड़ी प्रतिबद्धता रखते है. ऐसे राजनीतिक दल चाहते हैं कि बाज़ार का संचालन राज्य स्वयं करे क्योंकि बाज़ार कमज़ोर वर्ग का शोषण करता है, जिसे राज्य द्वारा विशेष नियमो से ही वापस मुख्यधारा में शामिल किया जा सकता है. अत: वामपंथ सकारात्मक समतावाद में विश्वास रखता है. इन दलों का सामाजिक आधार व समर्थन गरीब व वंचित वर्ग ही सामान्यत: करते है.
No comments:
Post a Comment