Thursday, 28 June 2018

कबीर दास 'मगहर का संत '



15 वी शताब्दी में अपनी सीधी -साधी जुबान से दुनिया के आडम्बरो और पाखंडो के खिलाफ उन पर प्रहार करने वाले संतो की श्रेणी में कबीर दास जी को जाना जाता है . कबीर दास जी का जन्म 1398 ई में काशी में हुआ था . हालांकि उनका जन्मस्थान विवादित है . उनके जन्म के बारे में प्रचलित मान्यता यह है कि वह काशी के पास एक तालाब के किनारे पाए गये थे और उनका पालन -पोषण नीरू व नीमा नाम के जुलाहा दम्पति ने किया था .

कबीर दास जी के गुरु रामानन्द जी थे . किन्तु कहा जाता है कि रामानन्द जी कबीर को अपना शिष्य स्वीकार नही करना चाहते थे . जबकि कबीर रामानन्द जी को ही अपना गुरु बनाना चाहते थे . इसलिए उन्होंने इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु एक योजना बनाई . कबीर दास जी जानते थे कि रामानन्द जी प्रत्येक दिन भोर में गंगा स्नान हेतु जाते है . अतः कबीर दास जी घाट की सीढियों पर अँधेरे में ही लेट गये . भोर समय जब गंगा स्नान को जाते हुए अनजाने में रामानन्द जी का पैर कबीर के ऊपर पड़ गया तो उनके मुख से अचानक 'राम -राम ' का शब्द निकल गया . बस इसी 'राम -राम 'को कबीर ने गुरु मन्त्र मान लिया .



कबीर दास जी सादा जीवन जीते थे . कुछ लोगो की धारणा के अनुसार कबीर दास जी विवाहित थे एवं उनके दो संताने भी थी . वह अपनी सामाजिक जीविका चलाने के लिए जुलाहे का ही कर्म करते थे . वह धर्म से ज्यादा कर्मो के सिद्धांत पर यकीन करते थे . उस समय धर्म के आडम्बर काफी चरम पर थे , किन्तु कबीर दास जी ने हिन्दू -मुस्लिम दोनों ही धर्मो की अनेक कुरीतियों पर खुल कर प्रहार किया . वह ईश्वर के अवतार , मन्दिर , मस्जिद ,मूर्ति पूजा , रोजा आदि के एकदम खिलाफ थे . उनका कहना था कि ,

पाहन पूजे हरि मिलैं, तो मैं पूजौं पहार। 
वा ते तो चाकी भली, पीसी खाय संसार।।

यानि की पत्थर पूजने से यदि प्रभु की प्राप्ति हो जाए तो वह पहाड़ की पूजा करने के लिए भी तैयार है . इसकी अपेछा वह पत्थर के रूप में उस चक्की की तारीफ़ करते है जो अनाज को पीसती है और पूरी दुनिया का पेट पालती है . कबीर दास जी अंधविश्वास से कोसो दूर है . वह सभी धर्मो के अलग -अलग ईश्वर के बजाय एक ही ईश्वर को मानते थे .वह शांति प्रिय थे . उन्हें अहिंसा , सत्य ,सदाचार आदि से प्रेम था किन्तु सामाजिक ऊंच -नीच ,जांत -पांत , धर्मो की लड़ाई , कट्टरता और किसी भी प्रकार के भेदभाव से सख्त नाराजगी थी .वास्तव में कबीर दास जी अपने समय के सबसे बड़े समाज सुधारक , सामजिक चिंतक और समाजवादी विचारों से ओत -प्रोत थे . वह इंसानों के बीच में प्रेम और भाईचारा देखना चाहते थे . 

कबीर दास जी ज्ञान की गंगा थे . उनका ईश्वर निर्गुण था . वह राम की आराधना अवश्य करते थे किन्तु उनके राम , दशरथ नन्दन राम न होकर पूरी दुनिया के सर्वव्यापी राम है . उनके राम दुनिया के कण -कण में व्याप्त है . वास्तव में उनके राम , रमता राम है . उनके राम सगुण -निर्गुण के भेद से परे है .उनका मानना था कि ईश्वर को किसी नाम , रुप, गुण और काल की सीमा में नही बाँधा जा सकता है . कबीर दास जी की भक्ति निर्गुण ब्रह्म के साथ काफी सहज ,सरल और वास्तविकता से भरी हुई है . 


कबीर दास जी के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने कभी भी कागज और पेन नही छुआ था .उनके ज्ञान और भक्ति के प्रवचनों को उनके शिष्यों ने ही सुन कर ही लिखा था . उनके दोहों से बना 'बीजक ' ऐसा ही एक ग्रन्थ है .कबीर दास जी भक्ति की ज्ञानाश्रयी शाखा से आते है इसलिए उनके दोहों और शब्दों में ज्ञान का अकूत भंडार है . उन्होंने अपने उपदेशो और लोकव्यवहार से समाज में सदैव सत्य की महिमा को बताने का काम बखूबी किया है . धर्म के बारे में उनकी बाते धर्म के अनेक ठेकेदारों को पसंद नही आई , अत: हिन्दू -मुस्लिम दोनों धर्मो के ठेकेदारों ने उन्हें काफी परेशान किया . लोगो की मान्यता ( काशी में मरने पर स्वर्ग और मगहर में मरने पर नरक मिलता है) , को चुनौती देते हुए वह अपने अंतिम दिनों में मगहर चले गये थे . कहा जाता है कि यही पर इन्होने 119 वर्ष की अवस्था में 1494 ई में अपना लौकिक शरीर त्याग दिया .

आज जब समाज में झूठ , पाखंड , भ्रष्टाचार ,धार्मिक कट्टरता और भेदभाव का बोलबाला है तो कबीर दास जी के दोहे उनकी तपस्या को सार्थक करते हुए जन -जागरण कर रहे है .


No comments:

Post a Comment