Monday, 25 June 2018

विश्वनाथ प्रताप सिह



1975 के आपातकाल से लड़ने के लिए संयुक्त समाजवादी पार्टी और जनसंघ समेत कई पार्टियों के नेताओ को मिलाकर लोकनायक जयप्रकाश जी ने जनता पार्टी का सूत्रपात किया था . इसी जनता पार्टी ने मोरारजी देसाई के नेत्रत्व में 1980 तक केंद्र में सरकार चलाई थी . किन्तु कुछ आंतरिक मतभेदों और विपछी साजिशो के कारण यह सरकार अपना कार्यकाल पूरा नही कर सकी . लेकिन इस जनता पार्टी की सरकार ने सामाजिक समानता हेतु देश के संविधान की मंशा के अनुरूप पहली बार सामाज में पिछड़ों की पहचान हेतु सन 1979 में 'मंडल आयोग' को बैठा दिया था और श्री बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल को इसका अध्यक्ष बना दिया था . इसी मंडल आयोग ने ही सरकारी नौकरियों में पिछडे़ वर्गों के लोगों के लिए 27 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की मांग की थी. तब अपने लगभग 3 साल के छोटे किन्तु शानदार कार्यकाल के जरिये इस सरकार ने कई जनहित के कार्य किये थे . जनता पार्टी की सरकार जाने के बाद हुए आम चुनावों में इंदिरा गाँधी ने एक बार फिर से देश की कमान संभाल ली . 

असल में उस दौर में आजादी के बाद कांग्रेस की निरंकुशता पर नकेल डालने वालो में समाजवादी नेता अग्रणी थे . चाहे डा राम मनोहर लोहिया रहे हो या जयप्रकाश या फिर राजनारायण, सभी ने कांग्रेस को लोकतंत्र की ताकत दिखलाई . किन्तु 1979 में लोकनायक जयप्रकाश की म्रत्यु के बाद जनता पार्टी की सरकार भी 1980 में गिर गयी थी और फिर धीरे -धीरे इसके दिग्गज नेता भी बिखर गये . वर्ष 1980 से 1984 तक इंदिरा गांधी अपनी शहादत तक कांग्रेस की प्रधानमन्त्री बनी रही . उनकी शहादत के बाद 1984 में जो आम चुनाव हुए उसमे उनके पुत्र राजीव गांधी को देश का प्रधानमन्त्री बनने का सुअवसर प्राप्त हुआ .

विश्वनाथ प्रताप सिह के बारे में चर्चा करने से पहले यह एक अत्यंत आवश्यक रुपरेखा थी. अब बात मांडा के राजा की करते है . असल में राजा विश्वनाथ प्रताप सिह राजीव गांधी मंत्रीमंडल में वित्त मंत्री हुआ करते थे और उनके रहते ही विवादित बोफोर्स का सौदा तय हुआ था . इसी बोफोर्स काण्ड को हवा में उछाल कर वी पी सिह दुनिया की नजरो में सत्यवादी हरिश्चन्द्र बन गये थे . कभी वी. पी. सिंह ने चुनावी जनसभाओं में दावा किया था कि बोफोर्स तोपों की दलाली की रक़म एक 'लोटस' नामक विदेशी बैंक में जमा कराई है और वह सत्ता में आने के बाद पूरे प्रकरण का ख़ुलासा कर देंगे. ये तो ईश्वर ही जानता होगा कि इस सौदे में गांधी परिवार संलिप्त था कि नहीं , किन्तु उस दौर में बोफोर्स ने वी पी सिह को रातो रात देश का सबसे ईमानदार नेता अवश्य बना दिया.




कहा जाता है वी पी सिह मांडा के राजा के दत्तक पुत्र थे . छात्र राजनीति के बाद वह कांग्रेस पार्टी से जुड़े और उत्तर प्रदेश की कांग्रेसी राजनीति में मुख्यमंत्री बनने के बाद केंद्र की राजनीति में लाये गये . बोफोर्स मुद्दे के कारण 1987 में कांग्रेस से निष्काषित होने के बाद एक तरफ वी पी सिह बोफोर्स का मुद्दा गरमा रहे थे और दूसरी तरफ जनता पार्टी के कई पुराने दिग्गज नेता डा लोहिया की सामाजिक समानता की अवधारणा को एक बार फिर से जमीन पर उतारने की खातिर मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू करवाने हेतु आम जनता खासतौर से पिछडो के बीच में दिन -रात जन -जागरण कर रहे थे . इस जन -आन्दोलन की मुहीम का असर ये हुआ कि देश की जनता ने कांग्रेस को विपछ में बैठने का जनादेश दे दिया और वी पी सिह का राष्ट्रीय मोर्चा कुछ अन्य पार्टियों (जनता दल , भाजपा एवं वामपंथी दल ) के सहयोग से 1989 में देश की सत्ता पर आसीन हो गया .

प्रधानमन्त्री बनने के बाद वी पी सिंह ने 13 अगस्त 1990 को लगभग 10 साल से लटकी हुई मंडल आयोग की अधिसूचना को जारी कर दिया. इसके जारी होते ही पूरा देश 2 भागो में बंट गया . एक तरफ आरछण के विरोधी थे तो दूसरी तरफ आरछण समर्थक . सवर्ण बिरादरी तो पूरी तरह से वी पी सिह की दुश्मन बन गयी . मंडल कमीशन के विरोध में कांग्रेस और भाजपा के खाए -पिए लोग भी एकजुट हो गये . भाजपा ने तो वी पी सिह की सरकार से समर्थन तक वापस ले लिया और मंडल की काट के लिए कमंडल का खेल रच दिया . भाजपा ने नवम्बर 1990 में ही अयोध्या में श्री राम मन्दिर निर्माण का बीज बोकर मंडल के प्रभाव को समाप्त करने हेतु अनेक अडचने पैदा करना प्रारम्भ कर दिया . अनेक बार बाबरी मस्जिद गिराने हेतु प्रयास हुए जिसका मुख्य उद्देश्य उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखने वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिह यादव की सरकार को अस्थिर करना ही था .

वास्तव में मंडल आयोग ने जहा एक तरफ समाज में पिछडो को अपना स्तर सुधारने का अवसर देकर सामाजिक ऊंच -नीच की खाई को कमजोर किया वही इसने भाजपा को इसकी काट हेतु धार्मिक ध्रुवीकरण का मन्दिर मुद्दा भी थमा दिया . जो कि आज भी भाजपा को संजीवनी देता रहता है . अपने छोटे से कार्यकाल में वी पी सिह ने मंडल कमीशन को लागू करने का एक अहम फैसला लिया था , इसके लिए वह सदैव स्मरणीय रहेंगे . अपने इस महत्वपूर्ण फैसले की खातिर उन्होंने अपनी सरकार के गिर जाने की भी परवाह नही की . अचानक मंडल और मन्दिर प्रकरण की घटनाओं के कारण देश की यथास्थिति से वी पी सिह हैरत में थे और वह सक्रिय राजनीति से दूर हो गये . इसके कुछ समय बाद ही वह गम्भीर रूप से अस्वस्थ भी हो गये . उन्हें पहले रक्त कैंसर की समस्या हुई किन्तु बाद में किडनी भी खराब हो गयी . अपनी इन लाइलाज बीमारीयो से जूझते हुए वी पी सिह जी 27 नवम्बर 2008 को इस दुनिया से विदा हो गये .

चूँकि विश्वनाथ प्रताप सिह अपने फतेहपुर लोक सभा निर्वाचन छेत्र से ही सांसद थे इसलिए एक चुनावी सभा में नवम्बर 1989 को उन्हें देखने -सुनने का एक सुअवसर मुझे भी प्राप्त हुआ . इस छेत्र की जनता में उनकी लोकप्रियता बढिया थी और वह भी जनता से मिलना काफी पसंद करते थे . किन्तु प्रधानमन्त्री होने के बावजूद उन्होंने फतेहपुर के विकास के लिए लगभग कुछ नही किया इसलिए यह जिला आज भी काफी पिछड़ा हुआ है . लेकिन देश और समाज के समग्र विकास के लिए उन्होंने जो महान जन हित का कार्य किया है उसके लिए उन्हें सदैव एक समाज सुधारक और सामजिक न्याय के दूत के रूप में अवश्य याद किया जाएगा . 



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